उत्तराखंड के हल्द्वानी में गुरुवार (8 फरवरी, 2024) को अवैध कब्ज़ा हटाने गए प्रशासन पर भीषण हमला हुआ था। बनभूलपुरा क्षेत्र में हुए इस हमले में पत्थरबाजी के अलावा तलवारें और गोलियाँ तक चलीं। इस्लामी भीड़ द्वारा हजारों नागरिकों, सैकड़ों पुलिसकर्मियों और दर्जनों पत्रकारों के प्राण संकट में डालने वाली इस हिंसा का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक बताया जा रहा है। अभी तक पुलिस ने कुल 36 दंगाइयों को गिरफ्तार किया है और बाकियों की तलाश जारी है।
ऐसे में कुछ ऐसे नाम ऐसे सामने आए हैं जिन्होंने अपने प्राणों को संकट में डाल कर न सिर्फ दंगाइयों को अधिक नुकसान करने से रोका बल्कि पुलिसकर्मियों तक की जान बचाई। अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में ऑपइंडिया की टीम हल्द्वानी के उस हिन्दू बहुल गाँधीनगर क्षेत्र में पहुँची जहाँ लोगों के प्रतिरोध के चले हिंसक भीड़ आगे शहर में नहीं घुस पाई।
जब हम गाँधीनगर पहुँचे तब वहाँ उत्तराखंड पुलिस के साथ पैरामिलिट्री के जवान तैनात मिले। किसी को भी गलियों में भीड़ जुटा कर खड़े होने की इजाजत नहीं थी। पुलिस के सायरन लगातार गूँज रहे थे। लोग अपने-अपने घरों में थे। गलियों में पत्थरबाजी के निशान साफ देखे जा सकते थे। नालियों में पत्थरों के साथ ईंटों के टुकड़े पड़े थे जो 8 फरवरी को उन्मादी भीड़ द्वारा दिखाई गई क्रूरता का नजारा पेश कर रहे थे। पुलिस ने हमें गाँधीनगर पार कर के वनभूलपुरा क्षेत्र में घुसने से रोक दिया।
हमने गाँधीनगर में ही जानकारियाँ जुटाईं तो वहाँ ऐसे लोग मिले जिन्होंने शहर को बचाने के लिए खुद का जीवन खतरे में डाल दिया था।
हमने दिया पुलिसकर्मियों को फर्स्ट एड
गाँधीनगर में हमें अपने घर के आगे बैठे मनीष सोनकर दिखे। मनीष के सिर पर पट्टी बँधी थी। उन्होंने हमें बताया कि घटना के दिन पुलिसकर्मी और नगर निगम स्टाफ भागते हुए उनकी गली में आए। हजारों की भीड़ उनका पीछा कर रही थी। मनीष ने अपने घर के दरवाजे खोल दिए जिस से तमाम पुलिस वालों व नगर निगम स्टाफ अंदर आ गए। तब मनीष के परिजनों ने उन पुलिस वालों की मरहम-पट्टी की। उनको खाना और चाय दिया गया।
कई महिला स्टाफ ने कहा, “वो हमें मार डालेंगे। हमें बचा लो। हमारे कपड़े तक फाड़ने की कोशिश हुई।” लगभग सभी पुलिस वालों के गहरे घाव लगे थे जहाँ से खून बह रहा था।
मनीष का दावा है कि हिंसक भीड़ पत्थरों, पेट्रोल बम और तलवारों से लैस थी। औरतों और बच्चों को आगे कर दिया गया था। हमले के लिए छतों की ओट ली गई थी। जब मनीष को लगा कि हमलावर भीड़ उनके मोहल्ले में घुस कर पुलिस वालों व अन्य लोगों को मार डालेगी तब वो अपने साथियों सहित आगे बढ़े। मोहल्ले वालों के प्रतिरोध से न सिर्फ हमलावर भीड़ रुकी बल्कि थोड़ी देर के बाद पीछे भी हटी। बाद में बैकअप फ़ोर्स आने पर घायल जवानों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। खुद मनीष प्रतिरोध करते हुए लगे पत्थर की चोट से बेहोश हो गए थे।
23 साल के ऋतिक ने भी किया मुकाबला
