जिस राज्य में नेताओं-अधिकारियों-ठेकेदारों का गिरोह विपदा की प्रतीक्षा करता हो, गिद्ध की तरह नजर जमाए बैठा हो कि घर-बार उजड़े, तैरते-उफनाते इंसानों-जानवरों के शव दिखें, ताकि वह राहत और बचाव के नाम पर माल कूट सके, उस राज्य की नियति भला और क्या हो सकती है!
ताज्जुब नहीं कि आम चुनावों के बाद बिहार ने पहली सुर्खियां पानी के लिए तरसते लोगों के कारण बटोरी। फिर आया चमकी बुखार जिसने करीब 200 बच्चों की जान ली। और अब पानी का सैलाब। ऐसा सैलाब जिसे रोक पाना तो मुमकिन नहीं था, लेकिन जिसकी आशंका सबको थी। जिसकी आहट से हर साल लोग सहमे रहते हैं।
सरकारी मशीनरी भी इससे अनजान नहीं। इसलिए, उसने भी आदेश निकाले। लेकिन, बचाव की कोई तैयारी नहीं की गई। क्योंकि, जान-माल का कम नुकसान इन गिद्धों को पेट भरने की खुराक नहीं दे पाता। और जब एक चुनाव से निपटे हों और अगले साल फिर चुनाव में जाना हो तो खजाना भरा होना चाहिए, हम-आप तो मरने के लिए ही पैदा हुए हैं।
आदेश पर अमल कौन करे?
आपदा प्रबंधन विभाग ने 3 मई 2019 को बिहार के सभी जिलाधिकारियों एक पत्र भेजा। यह पत्र हर साल अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत में जारी होता है और जून के आखिर तक इसमें दिए गए दिशा-निर्देशों को पूरा करना होता है। इनमें कंट्रोल रूम बनाना, नावों का इंतजाम, गोताखोरों की बहाली, राहत केंद्र के लिए जगह, राशन, दवा, मोबाइल टीम, तटबंधों की सुरक्षा सुनिश्चित करना वगैरह जैसे काम शामिल हैं। यदि प्रशासन ने इन निर्देशों को लेकर थोड़ी भी गंभीरता दिखाई होती तो हालात उतने भयावह नहीं होते जितने आज दिख रहे हैं।
लेकिन, 15 साल के ‘जंगलराज’ के बाद से जारी करीब डेढ़ दशक के ‘सुशासन’ में ये निर्देश रूटीन से ज्यादा महत्व नहीं रखते। अब चूॅंकि हर साल बाढ़ से पहले तटबंधों की मजबूती के नाम पर करोड़ों का वारा-न्यारा होता है, सो बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के केन्द्रीय बाढ़ नियंत्रण कक्ष ने 13 जुलाई तक सभी तटबंध सुरक्षित होने का बुलेटिन जारी किया। जबकि तटबंध टूटने शुरू हो चुके थे। 14 जुलाई को तटबंध टूटने की बात विभाग ने तब मानी जब सोशल मीडिया में कटाव, गॉंवों के टापू बनने और सैकड़ों लोगों के फंसे होने के वीडियो की बाढ़ आ गई।
बांध से पानी बहे तो कोई क्या करेगा
14 जून को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित इंटरव्यू में बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने दावा किया है कि सरकार बाढ़ के हालात से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। इतना ही नहीं अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित कर सरकार ने 1-7 जून तक बाढ़ सुरक्षा सप्ताह भी मनाया था। जब सारे दावों की पोल खुल गई तो 15 जून को झा ने कहा कि ‘बांध से जब पानी बहेगा तो कोई क्या करेगा’।
24 घंटे तक बहाव के बीच पेड़ पर फँसे रहे
सीतामढ़ी के बाढ़ प्रभावित पंचायत सिंहवाहिनी की मुखिया रितु जायसवाल ने अपने फेसबुक पेज पर 13 जुलाई की शाम 6 बजकर 23 मिनट पर लिखा, “मुझे जिले के नरगा दक्षिणी पंचायत के गांव हरदिया से मदद के लिए फोन आ रहे है। भीषण बहाव में सुबह 8 बजे से 8 लोग पेड़ पर फँसे हैं। ग्रामीण सुबह से अधिकारियों को फोन कर रहे हैं पर कोई सुन नहीं रहा। मैंने अभी पटना आपदा प्रबंधन विभाग को इसकी सूचना दी है। उन्होंने तत्काल एनडीआरएफ की टीम भेजने का भरोसा दिलाया है।”
