गुजरात हाई कोर्ट में एक महिला ने अपनी बेटी और जानवरों को ढूँढने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका लगा दी। महिला ने कोर्ट के सामने लगाई गई याचिका में कहा कि उसकी बेटी के साथ ही उसके जानवरों का अपहरण हुआ है जिनको ढूढ़ने के लिए वह यह याचिका लगा रही है। गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि वह जानवरों को मानव के तौर पर नहीं मान सकते और ना ही उनके लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण के आदेश दे सकते हैं।
जानकारी के अनुसार, गुजरात के सूरत की एक महिला ने गुजरात हाई कोर्ट के सामने लगाई याचिका में बताया कि गुंडों ने दो वर्ष पहले उसके घर में आग लगा दी थी और उसकी बेटी का अपहरण कर लिया था। यह लोग उसकी बेटी के साथ ही उसकी गाय, भैंस और मुर्गियों को भी ले गए थे। महिला ने इस सम्बन्ध में दो बार FIR भी दर्ज करवाई लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। महिला ने आरोप लगाया कि स्थानीय भूमाफिया के शह पर उसकी झोपडी भी बाद में गिरा दी गई।
जब पुलिस ने महिला की बेटी और मवेशियों को नहीं ढूँढा तो उसने कोर्ट के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका डाली। महिला के वकील ने हाई कोर्ट को बताया कि वह इन मवेशियों के माँ जैसी है, और उन्हें महिला को लौटाया जाना चाहिए ताकि उनकी जान की रक्षा हो सके।
हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि वह पक्षियों और जानवरों के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण का कानून उपयोग नहीं कर सकता। गुजरात हाई कोर्ट की एक बेंच ने महिला के वकील से कहा कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका से जानवरों को हटा कर आए तब इस पर दोबारा से सुनवाई होगी। हाई कोर्ट ने महिला के वकील से पूछा कि क्या उसने यह कानून है। कोर्ट ने महिला की बेटी की स्थिति के विषय में रिपोर्ट माँगी है।
गौरतलब है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण के तहत याचिका विशेषतः ऐसे मामले में लगाई जाती है जब यह शक हो कि किसी व्यक्ति को पुलिस ने बिना वारंट और कोर्ट के आदेश के बंद कर रखा है। बंदी प्रत्यक्षीकरण के तहत कोर्ट ऐसे किसी व्यक्ति को अपने समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश देता है। हालाँकि, इस मामले में महिला ने जानवरों के विषय में कोर्ट से सहायता माँगी थी, जो नियम के अनुरूप नहीं था। कोर्ट ने आदेश दिया कि वकील इस याचिका में संशोधन करे।