हमारे मुल्क में एक पंथ, एक समुदाय, एक संस्कृति या एक ही धर्म पर प्रयोग करना एक तरह की परंपरा बन गई। त्यौहारों के मौसम में इस परंपरा का आकार दोगुना हो जाता है और संयोग देखिए मात्र एक ही धर्म से जुड़े पहलुओं के साथ ही ऐसा होता है।
नवरात्र में रचनात्मकता की आड़ लेकर हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करने का और करोड़ों लोगों की आस्था को ठेस पहुँचाने का इससे बेहतर अवसर क्या होगा। इसी कड़ी में केरल की एक फोटोग्राफर ने एक पोर्ट्रेट तैयार किया और उसके हाथ में शराब की बोतल और गाँजा थमा दिया। मामला जब गरमाया तो क्षमा माँग कर तस्वीरें डिलीट कर दी… जैसे बात खत्म!
शुरुआत में डिया जॉन नाम की फोटोग्राफर ने लाल साड़ी में एक महिला की तस्वीर साझा की। तस्वीर में महिला गाँजा और शराब का सेवन कर रही है। तस्वीर में उसके पास शंख और त्रिशूल भी है। इसके अलावा एक कमल का फूल भी है, यानी इस पोर्ट्रेट में उस महिला को देवी के रूप में दिखाने का प्रयास किया। इतना ही नहीं, इस तस्वीर के साथ काफी अपमानजनक शब्दों का ‘कैप्शन’ लिखा हुआ था।
इस मुद्दे पर टाइम्स नाउ से बात करते हुए केरल स्थित फोटोग्राफर ने कहा कि वह अपने सहयोगी और दोस्त (अथिरा, जैकब अनिल, ज़ोहेब ज़ई और अक्षय रजनिथ) के साथ महिला और आज़ादी के विषय पर खोजबीन कर रही थी। इसके बाद उसने कहा कि हमारे समाज में आम तौर पर ऐसी मान्यता है कि महिलाएँ आज्ञाकारी होती हैं और उन्हें आज़ादी नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन उनके भी सपने होते हैं और उन्हें भी आज़ादी मिलनी चाहिए।
इसके बाद फोटोग्राफर डिया ने कहा, “महिलाओं को देवी का तमगा मिला हुआ है, हम इसे पलटना चाहते थे। हमने अपनी तस्वीर या पोस्ट में किसी देवी का नाम नहीं लिखा और न ही किसी धर्म के पहलू का कोई उल्लेख किया।” (सही बात है! इन मासूमों को कैसे पता होगा कि त्रिशूल और शंख किस धर्म के लिए प्रतीकात्मक हो सकते हैं!)
तस्वीर के कैप्शन में यह लिखा था, “महिलाओं को देवी माना जाता है लेकिन उनके साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है? अक्सर उन्हें पवित्रता, निर्दोष और सहिष्णुता के पैमाने से होकर गुज़रना पड़ता है और उनके व्यक्तित्व को निर्वस्त्र किया जाता है। क्या यह सही समय नहीं, उनकी इंसानियत को स्वीकार करने का।”
इस मामले के प्रकाश में आने के बाद विवाद शुरू हुआ। इतना स्पष्ट था कि उस तस्वीर में देवी को प्रतीकात्मक रूप में शराब और गाँजे का सेवन करते हुए दिखाया गया। इसके बाद कोच्चि स्थित मंदिर मुक्कूतिल भगवती मंदिर ने शनिवार (24 अक्टूबर 2020) को मराडू पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत में उन्होंने फोटोग्राफर पर धार्मिक भावनाएँ और आस्था को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया। मुक्कूतिल भगवती मंदिर के सचिव और पेशे से अधिवक्ता मधू नारायण ने भी टाइम्स नाउ से बता करते हुए इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा, “मैंने इस प्रकरण में शिकायत दर्ज कराई है।”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ शिकायत में ऐसा कहा गया है कि तस्वीर में देवी को अपमानजनक रूप में दिखाया गया है और उनकी तुलना वेश्याओं से की गई। तस्वीर में देवी को गाँजा तैयार करते हुए और त्रिशूल और शंख के साथ शराब की बोतल लिए हुए दिखाया गया है। इसके अलावा उस पोस्ट में नवरात्र की शुभकामनाएँ भी दी गई थीं, यानी इसका मतलब साफ़ था कि उन्होंने तस्वीर में मौजूद महिला को दुर्गा के रूप में दर्शाया था।
शिकायत में इस बात का भी ज़िक्र है कि यह सिर्फ और सिर्फ रचनात्मकता की आड़ लेकर हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुँचाने का घटिया प्रयास के अलावा और कुछ नहीं था। नवरात्र के दौरान इस तरह की तस्वीरें साझा करने का मतलब स्पष्ट है कि लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बाँटा जा सके और समाज में अशांति फैलाई जाए।
अधिवक्ता मधू नारायण ने शिकायत के अंतिम हिस्से में लिखा, “जो पोस्ट की गई थी, उसमें से एक ठीक थी लेकिन दूसरी में देवी को शराब और गाँजे का सेवन करते हुए दिखाया गया था। हमें इस बात का इंतज़ार है कि पुलिस इस मामले में जल्द से जल्द जाँच शुरू करे, जल्द ही यह मामला साइबर सेल को भेजा जाएगा। इस मामले में कुछ दिनों के भीतर कानूनी कार्रवाई होगी।” इसके अलावा कई अन्य लोगों ने भी इस मामले में शिकायत दर्ज कराई है।
इतने विवाद के बाद डिया जॉन ने तस्वीर हटा कर पोस्ट डिलीट कर दी और अपनी इस हरकत के लिए माफ़ी भी माँगी।
फ़िलहाल उन विवादित तस्वीरों को डिलीट किया जा चुका है लेकिन फिर भी कई सवाल बचे रह जाते हैं। रचनात्मकता की आड़ लेकर एक धर्म से जुड़ी चीज़ों पर अपनी दोयम दर्जे की मानसिकता का प्रदर्शन करना कितना सही हो सकता है। इस तरह के प्रयास नए नहीं हैं, ख़ास कर जब भी कोई हिन्दू त्यौहार या आयोजन नज़दीक होता है, इस तरह के रचनाधर्मी सक्रिय हो जाते हैं।
इसे महिलाओं की आज़ादी और महिला सशक्तिकरण से जोड़ने वालों के लिए भी यह समझना न जाने कितना मुश्किल है कि केवल मादक पदार्थों को आगे रख देने का अर्थ महिलाओं को आज़ादी देना नहीं होता है। उसके तमाम तरीके हैं, किसी भी सूरत में शराब और गाँजे जैसी चीज़ों से कहीं बेहतर होंगे। महिलाओं के मुद्दे पर होने वाले विमर्शों की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि उन्हें स्वछंदता के नाम पर शराब और गाँजे तक सीमित कर दिया जाता है।