तो क्या एनडीआरएएफ की टीम पहुॅंची? रितु ने 14 जुलाई की सुबह 9 बजकर 44 मिनट पर किए गए पोस्ट में बताया है, “आपदा को लेकर सीतामढ़ी जिले के एसी कमरे से बैठ कर जारी किए गए हाई अलर्ट के जमीनी हकीकत को जानिए। रात भर हम ग्रामीण अधिकारियों के साथ फोन पर थे। सुबह नतीजा ये निकला की एनडीआरएफ और एसडीआरएफ तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं पहुँच पाई। आखिरकार, ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाते हुए बांस जोड़-जोड़ कर लगभग हिम्मत हार चुके 24 घंटे से पेड़ पर फँसे हुए ग्रामीण को आज सुबह 6 बजते-बजते बचा लिया और उसके बाद एनडीआरएफ को सूचित भी किया कि हमने बचा लिया है अब आने की ज़रूरत नहीं है सर। इसके बाद ग्रामीणों पर झूठ बोलने का आरोप लगाया गया और एफआईआर करने की धमकी दी गई। सदर एसडीओ मुकुल गुप्ता ने विकट परिस्थिति में लड़ रहे ग्रामीणों को एफआईआर की धमकी दे पीड़ित व्यक्ति को बाढ़ के इस भयावह हालात में जिला कार्यालय आने को कहा। इसकी सूचना भी मैंने पटना दी। वहॉं से फटकार लगने के बाद वो माने।”
रितु काफी चर्चित मुखिया हैं और अपने पंचायत की सूरत बदलने को लेकर उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। रितु ने फेसबुक पर बताया है कि बाढ़ 2017 से ज्यादा प्रलयकारी है और उनका पंचायत पूरी तरह तबाह हो चुका है।
नरूआर भी नहीं पहुॅंची एनडीआरएफ की टीम
बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित गॉंवों में झंझारपुर का नरूआर भी है। इस गॉंव में अचानक आए तेज बहाव में कई लोग बह गए जिनका अब तक पता नहीं चल पाया है। यहॉं बचाव के काम में जुटी मानव कल्याण केंद्र संस्था के पंकज झा ने ऑपइंडिया को बताया कि उनकी टीम को गाँव में एक बूढ़ी महिला के घर में फँसे होने की सूचना मिली। महिला का मोबाइल फोन भी स्विच ऑफ था। सूचना मिलने के बावज़ूद एनडीआरएफ की टीम गाँव नहीं पहुँची। आखिर में स्थानीय लोगों ने खुद जोखिम उठा महिला को अगली सुबह बचाया।
फिर भी नहीं सुधरे
आपदा के 72 घंटे बाद राज्य सरकार ने पीड़ितों के लिए 196 राहत केंद्र और 644 सामुदायिक रसोई खोलने का दावा किया है। पर आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि मधुबनी में तीन ही राहत केंद्र खुले हैं, जबकि वहां के 15 प्रखंड बाढ़ प्रभावित हैं। सीतामढ़ी में भी प्रभावित इलाके का दायरा इतना ही बड़ा है, लेकिन वहॉं 148 राहत केंद्र खोल दिए गए हैं। बाढ़ से राज्य के 12 जिलों के करीब 26 लाख लोग पीड़ित हैं। जो काम 30 जून तक हो जाने चाहिए थे, वे अब हो भी रहे हैं तो इतने छोटे स्तर पर कि इसका कोई मतलब नहीं।
सो, अब कंधे पे बोरी लादे या हाफ पैंट पहनकर पानी में खड़े अधिकारियों की तस्वीर दिखे तो लहोलोहाट मत हो जाइएगा। असल में इनके लिए आप जानवरों जैसे ही हैं। यकीन न हो तो नेपाल से सटे जयनगर के पास बाढ़ के पानी में साथ-साथ तैरते जानवरों और इंसानों के इस वीडियो को देख लें।
वैसे, फिर से यह सारा दोष नेपाल के मत्थे मढ़ा जाएगा। लेकिन, बता दूॅं कि नेपाल किसी बराज से पानी नहीं छोड़ता। नेपाल से राज्य में आने वाली केवल दो नदियों गंडक और कोसी पर बराज है। दोनों की डोर बिहार के जल संसाधन विभाग के हाथों में ही है और पटना से आदेश के बाद ही बराज के फाटक खुलते हैं। इस विभाग के मुखिया वही संजय झा हैं जो बाढ़ आने से पहले दावा कर रहे थे कि सरकार अबकी बार पूरी तरह तैयार है।