Monday, November 18, 2024
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डॉक्टर पर मरीज को बेहोश कर के मारपीट करने का आरोप: 2 बच्चों की डिलीवरी का मामला, एक की मौत

पीड़िता को उसके चाचा बाइक से लेकर आए। उन्होंने कहा कि सर्जरी के बाद एक महिला मरीज को इस तरह बाइक पर लाने को उन्हें विवश होना पड़ा। अभी भी वो लोग मदद की आस में हैं क्योंकि परिवार ग़रीब है और एक बच्चा अभी भी हॉस्पिटल में भर्ती है। ऊपर से पीड़िता का इलाज चल रहा है सो अलग।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर से एक गर्भवती महिला से डॉक्टर द्वारा मारपीट की ख़बर आई है। हालाँकि, डॉक्टर ने इस ख़बर का खंडन किया है। पीड़िता शिवानी सोनकर की डिलीवरी होनी थी। उन्हें डॉक्टर संजीव कुमार मौर्या के लक्ष्मी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। वहाँ उनकी सर्जरी हुई और डिलीवरी के बाद दो बच्चे भी हुए, जिनमें से एक की मृत्यु हो गई है। सर्जरी के बाद परिजनों ने पाया कि पीड़िता के गाल पर मारे-पीटे जाने के लाल निशान थे, जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई।

परिजनों का क्या कहना है?

पीड़िता के चाचा ने ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी भतीजी को अप्रैल 26, 2020 को हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। डिलीवरी होने के बाद दोनों बच्चों को एक दूसरे डॉक्टर (शिशु रोग विशेषज्ञ) के पास भर्ती कराया गया था। परिजनों ने बताया कि डॉक्टर बार-बार बोल रहे थे कि मरीज को दिल का दौरा पड़ा है, इसे लेकर जाओ। बाद में जब उन्होंने गाल पर निशान देखा तो उन्होंने डॉक्टर से इस सम्बन्ध में सवाल पूछे।

चूँकि, उस समय पीड़िता बेहोश थी, इसलिए उसने कहा उसे कुछ नहीं नहीं पता। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर और नर्स ने मिल कर उसकी पिटाई की है। परिजनों कहना है कि डॉक्टरों ने इस सम्बन्ध में अलग-अलग बातें कही। पहले उन्होंने कहा कि वो मरीज को होश में लाने के लिए बस थपथपा रहे थे, बाद में उन्होंने कहा कि वो बाथरूम में गिरने से जख्मी हुई है। इस सम्बन्ध में परिजनों ने सराय ख्वाजा थाना क्षेत्र में शिकायत दर्ज कराई है।

परिजनों का आरोप है कि थाना प्रभारी डॉक्टर पर कार्रवाई करने से हिचक रहे थे। पीड़िता के चाचा ने पुलिस पर सहयोग न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नेताओं और पत्रकारों के फोन आए हैं लेकिन अब तक किसी ने मदद नहीं की है। स्थानीय सपा-बसपा नेताओं ने भी उनसे संपर्क किया है लेकिन अभी तक किसी ने पीड़ित परिवार की मदद करने के लिए कुछ नहीं किया है। हालाँकि, डॉक्टर ने परिजनों के पास जाकर माफ़ी माँगी।

उनका कहना है कि डॉक्टर इस मामले में समझौता करने के लिए परिजनों के पास आए थे और जितना ख़र्च हुआ, वो सब वापस देने की पेशकश कर रहे थे। डॉक्टर ने माफ़ी भी माँगी। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर ने मरीज को हॉस्पिटल से निकाल दिया। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने हॉस्पिटल से मरीज को निकाला तो कम से कम एम्बुलेंस तो मुहैया कराया जाना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया। डॉक्टर के पास दो एम्बुलेंस हैं।

डॉक्टर मौर्या की क्लिनिक में पीड़िता का रिपोर्ट

पीड़िता को उसके चाचा बाइक से लेकर आए। उन्होंने कहा कि सर्जरी के बाद एक महिला मरीज को इस तरह बाइक पर लाने को उन्हें विवश होना पड़ा। अभी भी वो लोग मदद की आस में हैं क्योंकि परिवार ग़रीब है और एक बच्चा अभी भी हॉस्पिटल में भर्ती है। ऊपर से पीड़िता का इलाज चल रहा है सो अलग।

