गुजरात में 27 फरवरी 2002 को हुई उस भयावह घटना को कोई भी हिंदू कभी नहीं भूल पाएगा। इस घटना को गोधरा कांड (Godhra Carnage) के नाम से जाना जाता है। 21 साल पहले आज ही के दिन गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के S6 कोच में कट्टरपंथी इस्लामिक जिहादियों ने आग लगा दी थी, जिसके कारण 59 निर्दोष हिंदुओं की मौत हो गई थी।
उस वक्त कट्टरपंथी इस्लामिक जिहादियों के हमले का शिकार हुए हिंदू परिवार अभी तक उस सदमे से उबर नहीं पाए हैं। कई परिवारों ने अपने परिवार के मुखिया और कमाने वाले सदस्यों को खो दिया। इनमें से कई ऐसे परिवार भी हैं, जिनके पास अब पैसा नहीं बचा है और कुछ परिवारों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। आज हम अपने लेख में अहमदाबाद के दो ऐसे ही परिवारों की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने गोधरा कांड में अपना सब कुछ गँवा दिया।
सोनी परिवार में कोई नहीं बचा
27 फरवरी को वस्त्राल में सुरेलिया एस्टेट के पास रहने वाले सोनी परिवार के दो सदस्यों की साबरमती एक्सप्रेस में मौत हो गई थी। इस नरसंहार में मनसुखभाई कांजीभाई सोनी और उनके 22 वर्षीय बेटे जेसलकुमार मनसुखभाई सोनी की जान चली गई।
गोधरा कांड के वक्त जेसल सोनी की बेटी महज 6 महीने की थी। उस दिन इस परिवार की बहू और सास दोनों विधवा हो गईं। बहू की उम्र काफी छोटी होने के कारण अपने ही समुदाय के भीतर उसका पुनर्विवाह करा दिया गया। वहीं, कुछ समय बाद जेसल सोनी की माँ और मनसुखभाई की पत्नी, जो परिवार की एकमात्र सदस्य बची थीं उनकी भी बीमारी से मृत्यु हो गई। इस प्रकार गोधरा कांड ने अहमदाबाद के इस सोनी परिवार का नामो निशान मिटा दिया।
गोधरा कांड में पांचाल परिवार के चार सदस्यों की मौत
सोनी परिवार की तरह ही रामोल के पांचाल परिवार की भी एक दुखभरी कहानी है। गोधरा कांड के दिन ट्रेन के उस डिब्बे में पांचाल परिवार के पाँच सदस्य पति हर्षदभाई हरगोविंदभाई पांचाल, पत्नी नीताबेन हर्षदभाई पांचाल और उनकी तीन बेटियाँ प्रतीक्षा, छाया और गायत्री बैठ हुई थीं। उनकी अन्य तीन बेटियाँ घर पर ही रहती थीं, क्योंकि वे बहुत छोटी थीं। इस्लामिक कट्टरपंथियों के हमले में पति-पत्नी और उनकी दोनों बेटियों प्रतीक्षा, छाया की मौत हो गई और गायत्री ने किसी तरह अपनी जान बचाई।
इस तरह गोधरा कांड के बाद पांचाल परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं बचा था, जो 15 साल से कम उम्र की 4 बेटियों का सहारा बन सके। इन बच्चियों के लिए जिंदगी पहले के जैसे नहीं रह गई।
यहाँ हमने केवल दो परिवारों की बात की है, जो इस गोधरा कांड के शिकार हुए थे। लेकिन इसमें जान गँवाने वाले अन्य 59 हिंदुओं के प्रत्येक के परिवार को अपूरणीय क्षति हुई है, जिसके कारण 21 साल बाद भी ये परिवार गोधरा कांड के सदमे से उबर नहीं पाए हैं।