केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संशोधन के बाद ‘भारतीय न्याय संहिता’ यानी बीएनएस (BNS) का नया मसौदा मंगलवार (12 दिसंबर, 2023) को संसद में पेश किया। लोकसभा में पेश किए गए BNS (द्वितीय) विधेयक, 2023 के नए संस्करण में संसदीय समिति की सिफारिशों की अनदेखी करते हुए अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
दरअसल, बीएनएस ब्रिटिश युग के ‘भारतीय दंड संहिता’ (IPC) को बदलने के लिए प्रस्तावित है। इस मामले में सरकार ने संसदीय पैनल की सिफारिशों के बावजूद BNS विधेयक से धारा 377 और धारा 497 को बाहर करने का फैसला लिया है। धारा 377 प्रकृति के खिलाफ जाकर यौन संबंध बनाने तो धारा 497 व्यभिचार से जुड़ी है। इन दोनों धाराओं को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है।
इन धाराओं के प्रावधानों को अधिकारों का उल्लंघन और अवैध करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में व्यभिचार (विवाहेतर संबंध) यानी एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। हालाँकि, इसके आधार पर तलाक लिया जा सकता है। इस साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने समान-लिंग वाले जोड़ों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा दिया।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इन धाराओं को खारिज करने के साथ ही समलैंगिकों के बीच बने अप्राकृतिक यौन संबंध और व्यभिचार कहे जाने वाले सहमति से बने विवाहेतर यौन संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर हो गए। हालाँकि, देश की इस नई दंड संहिता यानी बीएनएस विधेयक में बलात्कार और यौन अपराधों के पीड़ितों से संबंधित पहचान या जानकारी का खुलासा करने को दंडनीय बनाने वाला एक नया प्रावधान पेश किया गया है।
इसके तहत बीएनएस विधेयक ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के प्रावधानों में एक नई धारा 73 जोड़ दी। इसके तहत अदालती कार्यवाही में बलात्कार और यौन अपराधों के सर्वाइवर्स से संबंधित पहचान या जानकारी का खुलासा करने पर 2 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
बीएनएस की धारा 73 के मुताबिक, “जो कोई धारा 72 में बताए गए अपराध के संबंध में किसी अदालत में चल रही किसी भी कार्यवाही के किसी भी मामले को अदालत की पूर्व अनुमति के बगैर मुद्रित या प्रकाशित करेगा, उसे कारावास की सजा दी जाएगी। इसे 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसे दंडित करते के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।”
हालाँकि, यह भी साफ कर दिया किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले को प्रिंट करना या छापना इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। धारा 72 यौन अपराध के पीड़ित की पहचान उजागर करने वाली सामग्री को छापने या प्रकाशित करने पर रोक लगाती है।
गौरतलब है कि बृज लाल के नेतृत्व वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने 4 दिसंबर, 2023 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें संसदीय पैनल ने विवाह की पवित्रता बनाए रखने के लिए धारा 377 को इसके रीड-डाउन फॉर्म में शामिल करने यानी समलैंगिक और बगैर सहमति के बनाए गए यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी। इसके साथ ही धारा 497 को बरकरार रखने की सिफारिश भी की थी।
धारा 497 के तहत, “जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाता है जो ये जानता है या जिसके पास ये विश्वास करने की वजह है कि वह किसी अन्य पुरुष की पत्नी है तो उस पुरुष की सहमति या मिलीभगत के बगैर यानी जिस पुरुष की वो पत्नी है से किया ऐसा संभोग बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, बल्कि दूसरे की पत्नी से संभोग करने वाले पुरुष व्यभिचार के अपराध का दोषी माना जाएगा है। उसे किसी एक वक्त के लिए कारावास, जिसे पाँच साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। ऐसे मामले में, पत्नी को बहकाने वाले के तौर पर सजा नहीं दी जाएगी।”