हालाँकि, डॉक्टर मौर्या ने इन आरोपों से साफ़ इनकार कर दिया है। ऑपइंडिया से बात करते हुए डॉक्टर ने बताया कि मरीज शिवानी बाथरूम में गिरने की वजह से जख्मी हुईं। उन्होंने कहा कि ये काफी संवेदनशील केस था और डिलीवरी में रिस्क होने के कारण वो मरीज को भर्ती नहीं करना चाह रहे थे लेकिन परिजनों ने हाथ-पाँव जोड़े तो उन्होंने मरीज को भर्ती किया। उनके बार-बार निवेदन करने पर सर्जरी किया गया।

डॉक्टर ने ख़बर का किया खंडन

डॉक्टर का कहना है कि दोनों बच्चों की डिलीवरी में दिक्कत आई क्योंकि एक बच्चा उलटा था और एक टेढ़ा था। उन्होंने बताया कि ये मात्र 7 महीने (30 हफ्ते) की प्रेग्नेंसी थी और परिजनों ने कहा था कि बच्चों को किसी तरह निकाल दिया जाए ताकि मरीज ज़िंदा बच जाए। हालाँकि, डॉक्टर का कहना है कि उन्होंने ‘बच्चों को किसी तरह निकाल’ लेने वाली बात स्वीकार नहीं कि क्योंकि ये मेडिकल के नियमों के ख़िलाफ़ था।

उन्होंने बताया कि मरीज की हालत जब अचानक से बहुत ज्यादा ख़राब हो गई, तब उनके पास लाया गया। पादरी रामाकांत दुबे के कहने पर डॉक्टर ने मरीज को यहाँ भर्ती किया। पादरी ने डॉक्टर से निवेदन किया था कि लॉकडाउन में परिवार को दिक्कत न हो, इसीलिए वो भर्ती कर लें। मरीज को खून की भी कमी थी। डॉक्टर चाहते थे कि 9 महीना पूरा होने के बाद डिलीवरी की प्रक्रिया की जाए। हॉस्पिटल में ‘कंसल्ट फॉर्म’ पर परिजनों से पहले ही हस्ताक्षर करा लिया गया था, जिसमें कहा गया था कि ऑपरेशन होने के बाद बच्चों को बचाने की गारंटी वो नहीं दे सकते।

डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने जाँच के बाद जब देखा कि मरीज को ‘सिबियर अबडॊमीनल पेन-7 ग्राम हीमोग्लोबिन’ था और प्रेग्नेंसी के अल्ट्रासाउंड में पाया गया कि गर्भ में दो जुड़वा बच्चे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों ने आधी-अधूरी ख़बर पढ़ कर उन पर अभद्र कमेंट्स किया है।

डॉक्टर मौर्या ने बताया कि उन्होंने ही बच्चों को शिशु रोग विशेषज्ञ के सिंह के पास आईसीयू में भर्ती कराने की सलाह दी थी। मरीज को दो बार दौरा आया था, जिसके बाद डॉक्टर को शक हुआ कि कहीं पहले से तो कोई समस्या नहीं है। बाद में परिजनों ने कहा कि उन पर भूत वगैरह आता है, जिसके किसी पादरी से इलाज चल रहा है। बाद में परिजनों ने पादरी के पास कॉल कर के मरीज के कान में ले जाकर दो बार प्रार्थना भी पढ़वाया।

इस मामले में यूपी के डीजीपी ओपी सिंह ने भी हस्तक्षेप किया है। उन्होंने डॉक्टर से बात कर के कहा कि परिवार ग़रीब है, इसीलिए वो उसकी मदद करें। डीजीपी ने पीड़ित परिवार से भी बात कर के उनकी सारी बातें सुनी। इसके बाद मरीज को डॉक्टर बीएस उपाध्याय के पास भर्ती कराया गया था। वहीं ऑपइंडिया द्वारा सम्पर्क किए जाने पर जौनपुर पुलिस ने बताया कि दोनों पक्षों की बात सुन कर उचित कार्रवाई की जा रही है। पुलिस ने कोई पक्षपात नहीं किया है।

डॉक्टर ने जानकारी दी कि बीएस उपाध्याय के हॉस्पिटल में हुए सी.टी स्कैन में पीड़िता को दो जगह ब्रेन में कैल्सीफाइड सिस्ट पाया गया है। डॉक्टर ने कहा कि वो इस अफवाह से दुःखी हैं और साथ ही पूछा कि क्या किसी मरते हुए व्यक्ति की जान बचाना गुनाह है? उन्होंने कहा कि परिजनों ने कहा था कि बिना माँ की बच्ची मर जाएगी और चारों तरफ से दबाव के बाद उन्होंने मरीज को भर्ती किया।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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