मनीष के बाद गाँधीनगर में हमें 23 वर्षीय ऋतिक मिले। ऋतिक ने बताया कि अगर हमलावर उनके मोहल्ले और पुलिस के ऊपर पत्थर चलाएँगे तो सामने वाला चुपचाप कैसे देख सकता है। भीड़ में से ऋतिक ने पहचाना कि अधिकतर हमलावर स्थानीय थे जो कि गाड़ी आदि चलाने का काम करते थे। इसमें बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ भी शामिल थीं। ये हमलावर सामान्य दिनों में स्थानीय हिन्दुओं से यार-दोस्त के रूप में मिलने आते थे। ऋतिक का दावा है कि लाठी लिए पुलिस खुद को भी इसलिए नहीं बचा पाई क्योंकि हमलावरों ने इसकी तैयारी कई महीनों पहले की थी। ऋतिक के चेहरे और हाथों पर पत्थर लगे हैं।
अपने जवानों के लिए कुछ भी कर सकते हैं
गाँधीनगर की एक अन्य गली में हमें आर्यन मिले। आर्यन का हाथ टूटा हुआ है। उन्होंने हमें बताया कि ‘अल्लाह हू अकबर’ का नारा लगाती हिंसक भीड़ का जो रूप उन्होंने देखा वो अक्सर फिल्मों में ही नजर आता है। आर्यन के घर में शरण पाई एक महिला पुलिसकर्मी ने रोते हुए उन्हें बताया था कि हिंसा में उनकी अँगूठी तक छीन ली गई। वहीं एक अन्य पुलिसकर्मी जब भाग नहीं पाई तो वो एक नाले में छिप गई और बैकअप फ़ोर्स पहुँचने के बाद ही वहाँ से निकली। हमले के लिए रेलवे लाइन पर बिछे पत्थर पहले से बटोर कर रख लिए गए थे। साजिशन पहले से लाइट काट कर के अँधेरा कर दिया गया था।
आर्यन ने हमें आगे बताया कि जब पुलिसकर्मी अपनी जान बचा कर लौट कर भाग रहे थे वो वापसी की रास्तों में हमलावरों ने अपने पुराने वाहनों को आग लगा दी थी। दावा है कि सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ पूरी भीड़ में एक भी बुजुर्ग किसी हमलावर को रोकते या समझाते नहीं दिखा। हमलावरों में कई मर्दों ने तो खुद को छिपाने के लिए बुर्का तक पहन रखा था। हमने आर्यन से पूछा कि पुलिस वालों की रक्षा में घाव खाने पर मन में क्या विचार आ रहे? इस पर आर्यन ने कहा, “हमारे जवानों के साथ ऐसा होगा तो देखा नहीं जा सकता। ऐसा कुछ बर्दाश्त नहीं हो सकता मुझ से। हम अपने जवानों के लिए कुछ भी कर सकते हैं।”
‘जय श्री राम’ बोल कर किया दंगाइयों का मुकाबला
गाँधीनगर के वार्ड नंबर 27 में रहने वाले अमरदीप सोनकर का सिर फटा मिला। वो बिस्तर पर लेटे थे और उनके सिरहने के पास उनकी 2 बेटियाँ बैठी थीं। दवा खाने के बाद अमरदीप ने लड़खड़ाती आवाज में हमसे बात की। अमरदीप ने भीड़ में से पहचान कर हमें कुछ नाम गिनाए जिसमें अलीबाबा, जावेद, कलीम और अजीम आदि हैं। पुलिस वालों की जान लेने पर आमादा हिंसक भीड़ को अमरदीप ने साथियों सहित ‘जय श्री राम’ का नारा लगा कर रोका। अमरदीप का इलाज सरकारी खर्च पर हो रहा है। उनका दावा है कि अगर गाँधीनगर के हिन्दुओं ने आगे बढ़ कर हिंसक भीड़ को न रोका होता तो शायद पूरा शहर जला दिया जाता।
घायल पति के साथ पुलिस वालों के इलाज में जुटी थीं अमरदीप की पत्नी
ऑपइंडिया ने अमरदीप की पत्नी से भी बात की। उन्होंने बताया कि घटना के दिन उनका घर घायल महिला-पुरुष पुलिसकर्मियों से भरा हुआ था। हर कोई बदहवास था क्योंकि लगभग सभी के कहीं न कहीं चोट आईं थी जहाँ से खून बह रहा था। इसी समय खुद अमरदीप भी घायल हो कर साथियों द्वारा घर लाए गए। अमरदीप की पत्नी ने अपने पति और पुलिसकर्मियों की अपने स्तर से इलाज और सेवा एक साथ की। उनको संतोष और ख़ुशी है कि अब सभी पुलिसकर्मी सुरक्षित हैं।
