Sunday, December 22, 2024
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पहले हिंदुओं का कत्लेआम, फिर मंदिर को मुस्लिमों ने अपने घरों में मिला दिया: कुआँ से शिखर तक अकील अहमद का कब्जा, जानिए संभल में 1978 में दंगे कैसे भड़के

दंगे के बाद संभल के सांप्रदायिक ताने-बाने में गहरी दरार आ गई, और कई वर्षों तक इस इलाके में तनाव बना रहा। अब 46 साल बाद, एक 400 साल पुराना शिव मंदिर प्रशासन द्वारा कब्जे से मुक्त करवा लिया गया है, जिससे हिंदू समुदाय में कुछ उम्मीद जगी है।

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हाल ही में प्रशासन ने 400 साल पुराने शिव मंदिर को अवैध कब्जे से मुक्त कराया। बिजली चोरी की जाँच के दौरान यह मंदिर और इसके पास स्थित एक प्राचीन कुआँ मिला। प्रशासन ने बुलडोजर कार्रवाई के जरिए अकील अहमद के कब्जे से इस कुएँ और मंदिर को मुक्त कराया और पूजा-पाठ शुरू कराया। मंदिर में भगवान शिव, हनुमान और नंदी की प्राचीन मूर्तियाँ मिलीं।

सवाल यह है कि यह मंदिर 46 साल तक क्यों गायब था, और ऐसा क्या हुआ था जिसने इसे भुला दिया गया? इसकी कहानी 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़ी है, जिसने न केवल इस मंदिर को छीन लिया बल्कि हिंदुओं को मजबूर किया कि वे अपने घर-बार छोड़ दें। इस रिपोर्ट में हम अतीत के पन्नों को पलटते हुए संभल में दंगों की पूरी कहानी और वहां के हिंदुओं की दुर्दशा को विस्तार से जानेंगे।

संभल में पहले मंदिरों और हिंदू संस्कृति का था वर्चस्व

संभल कभी हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता था। खग्गूसराय, जहाँ यह मंदिर स्थित है, पहले हिंदू बहुल क्षेत्र था। लेकिन 1970 के दशक के उत्तरार्ध में स्थिति बदल गई। साल 1976 और 1978 के दंगों ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, संभल में आजादी के बाद 14 बड़े दंगे हुए। इनमें 1976 और 1978 के दंगे सबसे अधिक घातक थे।

1976 में मौलाना की हत्या के बाद दंगे

संभल में साल 1976 में जामा मस्जिद के मौलाना मुहम्मद हुसैन की हत्या से पहला बड़ा दंगा भड़का। रिपोर्ट्स के अनुसार, संसदीय रिकॉर्ड और एसएलएम प्रेमचंद की 1979 की प्रकाशित ‘मॉब वायलेंस इन इंडिया’ में दावा है कि हत्या एक हिंदू ने की थी, जिसके बाद पूरे संभल में हिंसा फैल गई। मौलाना के परिवार ने बाद में संभल छोड़ दिया। दंगों के बाद, खग्गूसराय क्षेत्र से हिंदुओं ने पलायन शुरू कर दिया। कहा जाता है कि 1976 में ही मंदिरों को ताले लगा दिए गए और खग्गूसराय धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन गया।

साल 1978 के भीषण दंगे

29 मार्च 1978 को संभल में एक और बड़ा दंगा हुआ। यह दंगा मंजर अली नाम के व्यक्ति और उनके साथियों द्वारा ट्रक यूनियन और डिग्री कॉलेज के मुद्दे पर की गई साजिश से शुरू हुआ। मंजर अली डिग्री कॉलेज की प्रबंधन समिति का सदस्य बनना चाहते थे, लेकिन प्रशासन ने उनकी मान्यता खारिज कर दी। दरअसल, तब 10 हजार रुपए देकर कॉलेज के मैनेजमेंट में लोगों को शामिल किया जाता था, लेकिन मंजर को मना कर दिया गया।

