कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राएँ हिजाब पहन कर घुस सकती हैं या नहीं, इस पर उच्च-न्यायालय में सुनवाई चल रही है। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने अनुच्छेद-25(2) का जिक्र किया, जिसके अनुसार मजहब से जुड़े किसी भी मजहबी, वित्तीय, राजनीतिक या सेक्युलर गतिविधि को राज्य रोक सकता है। मजहब से जुड़े किसी मूल प्रथा को भी रेगुलेट जा सकता है, अगर उससे स्वास्थ्य या नैतिकता से वो जुड़ा हो। बुर्का पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि हिजाब से सार्वजनिक व्यवस्था को कोई नुकसान नहीं पहुँचता, इसीलिए इसकी अनुमति दी जा सकती है।
उन्होंने केरल हाईकोर्ट का एक निर्णय पढ़ते हुए सुनाया कि किसी प्रथा के कारण या भावनाओं से जुड़ाव को ही नहीं, बल्कि वो हमेशा से किसी मजहब के इतिहास में रही है और समाज से जुड़ी हुई है – ये भी देखना है। उन्होंने अदालत से अपील की कि वो इस मामले में नहीं पड़े कि कुरान में जो भी लिखा है वो अनिवार्य मजहबी प्रथा है या नहीं। उन्होंने तीन तलाक जजमेंट के एक हिस्सा पढ़ कर सुनाया, जिसमें लिखा है – इस्लाम कभी कुरान विरोधी नहीं हो सकता। कर्नाटक हाईकोर्ट का सवाल था कि क्या कुरान में बताई गई सभी बंदिशें अनिवार्य मजहबी प्रथा के अंतर्गत आती हैं?
अधिवक्ता कामत ने कहा कि जो कुरान में बुरा है, वो शरीयत में अच्छा नहीं हो सकता। उन्होंने दावा किया कि हिजाब को लेकर खुद कुरान ने इसे अनिवार्य बताया है, इसीलिए किसी अन्य अथॉरिटी की मान्यता की ज़रूरत नहीं। उन्होंने किसी विधायक के कमिटी का हिस्सा होने से भी आपत्ति जताई और कहा कि ये कमिटी इन चीजों के बारे में निर्णय नहीं ले सकती। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक व्यवस्था किसी MLA की कमिटी के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। जब हाईकोर्ट ने उनसे किसी सुप्रीम कोर्ट निर्णय के बारे में पूछा जिसमें विधायक के किसी कमिटी में रहने के खिलाफ कुछ लिखा हो, तो वो नहीं बता पाए।
CJ : We have made appeals to media. We can put off the live streaming if you all say. That is in our hands. We can’t stop the media. As far as elections, you are not a voter of those states.
— Live Law (@LiveLawIndia) February 14, 2022
Justice Dixit says election issues are to be decided by ECI
#KarnatakaHighCourt
एडवोकेट जनरल ने ये भी ध्यान दिलाया कि सरकारी आदेश का जो कन्नड़ से अंग्रेजी वाला अनुवाद याचिकाकर्ताओं ने पेश किया, वो गलत है। खुद जस्टिस दीक्षित ने इसे देख कर कहा कि इसमें कही भी ‘पब्लिक ऑर्डर’ नहीं लिखा है। उन्होंने कॉमन सेन्स लगाने की बात करते हुए कहा कि कभी-कभी शब्दों का एकदम से वही अर्थ नहीं होता। एक वकील ने इस मामले में मीडिया और सोशल मीडिया को इस मामले पर टिप्पणी करने से रोकने का आदेश देने का निवेदन किया क्योंकि 5 राज्यों में चुनाव चल रहे हैं। हालाँकि, हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग से निवेदन आने पर ही इस पर विचार किया जाएगा।
कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई: जानिए क्या-क्या कहा गया
कर्नाटक हाईकोर्ट में राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का पहन कर अनुमति दिए जाने को लेकर सुनवाई चल रही है। मुस्लिम छात्राओं और उनके अभिभावकों को स्कूल-कॉलेजों में हिजाब या बुर्के की अनुमति न दिए जाने पर आपत्ति है। इसके लिए विरोध प्रदर्शन किए गए और हिंसा भी हुई। मुख्य न्यायाधीश ने राज्य की जनता को जिम्मेदार व्यवहार करने की सलाह देते हुए मीडिया से भी शांति और सौहार्दता की दिशा में प्रयास करने की अपील की। अधिवक्ता देवदत्त कामत ने बुर्का पक्ष की तरफ से अपनी बात रखी।
उन्होंने दावा किया कि कर्नाटक सरकार का ये कहना कि अनुच्छेद-25 के तहत हिजाब पहनने के अधिकार की सुरक्षा नहीं है, गलत है। उन्होंने पूछा कि क्या एक विधायक की अध्यक्षता वाली ‘कॉलेज डेवलपमेंट कमिटी (CDC)’ ये निर्णय ले सकती है कि क्या पहनना है? कामत ने कहा कि लोगों के मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा राज्य का कर्तव्य है और वो इस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते। कामत ने केरल हाईकोर्ट का एक जजमेंट भी सुनाया, जिसमें लड़कियों को परीक्षा के दौरान हिजाब पहनने की अनुमति दी गई थी।
उन्होंने दावा किया कि हिजाब को एक अनिवार्य मजहबी प्रथा बताया गया था। उन्होंने केरल हाईकोर्ट का जजमेंट पढ़ते हुए सुनाया कि कुरान और हदीथ के हिसाब से अधिकारों और कर्तव्यों को घटा कर अल्लाह के निर्देश पर व्यवहारों का एक सेट बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि अदालत को ये बताना है कि हिजाब पहनना मजहबी प्रथा के अंतर्गत आना है या नहीं, या फिर अनुच्छेद 25(1) के तहत इसे रेगुलेट किया जा सकता है या नहीं। कामत ने कुरान के चैप्टर 24 में से आयत 31 पढ़ के सुनाया।
इसमें लिखा है, “मुस्लिम महिलाओं से कहो कि वो अपनी नजरें नीची करें और अपनी शुद्धता की रक्षा करें। वो अपनी शृंगार को न दिखाएँ। अपनी छाती पर कपड़े रखें। अपने पाँव को न उठाएँ।” उन्होंने दावा किया कि उडुपी की छात्राएँ एडमिशन के समय से ही हिजाब पहन रही हैं। उन्होंने कहा कि छात्राएँ तय यूनिफॉर्म के साथ ही हिजाब पहनना चाह रही हैं। उन्होंने कहा कि केंद्रीय विद्यालय ड्रेस के समान रंग के हिजाब की अनुमति देते हैं। कामत ने इस्लामी मुल्क मलेशिया के जजमेंट का भी हवाला दिया।
वकील कामत का कहना है कि राज्य ये तय नहीं कर सकता कि कोई हिजाब पहनेगा या नहीं। उन्होंने कहा कि किसी कॉलेज के डेवलपमेंट कमिटी की कोई वैधानिक मान्यता नहीं होती है। उन्होंने कहा कि अगर कुरान कहता है कि हिजाब अनिवार्य है तो अदालत को इसे मानना ही पड़ेगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि सायरा बानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि तीन तलाक कुरान में वैध नहीं है। कोर्ट ने जब पूछा कि क्या क़ुरान द्वारा कही गई सभी चीजें पवित्र हैं, तो कामत ने इसे बड़ा मुद्दा बताया।