दुपट्टा उतार कर बनाई पट्टी
हमें गाँधीनगर में ही पूजा सोनकर मिलीं। उन्होंने बताया कि 8 फरवरी को उनकी पूरी गली शरण माँगते पुलिसकर्मियों से भरी हुई थी। सभी ने अपने दरवाजे खोल दिए थे। हमले की खबर सुन कर जहाँ मोहल्ले के तमाम मर्द एकजुट हो कर दंगाइयों को रोकने चले गए थे वहीं महिलाएँ घायल पुलिस वालों के इलाज में जुट गईं थीं। कुछ पुलिस वालों का बहता खून देख कर पट्टी न होने पर पूजा ने घाव पर अपना दुपट्टा उतार कर बाँध दिया था। वहीं कई अन्य महिलाओं ने भी अपनी शॉल आदि घायल पुलिस वालों के घाव पर बाँधी।
शुभम के भाई और चाचा दोनों घायल
गाँधीनगर के रहने वाले शुभम गुप्ता हमें अस्पताल में अपने परिजनों का इलाज करवाते मिले। उन्होंने बताया कि दंगाइयों से घायल पुलिसकर्मियों को बचाते हुए उनके चाचा और भाई दोनों घायल हैं। पत्थर लगने से शुभम के भाई को 16 टाँके लगाने पड़े। उन्होंने बताया कि हमलावरों के हाथों में भैंसों को काटने वाले चापड़ मौजूद थे। इसी से हुए हमले में कई वर्दी वालों को गहरे घाव हुए। उन्होंने यह भी देखा कि मौलाना जैसी शक्ल वाले एक व्यक्ति ने पुलिस की गाड़ी के नीचे पेट्रोल डाल कर आग लगा दी थी।
हिंसक भीड़ द्वारा महिलाओं को आगे किए जाने से पुलिस भी कार्रवाई करने में थोड़ा हिचक रही थी। शुभम ने यह भी बताया कि हिंसा में भले ही कुछ बाहरी तत्व शामिल हुए हों पर अधिकतर बनभूलपुरा के स्थानीय निवासी ही दिख रहे थे।
भगत सिंह के फैन और घरों में हर तरफ देवताओं की तस्वीरें
दंगाइयों से लड़े तमाम युवकों में से कुछ ऐसे भी थे जो खुल कर सामने आने से हिचकिचा रहे थे। उन्हीं में से एक ने खुद को क्रांतिकारी भगत सिंह का फैन बताया। उन्होंने सीना खोल कर टैटू भी दिखाया जिसमें सरदार भगत सिंह छपे हुए हैं। बिना कैमरे के बातचीत करते हुए सरदार भगत सिंह के इस फैन ने हमसे कहा कि वो अपने देश के जवानों के लिए जान भी दे सकते हैं। साथ ही उन्होंने आगे बताया कि 8 फरवरी को पुलिस वालों की जान बचाते हुए अगर उनके प्राण चले जाते तो भी उन्हें ख़ुशी होती।
गाँधीनगर में हिंसक भीड़ का मुकाबला करने वाले अधिकतर लोग दलित समुदाय से हैं। उनके घरों में हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें हर कमरे में लगी हुईं हैं। अधिकतर लोगों के हाथों में कलावा और गले में रुद्राक्ष की माला भी दिखी। ज्यादातर ने खुद को बजरंग बली का भक्त बताया।
फ़िलहाल हमलावरों का मुकाबला करते हुए घायल हिन्दू समाज के अधिकतर लोगों का इलाज अलग-अलग जगहों पर चल रहा है। घायलों में कई लोगों की जानकारी प्रशासन को न होने की वजह से वो अपने खुद के खर्च से इलाज करवा रहे हैं। हालाँकि सभी के चेहरे पर संतोष के भाव हैं कि उन्होंने न सिर्फ दंगाइयों से शहर को बचाया बल्कि अपने प्रदेश की रक्षा कर रहे पुलिस वालों के भी काम आए। ऑपइंडिया की टीम ने पूरे हल्द्वानी में न सिर्फ आम जनता बल्कि खुद पुलिस वालों के मुँह से कहते सुना कि गाँधीनगर के लोगों ने गजब की बहादुरी दिखाई।