गुजरात की एक जिला अदालत ने साल 2002 दंगों के 22 आरोपितों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। ये सभी आरोपित पंचमहल जिले के देलोल गांव में हुई हिंसा में नामजद किए गए थे। इस हिंसा में कुल 17 लोगों की जान गई थी जिसमें 2 नाबालिग भी शामिल थे। सभी मृतक अल्पसंख्यक समुदाय से थे। बरी हुए 22 लोगों में 8 लोगों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई है। सुनवाई के आरोपितों के दौरान कई गवाह भी अपनी बातों से मुकर गए थे। ये फैसला मंगलवार (24 जनवरी, 2023) को सुनाया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह निर्णय पंचमहल न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष त्रिवेदी की अदालत ने सुनाया। बचाव पक्ष की तरफ से अधिवक्ता गोपाल सिंह सोलंकी ने बहस की थी। इस बहस के दौरान जहाँ अभियोजन पक्ष ने आरोपितों के लिए सजा की माँग की थी, वहीं हर्ष सोलंकी ने अपने मुवक्किलों को बेगुनाह बताया था। सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील ने अभियोजन पर सबूत न जमा कर पाने के साथ कई गवाहों के मुकरने की भी दलील दी। दलील में यह भी बात शामिल थी कि पुलिस पीड़ितों के शवों को भी बरामद नहीं कर पाई थी।
अभियोजन पक्ष का आरोप था कि आरोपितों ने 28 फरवरी 2002 को 17 पीड़ितों का कत्ल कर दिया था। सबूत के तौर पर अभियोजन पक्ष ने पुलिस द्वारा बरामद कुछ हड्डियों का हवाला दिया था। ये हड्डियाँ अधजली हालत में नदी के किनारे सुनसान जगह बरामद हुई थी। अभियोजन पक्ष का कहना था कि आरोपितों ने पीड़ितों को मार कर सबूत मिटाने के लिए जला दिया था। हालाँकि, बचाव पक्ष कोर्ट को यह समझाने में सफल रहा कि बरामद हुई हड्डियों से पीड़ितों की पहचान नहीं स्थापित हो पाई है।
क्या था मामला
गौरतलब है कि इसी पंचमहल जिले के गोधरा बाजार के पास अयोध्या से लौट रहे 59 रामसेवकों को एक हिंसक भीड़ ने 27 फरवरी, 2002 को तब जला दिया था जब वो साबरमती एक्सप्रेस से वापस अपने घर लौट रहे थे। इस घटना के एक दिन बाद पूरे गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। आरोप है कि इस घटना के एक दिन बाद 28 फ़रवरी को पंचमहल के देलोल गाँव में एक भीड़ ने अल्पसंख्यकों के घरों पर हमला किया, जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी। इस हिंसा के आरोप में 22 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। तब से यह मामला न्यायालय में विचाराधीन था।
बता दें कि गुजरात दंगों पर BBC की प्रोपेगंडा डॉक्यूमेंट्री को लेकर देश भर में बहस छिड़ी हुई है। जहाँ एक तरफ जामिया-JNU जैसे शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के एक वर्ग द्वारा प्रशासन की रोक के बावजूद इसकी स्क्रीनिंग की जा रही है, केरल में इसकी स्क्रीनिंग के लिए कॉन्ग्रेस-कम्युनिस्ट साथ आ गए हैं। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया से इसे हटवा दिया है, लेकिन फिर भी इसे लेकर विपक्ष की बयानबाजी रुक नहीं रही है।