सुप्रीम कोर्ट के वकील और पशु अधिकार कार्यकर्ता शिराज कुरैशी ने मुस्लिमों के सबसे बड़े त्यौहार बकरीद से एक दिन पहले कहा, ”इस्लाम में जानवरों के साथ क्रूरता करना ‘हराम’ है।” न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बकरीद के जश्न में लाखों बेजुबान जानवरों की कुर्बानी को लेकर कुरैशी ने कहा कि जानवरों के प्रति क्रूरता, उन्हें प्रजनन के लिए बाधित करना, उनका वध करना, परिवहन और अपने फायदे के लिए उनको बंधक बनाना व उनका मांस खाना इस्लाम में हराम है।
वहीं, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) इंडिया के अनुसार, बकरीद से पहले पूरे मुंबई शहर में अनगिनत अस्थायी और अवैध बकरी बाजार खुल गए हैं। ऐसे भीड़-भाड़ वाले बाजार न केवल महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी किए गए सर्कुलर का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि कोरोना संकटकाल में ऐसे माहौल में स्थिति बेहद भयावह हो सकती है।
PETA India investigation reveals numerous illegal goat markets mushrooming up all over Mumbai in time for Eid.
— PETA India (@PetaIndia) July 19, 2021
PETA India has called for action: https://t.co/YNDf2WAZXP
महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जारी किए गए सर्कुलर के अनुसार, जानवरों की खरीद की अनुमति केवल ऑनलाइन और टेलीफोन के जरिए ही की जा सकती है। ईद के दौरान सभी मौजूदा पशु बाजारों को बंद रखने की अनुमति दी गई है।
पेटा इंडिया ने कहा कि उन्होंने मुंबई के अंधेरी, भायखला, गोवंडी, जोगेश्वरी, कुर्ला और मानखुर्द सहित विभिन्न क्षेत्रों में 23 अवैध पशु बाजारों की जाँच की। उन्होंने पाया कि एक लाख से अधिक बकरों को बिक्री के लिए असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात सहित कई राज्यों से यहाँ लाया गया है। पेटा ने सीएमओ को दी शिकायत में आरोप लगाया कि ऐसे बाजार और विभिन्न राज्यों से जानवरों का परिवहन कोविड प्रोटोकॉल और द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (पीसीए) एक्ट 1960, ट्रांसपोर्ट ऑफ एनिमल्स रूल्स, 1978 का उल्लंघन है।
पेटा इंडिया एडवोकेसी एसोसिएट प्रदीप रंजन डोले बर्मन ने कहा, “कोई भी धर्म किसी भी जीव की हत्या करना नहीं सिखाता। साल भर पशु संरक्षण कानूनों का पालन किया जाना चाहिए। खासतौर पर ईद के दौरान। पेटा इंडिया ईद के जश्न को पैसे, कपड़े, मिठाई, फल बाँटकर या अन्य तरीकों से मनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। इससे जानवरों को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है।”
जाँच के दौरान पेटा ने पाया कि कई जानवरों को छोटे स्थानों पर कैद करके रखा गया था, जहाँ वे ठीक से खड़े नहीं हो पा रहे थे, बैठ भी नहीं पा रहे थे। उनमें से कुछ आपस में लड़ रहे थे। इन बाजारों में कोई पशु चिकित्सक भी नहीं था, जिससे इन बाजारों में ऐसे पशुओं को साँस लेने में तकलीफ होती है। पेटा ने आरोप लगाया कि इन जानवरों को भोजन और पानी से भी वंचित रखा गया था।”
जाँच टीम ने जब खरीदारों और विक्रेताओं से बकरियों के परिवहन के लिए पशुओं के फिटनेस प्रमाण पत्र माँगे तो वे इसे नहीं दिखा पाए। यह जानवरों के परिवहन नियम, 1978 का उल्लंघन है। इस दौरान अधिकांश विक्रेता न तो मास्क नहीं पहने हुए थे और ना ही कोरोना गाइडलाइन का पालन कर रहे थे।