वाराणसी के प्रतिष्ठित उदय प्रताप कॉलेज (यूपी कॉलेज) में मस्जिद को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। छात्रों के प्रदर्शन, वक्फ बोर्ड की दावेदारी और प्रशासनिक कार्रवाई के बीच यह मुद्दा अब राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया है। इस विवाद की शुरुआत कॉलेज के 115वें स्थापना दिवस पर एक नोटिस के वायरल होने से हुई और अब ये मुद्दा काफी बढ़ चुका है।
एक नोटिस से जुड़ा है सारा विवाद
इस विवाद की जड़ें 2018 से जुड़ी हैं, जब उत्तर प्रदेश सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कॉलेज प्रबंधन को एक नोटिस भेजकर मस्जिद को वक्फ संपत्ति में पंजीकृत करने की माँग की थी। कॉलेज प्रबंधन ने इस माँग को खारिज करते हुए कहा कि मस्जिद कॉलेज की 8200 स्क्वायर फीट जमीन पर बनी है, जो ट्रस्ट की संपत्ति है। 2021 में वक्फ बोर्ड ने इस दावे को औपचारिक रूप से छोड़ दिया था। हाल ही में, 25 नवंबर 2024 को कॉलेज के 115वें स्थापना दिवस पर 2018 का पुराना पत्र वायरल हुआ। इसके बाद कॉलेज परिसर में छात्रों ने मस्जिद में नमाज के दौरान हनुमान चालीसा पढ़ा, जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई।
6 दिसंबर 2024 को करीब 300 छात्रों ने कॉलेज गेट के बाहर भगवा झंडे लेकर प्रदर्शन किया और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए। प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना था कि मस्जिद अवैध है और इसे हटाया जाना चाहिए। प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया, और बाहरी छात्रों की एंट्री पर रोक लगा दी गई। कॉलेज प्रशासन ने भी छात्रों की माँग का समर्थन करते हुए कहा कि मस्जिद का निर्माण अवैध है। उन्होंने आरोप लगाया कि मस्जिद में बाहरी लोग आकर नमाज पढ़ते हैं, जिससे परिसर की सुरक्षा पर सवाल उठते हैं।
कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर डी.के. सिंह ने बताया, “यह मस्जिद नहीं, यहाँ 35 साल पहले सिर्फ एक टीला था, बाद में यहाँ मजार बनी थी, और धीरे-धीरे इसे मस्जिद का रूप दे दिया गया। रातों-रात निर्माण सामग्री लाकर अवैध निर्माण किया गया। जब हमने इस पर कार्रवाई की, तो इसे वक्फ संपत्ति घोषित करने की कोशिशें शुरू हुईं।” उन्होंने आगे बताया कि कॉलेज की बिजली लाइन का भी उपयोग मस्जिद के लिए किया जा रहा था, जिसे बाद में कटवा दिया गया।
छात्रों का कहना है कि अगर मस्जिद में नमाज पढ़ी जा सकती है, तो उन्हें हनुमान चालीसा का पाठ करने की अनुमति होनी चाहिए। छात्र नेता विवेकानंद सिंह ने कहा, “यह मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं है। इसे हटाया जाना चाहिए। अगर नमाज जारी रही, तो हम भी हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।”
कैसे हुई थी उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना?
वाराणसी का उदय प्रताप कॉलेज, जिसे आमतौर पर यूपी कॉलेज के नाम से जाना जाता है, भारत के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक है। इस कॉलेज की स्थापना 1909 में भिनगा (जिला बहराइच, उत्तर प्रदेश) के राजा राजर्षि उदय प्रताप सिंह जूदेव ने की थी। उदय प्रताप सिंह एक महान समाज सुधारक और दूरदर्शी शासक थे। वे न केवल अपने राज्य की भलाई के लिए समर्पित थे, बल्कि शिक्षा के प्रसार में भी उनकी गहरी रुचि थी।
राजा उदय प्रताप सिंह का मानना था कि समाज को उन्नति के पथ पर ले जाने के लिए शिक्षा एक प्रभावी साधन हो सकती है। उनकी दृष्टि केवल अकादमिक विकास तक सीमित नहीं थी, बल्कि समाज को नैतिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध करना था। उनके इसी उद्देश्य ने उन्हें वाराणसी में एक ऐसा शिक्षण संस्थान स्थापित करने के लिए प्रेरित किया, जो ग्रामीण और शहरी युवाओं को उच्च शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का ज्ञान प्रदान कर सके।
राजा उदय प्रताप सिंह न केवल एक शासक थे, बल्कि उन्होंने समाज के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी जीवनशैली में सन्यास की झलक मिलती थी। वे एक साधारण और सादगीपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते थे। शिक्षा को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि आज यूपी कॉलेज हजारों विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का एक उत्कृष्ट केंद्र बन गया है।
उदय प्रताप कॉलेज की शुरुआत एक हाई स्कूल के रूप में हुई थी। यह संस्थान वाराणसी के भदऊँ गाँव में स्थापित किया गया था। 500 एकड़ में फैले इस परिसर में समय के साथ शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए कई संस्थान स्थापित किए गए। इनमें डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, रानी मुरार बालिका विद्यालय, राजर्षि शिशु विहार और राजर्षि पब्लिक स्कूल शामिल हैं।
आज उदय प्रताप कॉलेज में लगभग 20,000 विद्यार्थी पढ़ते हैं। यह संस्थान केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। इसका विशाल परिसर, शैक्षणिक माहौल और गौरवशाली इतिहास इसे अन्य संस्थानों से अलग पहचान दिलाता है। कॉलेज प्रबंधन का दावा है कि 35 साल पहले यहाँ केवल मिट्टी का टीला था, जहाँ बाद में मजार बनी और फिर मस्जिद का निर्माण हुआ।
स्थानीय प्रशासन ने विवाद को शांत करने के लिए कॉलेज के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी है। पुलिस ने बाहरी छात्रों और असामाजिक तत्वों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। एसीपी एस. चन्नप्पा ने कहा, “हालात तनावपूर्ण थे, लेकिन पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित किया। मस्जिद के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने वाले सात छात्रों को हिरासत में लिया गया है।”
क्या कहता है कानून?
उत्तर प्रदेश सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारूकी ने कहा कि 2018 में जो नोटिस दिया गया था, उसे 2021 में रद्द कर दिया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मस्जिद पर वक्फ बोर्ड का कोई दावा नहीं है। फारूकी ने यह भी आरोप लगाया कि 2018 का पुराना नोटिस अब वायरल करके विवाद खड़ा किया जा रहा है।
बता दें कि वक्फ अधिनियम 1995 के तहत, किसी संपत्ति को वक्फ में पंजीकृत करने के लिए पर्याप्त सबूत होने चाहिए। कॉलेज प्रशासन का कहना है कि मस्जिद का कोई रिकॉर्ड खसरा-खतौनी में नहीं है और यह ट्रस्ट की संपत्ति है। फिलहाल, विवाद सुलझने के बजाय गहराता दिख रहा है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। पुलिस और प्रशासन ने परिसर में शांति बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। यह मामला न केवल कानूनी पहलुओं को उजागर करता है, बल्कि धार्मिक और सामाजिक तनावों को भी सामने लाता है।