Monday, September 9, 2024
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‘जो हम हैं, उसे बताने में दिक्कत क्या’: काँवड़ मार्ग के हिन्दू व्यापारियों को स्वीकार है प्रशासन का आदेश, बोले- वे (मुस्लिम) फर्जी नाम रख छीनते हैं हमारा काम

ऑपइंडिया ग्राउंड पर उतरा तो पता चला कि दुकान पर नाम लिखने वाले आदेश से पश्चिम उत्तर प्रदेश के सिर्फ अधिकतर मुस्लिम दुकानदारों को आपत्ति थी। ज्यादातर हिन्दू दुकानदार इस फैसले से खुश हैं और इसे परमानेंट लागू करने की चाहत रखते हैं।

उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में इस बार काँवड़ यात्रा के मार्ग में प्रशासन ने दुकानदारों को उनके असली नाम और पहचान के साथ दुकानदारी करने के निर्देश दिए थे। इस फैसले पर काफी हो हल्ला मचा और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन के फैसले पर अंतरिम रोक लगाते हुए शासन से अपना पक्ष रखने को कहा है। ऑपइंडिया ने इस मामले की जमीनी पड़ताल की तो सारांश में सामने आया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के सिर्फ अधिकतर मुस्लिम दुकानदारों को ही प्रशासन के इस फैसले से आपत्ति थी। ज्यादातर हिन्दू दुकानदार इस फैसले से खुश हैं और इसे परमानेंट लागू करने की चाहत रखते हैं।

फेब्रिकेशन के काम में भी नकली नाम

काँवड़ यात्रा में खींचे जाने वाले रथों को तैयार करने वाले दिनेश कुमार ने ऑपइंडिया से बात की। दिनेश कुमार द्वारा तैयार किए गए रथ मुज़फ्फरनगर, मेरठ और हरिद्वार में दर्जनों की संख्या में देखे जा सकते हैं। उनकी दुकान का नाम माँ हरसिद्धि देवी फेब्रिकेशन है। यह दुकान गाजियाबाद में मौजूद है। दिनेश कुमार ने बताया कि उनके काम में लोहे की कटाई और वेल्डिंग आदि प्रमुख है। उनका दावा है कि अब उनके व्यापर में भी मुस्लिम पक्ष के लोग नाम बदल कर बड़ी तादाद में शामिल हो चुके हैं।

मुस्लिमों के घरों में आबादी ज्यादा इसलिए कारोबार पर उनकी पकड़ मजबूत

दिनेश कुमार ने हमें बताया कि फेब्रिकेशन के काम में उनको लगातार घाटा हो रहा था क्योंकि मुस्लिम दुकानदार अपनी दुकानों का नाम हिन्दू देवी-देवताओं पर रख कर कारोबार कर रहे हैं। इस वजह से भी दिनेश के ग्राहक टूट कर उनके पास जा रहे हैं। वहीं दिनेश कुमार का यह भी कहना है कि उनके घर में मात्र 2 भाई है जिस वजह से लेबर आदि बाहर से मैनेज करना पड़ता है। वहीं बकौल दिनेश मुस्लिम कारोबारियों के घरों में दर्जनों लोग होते हैं और उन्हें मजदूर घर में ही मिल जाते हैं।

पूरे प्रदेश में हमेशा के लिए लागू हो ये नियम

प्रशासन द्वारा लागू किए गए फैसले से खुश हो कर दिनेश कुमार ने दावा किया कि इस निर्णय से उनका कारोबार वापस लौट रहा है। उनका दावा है कि जब से प्रशासन ने सख्ती दिखाई है तब से जनता भी जागरूक हुई है और अब कारीगरों के आधार कार्ड चेक किए जा रहे हैं। दिनेश कुमार ने यह भी उम्मीद जताई है कि जल्द ही पूरे प्रदेश में और हमेशा के लिए यह नियम लागू हो जाएगा कि सभी लोग अपने असल नामों से अपना कारोबार करें। नकली नाम से हो रहे धंधे की वजह से दिनेश कुमार ने अपने साथ कई अन्य हिन्दू दुकानदारों को पीड़ित और प्रताड़ित बताया।

जो हम हैं उसको बताने में क्या दिक्कत ?

