मद्रास हाई कोर्ट में एक मामला आया है। एक मुस्लिम आदमी एक हिंदू धार्मिक संस्था में काम करना चाहता है। “इस पोस्ट के लिए सिर्फ हिंदू ही आवेदन कर सकते हैं” – इसके खिलाफ ए. सुहैल नाम के मुस्लिम आदमी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
यह मामला चेन्नई के अरुलमिगु कपालिश्वरार कला व विज्ञान कॉलेज (Arulmigu Kapaleeswarar Arts and Science College, Chennai) से जुड़ा है। इसकी स्थापना तमिलनाडु हिंदू धार्मिक व धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (Hindu Religious and Charitable Endowments Department, Tamil Nadu) के द्वारा की गई है।
हिंदू धार्मिक व धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के कॉलेज में मुस्लिम आदमी ए. सुहैल को नौकरी चाहिए। उसने हाई कोर्ट की अपनी याचिका में तर्क दिए:
(i) “केवल हिंदू ही आवेदन कर सकते हैं” की शर्त के कारण वह कॉलेज में कार्यालय सहायक के पद के लिए इंटरव्यू में शामिल नहीं हो सका।
(ii) सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या दी है कि ‘हिंदू’ शब्द किसी धर्म को नहीं दर्शाता है, हिंदू एक धर्म नहीं बल्कि जीवन का एक तरीका है तो कोई भी उम्मीदवार हिंदू है या नहीं, इसको कैसे तय किया जा सकता है? इसलिए भारतीय मुस्लिमों या भारतीय ईसाइयों या किसी भी अन्य को कॉलेज आवेदन करने से नहीं रोक सकता।
(iii) संविधान में स्पष्ट है कि धर्म के आधार पर राज्य भेदभाव नहीं कर सकता है। इसलिए नौकरी के लिए लगाई गई शर्त कि केवल हिंदू ही उस पद पर नियुक्त होने के पात्र हैं, असंवैधानिक है।
(iv) हिंदू कट्टरपंथी वर्तमान सरकार की आलोचना करते हैं कि वो हिंदू विरोधी है। ऐसे में इस तरह की आलोचना से बचने के लिए ही कॉलेज या विभाग ने हिंदुत्व विचारधारा के प्रसार का तरीका अपनाया, केवल हिंदुओं को नियुक्त करने का निर्णय लिया।
(v) शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों का धार्मिक कार्यों से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे पदों के लिए सभी को प्रतिस्पर्द्धा करने की अनुमति दी जानी चाहिए, चाहे उम्मीदवार का धर्म कुछ भी हो।
अरुलमिगु कपालिश्वरार कला व विज्ञान कॉलेज ने 13 अक्टूबर 2021 को भर्ती अधिसूचना जारी की थी। इसके अनुसार सहायक प्रोफेसर, फिजिकल डायरेक्टर, लाइब्रेरियन, सहायक, जूनियर सहायक, कार्यालय सहायक सहित चौकीदार, सफाईकर्मी और स्वीपर की भर्ती के लिए केवल हिंदू उम्मीदवारों को वॉक-इन इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। यह भर्ती 18 अक्टूबर 2021 को होनी थी।
‘केवल हिंदुओं के लिए क्यों’ पर राजनीति
भर्ती शुरू होने से पहले बवाल जरूर शुरू हो गया। ए. सुहैल की मद्रास हाई कोर्ट में याचिका से पहले द्रविड़ कड़गम के अध्यक्ष के. वीरमणि भी इसके खिलाफ मैदान में कूद चुके थे। भर्ती अधिसूचना (जो 13 अक्टूबर को आई थी) पर उन्होंने आपत्ति जताते हुए सवाल किया था कि हिंदू धार्मिक व धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (Hindu Religious and Charitable Endowments Department) द्वारा संचालित कॉलेजों में कोई भी पद केवल हिंदुओं के लिए क्यों होने चाहिए?
इस राजनीति से शिक्षक संघ भी अछूता नहीं रहा। एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष के. पांडियन ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा संचालित किसी भी विभाग में धर्म आधारित नियुक्ति या भेदभाव नहीं किया जा सकता है। पांडियन ने उदाहरण दिया कि मदुरैई के वक्फ बोर्ड में कई गैर-मुस्लिम काम करते हैं।
BHU में फिरोज खान Vs जीसस एंड मेरी कॉलेज
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय (SVDV) का मामला भूल गए हों तो याद कीजिए कि कैसे फिरोज खान नाम के एक गैर-हिन्दू का ‘धर्म-विज्ञान संकाय’ में नियुक्ति कर दी गई थी। छात्रों के जबरदस्त विरोध और ऑपइंडिया की लगातार कवरेज के बाद उस नियुक्ति को निरस्त किया गया था। वामपंथियों द्वारा इस मुद्दे को नौकरी के नाम पर संवैधानिक हक का जामा पहनाया गया था। मीडिया गिरोह में लंबे-लंबे लेख लिखे गए थे।
BHU के नाम पर कूदने वाली वामपंथियों की यही लॉबी तब हफ्ते भर के अंदर गायब हो गई थी, जब जीसस एंड मेरी कॉलेज ने अपना एक विज्ञापन निकाला था। विज्ञापन के अनुसार प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन आमंत्रित किया गया था। आवेदक के पास पादरी का ‘अनुशंसा पत्र’ होना चाहिए था और ‘बैप्टिज्म सर्टिफिकेट’ भी – मीडिया गिरोह हालाँकि BHU की थकान के बाद सो गया था।