ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) के कट्टरपंथी कश्मीरी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने “chairperson for life” के पद से पिछले दिनों इस्तीफा दिया था। उनके इस्तीफा देने के साथ ही ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेज रैकेट को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अपने इस्तीफे में गिलानी ने हुर्रियत के सदस्यों के भ्रष्टाचार और पाकिस्तानी सत्ता के करीबी होने के आरोप लगाए हैं। दिलचस्प बात यह है कि हुर्रियत के कुछ सदस्यों के खिलाफ ये आरोप गिलानी ने लगाया है, जिन्हें खुद कश्मीर घाटी में पाकिस्तान का चेहरा माना जाता था।
जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान के पास उन कश्मीरियों के लिए सीटें आरक्षित करने की पॉलिसी है, जिनके भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ने वाले आतंकवादियों और अलगाववादियों से संबंध हैं। उन्हें पाकिस्तानी सरकारी संस्थानों में एमबीबीएस, बीडीएस, इंजीनियरिंग, स्नातक, स्नातकोत्तर आदि में प्रवेश मिलता है। पाकिस्तान सरकार ने कश्मीरी छात्रों के लिए अपने मेडिकल कॉलेजों में कम से कम 6% मेडिकल सीटें आरक्षित की हैं।
इस पॉलिसी की शुरुआत मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान की गई थी। बताया जाता है कि जिन कश्मीरियों को वहाँ के स्थानीय कॉलेजों में दाखिला नहीं मिल पाता था, वो अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए पाकिस्तान में एडमिशन करवाते थे और अधिकतर सीटें पाकिस्तान सरकार द्वारा स्पॉन्सर होती थी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि इन सीटों के आवंटन की जिम्मेदारी पीओके और कश्मीर के हुर्रियत नेताओं को दी गई थी।
बता दें कि पाकिस्तान में पढ़ने वाले कई कश्मीरी छात्रों ने पाकिस्तान में कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद वाघा से भारत लौटने की कोशिश की थी। पाकिस्तान के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले कश्मीर के 400 से अधिक छात्र वाघा में फँस गए थे, जिन्हें बाद में अमृतसर लाया गया।
बता दें कि दो साल पहले APHC के मुजफ्फराबाद के तत्कालीन संयोजक गुलाम मुस्तफा सफी पर अब्दुल्ला गिलानी ने कश्मीरी छात्रों के लिए रिजर्व सीटों को बेचने का आरोप लगाया था। अब्दुल्ला कश्मीर का रहने वाला है। मगर कई सालों तक वह पाकिस्तान में भी रहा है और उसके आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के साथ भी संबंध बताए जा रहे हैं। अब्दुल्ला, एसएआर गिलानी का छोटा भाई है, जो 2001 में संसद हमले में आरोपित था।
यह कश्मीर में एक खुला रहस्य है कि APHC के दो चेहरों गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक ने कश्मीर के छात्रों को अधिक से अधिक सीट बेचने की कोशिश की। गिलानी की पोतियों ने भी पाकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई की थी। हालाँकि, रैकेट के आरोप सामने आने के बाद उन्होंने सीटों के लिए नामों की सिफारिश करना बंद कर दिया।
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी NIA ने भी सीट रैकेट की जाँच की थी। जिसमें कई कश्मीरी आरोपित पाए गए और वर्तमान में तिहाड़ जेल में बंद हैं। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने छात्रों, शैक्षिक संस्थानों में पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए छात्रों, आतंकवादियों के रिश्तेदारों को शैक्षिक छात्रवृत्ति की पेशकश की थी।
यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान की मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में भारत में सक्रिय आतंकवादियों के बच्चों को प्रवेश देने के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन था। आईएसआई और हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन ने भारत के खिलाफ लड़ रहे आतंकवादियों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना की पेशकश करने के लिए हाथ मिलाया था।
हालाँकि गुलाम मुस्तफा सफी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ये आरोप फर्जी हैं। इस रैकेट के खुलासे से हुर्रियत की आपसी फूट भी उजागर हो गई। मेडिकल सीटों के रैकेट ने पहले ही हुर्रियत में तूफान खड़ा कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप गिलानी ने 2018 के अंत में सफी को बर्खास्त कर दिया और फिर जनवरी 2019 में अब्दुल्ला गिलानी को संयोजक नियुक्त किया।
खबरों की मानें तो अब्दुल्ला गिलानी को संयोजक बनाए जाने पर भी ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता एकमत नहीं हैं, क्योंकि बताया जाता है कि पाकिस्तान के साथ गिलानी के संबंधों में वैसी गर्मजोशी नहीं है जैसा अन्य अलगाववादी नेताओं के साथ दिखती है।