इसके बाद 28 मार्च 1978 को, कॉलेज में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कुछ मुस्लिम छात्राओं ने आरोप लगाया कि उन्हें दी जाने वाली उपाधियाँ आपत्तिजनक हैं। तनावपूर्ण माहौल में अगले ही दिन, मंजर अली और उनके समर्थकों ने बाजार में उत्तेजक नारेबाजी शुरू की। मंजर अली के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने दुकानों को जबरन बंद कराना शुरू किया। जब कुछ दुकानदारों ने इसका विरोध किया, तो लूटपाट, आगजनी और हत्या का सिलसिला शुरू हो गया।

इस दंगे में मुख्य रूप से खग्गूसराय, सर्राफा बाजार और गंज क्षेत्र प्रभावित हुए। मुरारी लाल नामक व्यक्ति की दुकान में आग लगा दी गई, जिसमें कई हिंदू परिवार फंस गए। दावा किया जाता है कि 10-12 हिंदू दंगों की आग में जलकर मारे गए। दंगे के दौरान, अफवाहें फैलाई गईं कि मस्जिद तोड़ी जा रही है और इमाम को मार दिया गया। इससे मुस्लिम समुदाय और अधिक आक्रोशित हो गया। इन दंगों में कुल 169 अभियोग दर्ज हुए, जिसमें 3 मुकदमे पुलिस वालों की तरफ से हुए, तो बाकी दोनों पक्षों यानी हिंदुओं और मुस्लिमों की तरफ से दर्ज कराए गए।

संभल में दंगों का लंबा इतिहास

संभल, उत्तर प्रदेश का एक ऐसा इलाका है जो सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की लंबी कड़वी यादों को अपने भीतर समेटे हुए है। 1947 के बाद से ही यहाँ हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच कई बार ऐसे टकराव हुए, जिन्होंने इस क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को झकझोर कर रख दिया।

साल 1956 और 1959 के दंगों में मामूली झड़पों से शुरू हुई घटनाओं ने धीरे-धीरे बड़े सांप्रदायिक तनाव का रूप ले लिया। खग्गूसराय और गंज बाजार जैसे इलाके तब पहली बार दंगे की आग में झुलसे, जहाँ व्यापारियों की दुकानें लूटी गईं और जला दी गईं। 1976 के दंगों ने तो जैसे संभल को पूरी तरह बदलकर रख दिया। जामा मस्जिद के मौलाना मुहम्मद हुसैन की हत्या ने पूरे क्षेत्र को सुलगा दिया। तो 1978 का दंगा भी बेहद भयावह था।

साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान संभल फिर से दंगों की चपेट में आ गया। खग्गूसराय और कोट बाजार में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं ने हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच खाई को और गहरा कर दिया। इन घटनाओं के बाद खग्गूसराय और गंज बाजार जैसे इलाकों से हिंदू परिवार बड़ी संख्या में पलायन करने लगे। 1976 से लेकर 1992 तक, संभल धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन गया।

इन दंगों ने न केवल हिंदुओं के घर-परिवार और व्यापार को प्रभावित किया, बल्कि उनकी धार्मिक आस्थाओं पर भी चोट पहुँचाई। खग्गूसराय का शिव मंदिर, जिसे अब 400 साल पुराना बताया जा रहा है, 1978 के दंगों के बाद से बंद पड़ा था। दंगे के दौरान अकील अहमद के परिवार ने मंदिर के शिखर से लेकर कुएँ तक पर कब्जा कर लिया गया और वर्षों तक इसका कोई अता-पता नहीं था। हाल ही में बिजली चोरी की चेकिंग के दौरान यह मंदिर फिर से सामने आया, तो प्रशासन ने इसे कब्जा मुक्त कराया। शिवलिंग और नंदी की मूर्तियों के साथ-साथ हनुमान जी की प्रतिमा भी यहाँ पाई गई और अब यहाँ पूजा-अर्चना शुरू हो गई है।

आज संभल एक ऐसा जिला है, जहाँ 77% आबादी मुस्लिम है। मंदिर के फिर से सामने आने के बाद हिंदू समुदाय में एक नई उम्मीद जगी है। मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू हो चुकी है, और प्रशासन ने इसे संरक्षित करने का वादा किया है। हालाँकि, उन दंगों की यादें और उनके जख्म अब भी स्थानीय लोगों के दिलों में ताजा हैं। कई लोग अब भी 1976 और 1978 की घटनाओं का जिक्र करते हुए मंजर शफी और मौलाना हुसैन के नामों को लेकर चर्चा करते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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