Monday, November 4, 2024
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जिस भीड़ ने ‘हिन्दू काफिरों को जला दो’ चिल्लाते हुए 59 रामभक्तों को ज़िंदा जलाया, उसमें शामिल हसन को गुजरात हाईकोर्ट ने पैरोल पर रिहा किया

59 मौतों के आल्वा 48 लोग इस घटना में घायल भी हुए थे। गुजरात सरकार ने कहा कि दोषी की जमानत याचिका पेंडिंग है, ऐसे में उसे पैरोल नहीं दी जा सकती।

गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा में ट्रेन में हिन्दुओं को जलाने के दोषी एक शख्स को पैरोल देते हुए कहा है कि इसे सज़ा की अवधि के भीतर गिना जाना चाहिए, पेरोल देने का ये अर्थ नहीं है कि सज़ा को निलंबित कर दी गई है। जस्टिस निशा एम ठाकोर ने हसन अहमद चरखा को 15 दिनों की पैरोल देते हुए ये टिप्पणी की। वो फ़िलहाल साबरमती एक्सप्रेस में महिलाओं-बच्चों समेत 59 रामभक्तों को ज़िंदा जलाए जाने के मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहा है।

मार्च 2011 में सेशन कोर्ट द्वारा उसे सज़ा सुनाए जाते समय इसकी पुष्टि की गई थी कि वो एक पूर्व-नियोजित आपराधिक साजिश का हिस्सा था, जिसके तहत खतरनाक हथियारों और विस्फोटक रसायनों से लैस भीड़ ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’, ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ और ‘हिन्दू काफिरों को जला दो’ जैसे नारे लगाते सांप्रदायिक दुर्भावना से हुए साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन पर पत्थरबाजी की और पेट्रोल डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया।

59 मौतों के आल्वा 48 लोग इस घटना में घायल भी हुए थे। गुजरात सरकार ने कहा कि दोषी की जमानत याचिका पेंडिंग है, ऐसे में उसे पैरोल नहीं दी जा सकती। लेकिन, हाईकोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया। उसने अपनी बीवी के जरिए 60 दिनों की पैरोल की माँग की थी। उसने दावा किया कि उसकी बहनों के बेटे और बेटी की शादी है, ऐसे में मामा के रूप में उसका इसमें मौजूद रहा ज़रूरी है। उसकी जमानत याचिका फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।

हालाँकि, गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि पैरोल की अवधि भी सज़ा के तहत ही गिनी जाएगी। 2011 में स्पेशल SIT कोर्ट ने हसन के अलावा 19 अन्य को भी इस मामले में सज़ा सुनाई थी। साथ ही 11 अन्य को भी इस मामले में फाँसी की सज़ा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सज़ा को बरक़रार रखा था, जिसके खिलाफ दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। गोधरा में रामभक्तों को जलाए जाने के बाद गुजरात भर में हिंसा भड़क गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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