दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या हर साल सर्दियों में गंभीर रूप ले लेती है, जिसमें पराली जलाने की घटनाओं को प्रमुख कारण बताया जाता है। हालाँकि, इस साल सैटेलाइट डेटा से संकेत मिले हैं कि पराली जलाने के मामलों में भारी गिरावट आई है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में 2023 के मुकाबले 2024 में पराली जलाने की घटनाओं में 71% तक की कमी बताई गई। लेकिन विशेषज्ञों ने इन आँकड़ों पर सवाल उठाए हैं। उनका दावा है कि किसान सैटेलाइट निगरानी से बचने के लिए समय बदलकर पराली जला रहे हैं।
सैटेलाइट से बचने की रणनीति?
विशेषज्ञों ने पाया है कि किसान अब दिन के ऐसे समय में पराली जला रहे हैं जब निगरानी करने वाले सैटेलाइट उस क्षेत्र के ऊपर नहीं होते। नासा की फायर इनफॉर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (FIRMS) और अन्य सैटेलाइट्स का उपयोग आग की घटनाओं की निगरानी के लिए किया जाता है। ये सैटेलाइट्स दिन में केवल कुछ घंटों के लिए क्षेत्र की तस्वीर लेते हैं।
नासा के वैज्ञानिक हीरेन जेठवा ने हाल ही में खुलासा किया कि किसान पराली जलाने के समय को इस तरह से बदल रहे हैं कि सैटेलाइट उनका पता नहीं लगा पाते। हिरण जेठवा ने बताया कि किसान अब दोपहर बाद और शाम को पराली जला रहे हैं, जब सैटेलाइट्स का निगरानी समय समाप्त हो चुका होता है।
Today's GEO-KOMSAT A2 satellite images visually convince of late afternoon burning acticitivities in NW India, avoiding NASA satellite surveillance around 1:30 PM IST @VishnuNDTV @CBhattacharji @parthaabosu @jksmith34 @UrbanEmissions @avoiland @moesgoi pic.twitter.com/BJsidjNqzy
— Hiren Jethva (@hjethva05) October 29, 2024
यह निष्कर्ष दक्षिण कोरिया के जियो-स्टेशनरी सैटेलाइट GEO-KOMSAT 2A से मिले डेटा से पुष्टि हुआ, जिसने 2 बजे के बाद पंजाब में पराली जलने की घटनाओं में बढ़ोतरी दिखाई। कोरियाई जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स की मदद से पता चला कि किसान ज्यादातर पराली दोपहर बाद और शाम को जलाते हैं, जब नासा के सैटेलाइट वहां से गुजर चुके होते हैं।
Today first time in the season a massive increase in stubble burning incidences obesrved around noon to 2 pm. ~1000 fire counts from Suomi-NPP/VIIRS in Punjab alone (very little in Haryana). PM2.5 levels sky rocketed in Delhi reaching 1000 µg/m3 sending AQ to hazardous category. pic.twitter.com/dRaWexdwD9
— Hiren Jethva (@hjethva05) November 18, 2024
जमीनी हालात और सरकारी आँकड़ों में अंतर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब में 2021 में लगभग 79,000 पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज की गई थीं, जबकि 2023 में यह घटकर 32,000 रह गई। इस साल 10 नवंबर तक यह संख्या केवल 6,611 बताई गई। हरियाणा में भी मामलों में कमी आई है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि केवल घटनाओं की संख्या कम होने से समस्या खत्म नहीं होती।
नासा और दक्षिण कोरिया के सैटेलाइट्स से मिले डेटा में अंतर ने इन आँकड़ों को लेकर सवाल उठाए हैं। जहाँ नासा का डेटा दोपहर 1:30 से 2 बजे तक सीमित है, वहीं दक्षिण कोरियाई सैटेलाइट ने दिखाया कि पराली जलाने की ज्यादातर घटनाएँ दोपहर बाद और शाम को हुईं।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आँकड़ों की गिरावट पराली जलाने के असली मामलों को नहीं दिखाती। नासा के वैज्ञानिक हिरण जेठवा के मुताबिक, “अगर पराली जलाने की घटनाओं में इतनी कमी आई है, तो एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (AOD) यानी वायु में कणीय प्रदूषण के स्तर में गिरावट क्यों नहीं आई?” AOD के आँकड़े बताते हैं कि प्रदूषण का स्तर पिछले छह-सात सालों में स्थिर बना हुआ है।
दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ‘गंभीर’ श्रेणी में बना हुआ है। शुक्रवार (15 नवंबर 2024) को दिल्ली का AQI 428 रिकॉर्ड किया गया, जो इस सीजन का सबसे खराब स्तर है।
सरकारी प्रयासों पर फिरता दिख रहा है पानी
पंजाब सरकार ने पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें कंप्रेस्ड बायोगैस (CBG) प्लांट स्थापित करना भी शामिल है, जो पराली को ऊर्जा के रूप में उपयोग करने का स्थायी समाधान माना जाता है। लेकिन किसानों के विरोध के चलते केवल पाँच प्लांट ही काम कर रहे हैं, और वे भी पूरी क्षमता पर नहीं हैं। इसके अलावा, कृषि उपकरणों पर सब्सिडी देने और किसानों को जागरूक करने जैसे प्रयास भी किए गए। हरियाणा में इस दिशा में कुछ सफलता मिली है, लेकिन पंजाब में स्थिति में सुधार सीमित है।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी सुधार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को निर्देश दिया कि वे स्थाई सैटेलाइट्स जैसे जियो-स्टेशनरी सैटेलाइट्स से डेटा प्राप्त करें, ताकि दिनभर के दौरान पराली जलाने की घटनाओं पर निगरानी रखी जा सके। कोर्ट ने कहा कि इस डेटा का उपयोग तुरंत कार्रवाई के लिए किया जाना चाहिए।
भले ही आँकड़ों में पराली जलाने के मामलों में कमी दिखाई गई हो, लेकिन जमीनी हकीकत और प्रदूषण के स्तर में सुधार नहीं हो सका है। किसानों द्वारा सैटेलाइट से बचने की रणनीति ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। दीर्घकालिक समाधान के बिना, वायु प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ हर साल की तरह बढ़ती रहेंगी। पराली जलाना किसानों के लिए एक सस्ता और तेज तरीका है, जिससे वे अगली फसल की बुवाई के लिए खेत तैयार कर सकते हैं। हालाँकि, पराली जलाने के लिए वैकल्पिक समाधान जैसे कि बायोडिग्रेडेबल एजेंट्स, मशीनरी, और कृषि प्रबंधन कार्यक्रम मौजूद हैं, लेकिन इनका उपयोग सीमित है।