कोरोना वायरस (COVID-19) से लड़ाई में पूरा देश एकजुट होकर अपने हिस्से का योगदान कर रहा है। ऐसे में स्टैन्फोर्ड यूनिवर्सिटी, आईआईटी और एम्स के कुछ पूर्व शोधकर्ताओं ने ‘एयरलेंस माइनस कोरोना’ (Airlens Minus Corona) नाम से एक डिवाइस तैयार किया है, जिसमें कोरोना वायरस के संक्रमण पर व्यापक रोक लगाने में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
स्टैन्फोर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व शोधकर्ता डॉक्टर शशि रंजन ने ऑपइंडिया से बातचीत में बताया कि, उन्होंने और आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र देबायन शाह की स्टार्टअप कंपनी PerSapien ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है, जो रिमोट कंट्रोल से संचालित होता है। इसमें एक कैमरा भी जुड़ा है जो चालक की सीट से दूर तक डिजिटल स्क्रीन पर चित्र देता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल जरूरत यह है कि देशभर में और भी इंजीनियर्स और शोधकर्ता ऐसे उपकरण तैयार करें जो कोरोना वायरस के संक्रमण पर रोक लगा सकें।
डॉक्टर शशि रंजन ने ऑपइंडिया से बातचीत में बताया कि इस तकनीक की खास बात यह है कि इसमें सेनिटाइज़र्स के रूप में कैमिकल की जगह पानी के ही सूक्ष्म बूँदों को ही चार्ज (आवेशित) कर के वायरस को नष्ट किया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि वर्तमान में देश में केमिकल की बढ़ी हुई खपत के कारण कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए केमिकल पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी।
PerSapien ने कोरोना वायरस के खिलाफ तैयार किया गया यह डिवाइस सड़कों पर चलते हुए शहर को संक्रमण मुक्त करने के साथ ही अस्पताल, स्कूल, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन, शॉपिंग मॉल और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर आवेशित बूंदों के जरिए सतह को संक्रमण मुक्त करता है। जिससे कि कोरोना वायरस के प्रसार पर रोक लगती है।
शशि रंजन के अनुसार, “कोरोना वायरस को मारने के लिए पानी की बूँदों को चार्ज किया जाता है, जो कि इस काम का सबसे बड़ा चैलेंज भी है।” ऐसे आयनित पानी की बूँदे प्रोटीन के ऑक्सीकरण के जरिए गैर हानिकारक अणु बनने में मदद कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि ऑक्सीकरण सबसे शक्तिशाली रोगाणुरोधी उपायों में से एक है और यह तकनीक पूरे शहर को संक्रमण मुक्त कर सकती है।
वर्तमान में जिस तेजी से देशभर में इस वायरस के संक्रमण को आगे बढ़ने और फैलने से रोकने की आवश्यकता है, उसमें यह बहुत मददगार साबित हो सकता है। बहुत सूक्ष्म नम बूँदों के छिड़काव से कोरोना वायरस को आसानी से निष्क्रिय किया जा सकता है।
डॉक्टर शशि रंजन के अनुसार – “यह वाटर बेस्ड तकनीक है, जिसमें पानी और बिजली इस्तेमाल हो रही हैं। हम पानी की बूँदों को वोल्टेज के जरिए चार्ज करते हैं, हाइड्रॉक्सिल OH- जैसे जिससे इसमें आयन्स (अणु) जेनरेट हो जाते हैं। ये आयन्स (अणु) वायरस की बाह्य त्वचा, जो कि प्रोटीन और वसा से बनी होती है उसका ऑक्सीकरण कर के वायरस को निष्क्रीय करते हैं।”
“इसमें पानी की बूँदों को सूक्ष्म बूंदों में बदलने पर हमने काम किया और फिर इन बूँदों को आवेशित करना लक्ष्य था। जहाँ भी इनका छिड़काव किया जाएगा, उन जगहों पर कोरोना वायरस के प्रसार को रोका जा सकेगा। जिस तकनीक को इस्तेमाल किया जा रहा है वह केमिकल बेस्ड है, जिसकी कि अधिक इस्तेमाल होने के कारण समय के साथ आपूर्ति कम हो सकती है।”
उन्होंने बताया कि वह इस पर पहले से भी काम कर रहे थे, लेकिन कोरोना वायरस की महामारी के कारण उन्होंने इस पर तत्परता से अपना योगदान देने का निर्णय लिया। यदि इस तकनीक को पूरे भारत में इस्तेमाल करने के लिए बड़े स्तर पर तैयार करना हो तो इस आपूर्ति को वह महज एक से दो सप्ताह के भीतर पूरी करने में सक्षम हैं।
इस उपकरण के बारे में बात करते हुए डॉक्टर शशि रंजन ने कहा कि हमारा प्रमुख प्रयास इस आपातकाल में देश की मदद करना है। कोलकाता में एक मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर्स के साथ मिलकर इसे तैयार कर रहे हैं।
डॉक्टर शशि रंजन PerSapien स्टार्ट अप के को-फाउंडर हैं। इससे पहले वो एम्स अस्पताल में रिसर्च प्रोजेक्ट से जुड़े थे, साथ ही स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी कार्यरत थे। वर्तमान में इस टीम में आईआईटी से पास-आउट छात्र काम कर रहे हैं। यह उपकरण तैयार करने से पहले भी डॉक्टर शशि रंजन वायु प्रदूषण जैसे मुद्दों पर कार्य कर रहे थे। उन्होंने बताया कि यह उपकरण अभी तक बिक्री के रूप से तैयार नहीं किया गया है और पहला मकसद सिर्फ कोरोना वायरस के तेजी से हो रहे संक्रमण को रोकने के लिए कुछ आधुनिक और प्रभावी यंत्र तैयार करना ही था।