गाजियाबाद-मेरठ रोड पर पहलवान ढाबा चला रहे अश्वनी सैनी ने ऑपइंडिया से बात की। अश्वनी सैनी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अपनी दुकान के आगे अपना नाम और रेटलिस्ट लगा रखी है। वो अपने ढाबे के शुद्ध शाकाहारी होने का दावा करते हैं। अश्वनी ने हमें बताया कि एक दुकान मालिक होने के तौर पर उनको नाम लिखने के मुद्दे पर उठाए जा रहे विवाद की वजह नहीं समझ में आ रही है। अश्वनी का कहना है कि जो ढाबा मालिक असल में है उसको लिखने में दिक्क्त क्या है।

पैसा ही नहीं बल्कि पुण्य भी कमाते हैं हम काँवड़ यात्रा में

मेरठ रोड पर देशी ठाठ शुद्ध वैष्णो भोजनालय चलाने वाले रामकुमार चौहान ने ऑपइंडिया से बात की। रामकुमार चौहान ने हमें बताया कि काँवड़ यात्रा में कारोबार के दौरान वो और अधिक जिम्मेदारी का एहसास करते हैं। उन्होंने कहा कि एक हिन्दू होने के नाते काँवड़ यात्रा उनके लिए महज पैसे कमाने का समय नहीं है बल्कि वो इस त्यौहार में पुण्य भी कमाते हैं। अपना ढाबा दिखाते हुए रामकुमार ने हमें बताया कि काँवड़ के दौरान वो न सिर्फ काँवडियों के नहाने-धोने की फ्री में व्यवस्था करते हैं बल्कि इसी दौरान उनके निशुल्क इलाज आदि का भी ख्याल रखते हैं।

प्रशासन द्वारा नाम लिखने के मुद्दे पर खड़ा किए गए विवाद को गैरजरूरी बताते हुए रामकुमार ने कहा कि वो प्रशासनिक फैसले का पूरी तरफ से स्वागत करते हैं। हमें यह भी बताया गया कि काँवड़ यात्रा के दौरान तमाम कारीगरों को भी सभ्यता और सलीके से खाना बनाने के लिए व्यवहार में भी और अधिक मृदुता लगाने के लिए समझाया जाता है। रामकुमार ने माना कि दिल्ली से हरिद्वार की तरफ जाने वाला हाइवे नाम बदल कर चलाए जा रहे ढाबों से बुरी तरफ से प्रभावित हैं। उन्होंने इस पर लगाम लगाने की माँग भी उठाई।

बंद हो चुका मुज़फ्फरनगर का सावरकर ढाबा

ऑपइंडिया ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में मुज़फ्फरनगर जिले में सावरकर ढाबा का बोर्ड देखा। यह बोर्ड मुज़फ्फरनगर-मेरठ हाइवे पर चीनी मिल के पास है। ढाबा बंद हो चुका है और बोर्ड पर धूल की परत चढ़ी हुई थी। इसके मालिक सत्य प्रकाश को हमने जैसे-तैसे खोजा और बात की। सत्य प्रकाश ने बताया कि वीर सावरकर के नाम से ढाबा खोलने के पीछे उनका मकसद न सिर्फ ग्राहकों को बेहतर खाना-पीना उपलब्ध करवाना था बल्कि उन्हें देश के एक महान क्रांतिकारी के नाम से परिचित भी करवाना था।

हालाँकि सत्य प्रकाश अब अपना ढाबा बंद होने से काफी निराश हैं। नाम न ले कर परोक्ष इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ खास सोच रखने वालों को उनके ढाबे का नाम पसंद नहीं आया। ढाबे पर न सिर्फ ग्राहक आने बंद हो गए थे बल्कि चोरी जैसी वारदातें भी हुईं। बंद हो चुके सावरकर ढाबे के मालिक ने यह भी माना कि मुज़फ्फरनगर और आसपास के इलाकों में फर्जी नाम और पहचान से कई ढाबे चल रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रशासन इस दिशा में कड़े कदम उठाएगा।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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