जब से सिस्टर लूसी कलापुरा ने जालंधर के बिशप फ्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ अन्य छह ननों के साथ विरोध करना शुरू किया है, तब से कैथोलिक क्रिश्चन सोसायटी फ्रांसिस्कन क्लेरिस्ट कॉन्ग्रिगेशन (FCC) द्वारा अक्सर संस्था के नियमों का हवाला देकर लूसी कलापुरा और इनके साथियों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की जाती है।
एफसीसी ने शनिवार को फिर से पीड़िता लूसी कलापुरा को एक चेतावनी पत्र भेजकर अपनी मानसिकता को बदलने के लिए कहा है। इस पत्र में यह भी कहा गया है कि यदि उसने बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर लगाए गए आरोप को वापस नहीं लिया तो उसे कॉन्ग्रिगेशन से ख़ारिज कर दिया जाएगा।
क्रिश्चयन कैथोलिक संस्था एफसीसी के ख़िलाफ़ जाकर बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर आरोप लगाए जाने की वजह से सभी छ: ननों को एफसीसी द्वारा उनके कथित अपराधों के लिए कई बार धमकियाँ दी गईं। इससे पहले, कैथोलिक चर्च ने सिस्टर कलापुरा को ‘चैनल चर्चा में भाग लेने’, ‘ग़ैर-ईसाई अख़बारों में लेख लिखने’ और कैथोलिक नेतृत्व के ख़िलाफ़ ‘ग़लत आरोप लगाने’ के लिए चेतावनी भेजी थी।
एफसीसी के अनुसार, नन लुसी कलापुरा ने इसके अलावा भी संस्था के ख़िलाफ़ जाकर कई अपराध किए हैं। उदाहरण के लिए चर्च की अनुमति के बिना कविताओं की एक पुस्तक प्रकाशित करना, एक चालक का लाइसेंस प्राप्त करना और एक कार ख़रीदना, अपनी पसंद के फेसबुक पोस्ट अपलोड करना, टीवी डिबेट में भाग लेना और चर्च की आलोचनात्मक टिप्पणी करना आदि।
सिस्टर लूसी को वायनाड में मंथावैदी से 260 किलोमीटर दूर अलुवा में एफसीसी मुख्यालय में अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया था। कलापुरा ने यह कहते हुए कि उसने कोई ग़लती नहीं की है, एफसीसी के मुख्यालय में जाने से मना कर दिया। कलापुरा ने यह भी कहा था कि फ्रेंको बिशप के ख़िलाफ़ होने वाले विरोध प्रदर्शन में वह फिर से भाग लेगी।
Franciscan Clarist Congregation Superior General issues 2nd canonical warning letter to Sister Lucy Kalapura; states ‘… invite you to change your mind&attitude sincerely…If you don’t respond positively I will be constrained to proceed with your dismissal from Congregation”.
— ANI (@ANI) February 16, 2019
जालंधर के रोमन कैथोलिक चर्च के बिशप फ्रेंको मुलक्कल पर मई 2014 में कुराविलांगड़ के एक गेस्ट हाउस में 44 वर्षीय नन के साथ बलात्कार करने और उसके बाद यौन शोषण का आरोप है। नन ने जून 2018 में एक शिक़ायत दर्ज की थी और यह भी दावा किया था कि उनकी शिक़ायतों के बावजूद, चर्च ने बिशप पर कोई कार्रवाई नहीं की। यही नहीं कैथोलिक संस्था भी बलात्कार के अभियुक्त बिशप के साथ खड़ी हो गई थी और बिशप को “निर्दोष आत्मा” के रूप में प्रस्तुत किया गया।
फ्रेंको बिशप को जाँच दल द्वारा उसके ख़िलाफ़ सबूत मिलने के बाद गिरफ़्तार कर लिया गया था, लेकिन बाद में उसे सशर्त ज़मानत पर रिहा कर दिया गया, जिससे उसे हर दो सप्ताह में एक बार जाँच टीम के सामने पेश होने और अपना पासपोर्ट सरेंडर करने के लिए कहा गया।