Sunday, December 22, 2024
Homeदेश-समाजसियाचिन के परमवीर: ऑपरेशन मेघदूत से लेकर अब तक की कहानी

सियाचिन के परमवीर: ऑपरेशन मेघदूत से लेकर अब तक की कहानी

आज भारत विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर है और हमारे वीर सैनिक सियाचिन पर काम करने के अभ्यस्त हो चुके हैं। आज हमें विश्व की सबसे ऊँचे युद्धस्थल पर सामरिक लाभ की स्थिति में हैं। ऐसे में कितनी भी दुर्गम परिस्थितियाँ हों हम अपनी ज़मीन नहीं छोड़ सकते।

जब हम और आप मौसम का मजा लेते हुए ठण्ड में गुनगुनी धूप में बैठ कर तिल गुड़ के लड्डू खा रहे होते हैं और हमारे बच्चे वर्जनाओं से मुक्त आकाश में खिलवाड़ की पतंग उड़ा रहे होते हैं तब देश की सरज़मीं के एक कोने में भारतीय सेना की सियाचिन ब्रिगेड के अफ़सर और जवान उत्सव मनाने की हमारी इसी स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।

ठण्ड उनके लिये भी होती है और हमारे लिये भी, बस अंतर होता है रंग का। हम गुलाबी ठण्ड में भी ठिठुरने लगते हैं और वे -55 डिग्री की काली ठण्ड में मुस्तैद होते हैं। ये कहानी है अदम्य शौर्य, साहस और उन अनगिनत बलिदानों की जिनके बारे में भारत सरकार भी आपको पूरी बात नहीं बताती।

सियाचिन एक ग्लेशियर है जिसका मतलब होता है एक बहुत बड़ा सा बर्फ का टुकड़ा जो धीरे धीरे पहाड़ से नीचे सरकता हुआ पिघलता है। सियाचिन ग्लेशियर 75 किमी लम्बा है और 23000 से 12000 फ़ीट ऊंची ढलान पर स्थित है। 10,000 वर्ग किमी का ये क्षेत्र सिंधु नदी को जीवित रखने में भी सहायक है क्योंकि जैसे जैसे ग्लेशियर पिघलता है उसका पानी नदी में मिल जाता है।

यदि आपने कभी कश्मीर का नक्शा देखा है तो आप ‘नियंत्रण रेखा’ से परिचित होंगे जिसे LoC कहा जाता है। द्रास कारगिल से होती हुई 759 किमी लम्बी नियंत्रण रेखा जब ऊपर पहुँचती है तो एक बिंदु को छूती है जिसे Point NJ9842 कहा जाता है। ये सियाचेन के त्रिकोणनुमा क्षेत्र का एक छोर है।

सन् 1949 के कराची समझौते और 1972 के शिमला समझौते में इस बात पर सहमति बनी कि इस बिंदु (NJ9842) के उत्तर में स्थित सियाचिन किसी भी प्रकार से मनुष्य के बसने लायक नहीं है इसलिए NJ9842 से ऊपर जाती हुई नियंत्रण रेखा त्रिकोण के दूसरे सिरे को छुएगी जिसे इंदिरा कोल कहा जाता है। समझौते में लिखा था ‘thence northward’, इन्हीं दो शब्दों के पीछे पाकिस्तान ने चाल चली। उत्तर की ओर जाने का अर्थ था कि LoC पहाड़ों से होकर जाएगी। लेकिन पाकिस्तान ने धोखे से यह समझाने की कोशिश की कि ‘thence northward’ का अर्थ LoC का घाटी से होकर जाना है।

Image Credit: Wikipedia. Not to scale.

जब 1975 में शेख अब्दुल्ला कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तब कुछ जर्मन सिंधु नदी में राफ्टिंग करने के लिए जाना चाहते थे। इसके लिये अब्दुल्ला ने कर्नल नरेन्द्र कुमार को बुलाया। ये अभियान पूरा होने के बाद कर्नल कुमार ने 1977 में कंचनजंघा को फतह किया। तब तत्कालीन थलसेनाध्यक्ष टी एन रैना ने उन्हें High Altitude Warfare School का चार्ज सौंप दिया।

किस्मत से उसी वक़्त वही जर्मन पर्वतारोही उनसे मिले जिनके साथ उन्होंने सिंधु में राफ्टिंग की थी। इस बार वे सियाचिन से निकलने वाली नुब्रा नदी में राफ्टिंग के लिये आये थे। उनसे कर्नल कुमार को कुछ नक्शे मिले जो उन्होंने जर्मनों से कुछ पैसे देकर खरीद लिये थे। अमरीका में छपे इन नक्शों में नियंत्रण रेखा को NJ9842 के उत्तर में इंदिरा कोल तक न दिखा कर पूर्वोत्तर में कराकोरम पास तक दिखाया गया था। कराकोरम इस त्रिकोण का अंतिम छोर था और इसका मतलब था कि कोई हमारी ज़मीन को अपना बता रहा था।

वो पाकिस्तान था। इस तरह जो विवादित त्रिकोण बना वही दुनिया का सबसे ऊँचा और दुर्गम युद्ध स्थल है- सियाचिन। कर्नल नरेंद्र कुमार को एक टोही दल की कमान देकर 1978 में सियाचेन भेजा गया तो उन्होंने पाया की वहां पहले भी पर्वतारोही अभियान आ चुके हैं। उन्हें बोतल पैकेट सहित कई सामान मिले जिनसे ये बात पुख्ता हुई कि और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तानी अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे थे।

सब कुछ विश्लेषण करने के बाद अपनी ज़मीन वापस पाने के लिये 13 अप्रैल 1984 को बाकायदा ऑपरेशन मेघदूत चलाया गया जिसकी नायक थे लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून और लेफ्टिनेंट कर्नल डी के खन्ना। तब से हमारी सेनाएँ सियाचिन की रखवाली कर रही हैं। सियाचिन में दोनों तरफ की कई पोस्ट हैं जिन पर सैनिक तैनात रहते हैं। तीन साल बाद 18 अप्रैल 1987 को पाकिस्तानियों ने ‘क़ायद’ पोस्ट से हमला कर हमारे 2 जवानों को मार दिया था। इस पोस्ट का नाम उन्होंने क़ायदे आज़म के नाम पर रखा था।

इस पोस्ट को नेस्तनाबूद करने में सेकंड लेफ्टिनेंट राजीव ने प्राणों का बलिदान दिया था जिसके बाद इस ऑपरेशन को ही ऑपरेशन राजीव नाम दिया गया। इस ऑपरेशन में विजय दिलाने वाले नायब सूबेदार बाना सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया और पाकिस्तान से छीनी गयी उस पोस्ट का नामकरण ‘बाना टॉप’ कर दिया गया।

इस पर बेनज़ीर भुट्टो ने ज़िया-उल-हक़ को बुर्क़ा पहनने की नसीहत दे डाली थी। ऐसी कई कहानियां हैं वीरों की जो फिसलती बर्फ पर मशीन गन थामे दुश्मन की आँख पर नज़र रखते हैं। साल 2003 से होविट्ज़र तोपें शांत हैं। डॉ कलाम पहले राष्ट्रपति थे जो सियाचेन गए थे। कुछ पूर्वाग्रही सामरिक विशेषज्ञ सियाचिन को बर्फ में जारी बेमानी जंग मानते रहे हैं।

वहाँ चमड़ी काली पड़ जाती है और तरल जैसी चीज़ बड़ी मुश्किल से गले के नीचे उतरती है। हेलिकॉप्टर गर्मियों की बजाए सर्दियों में ज्यादा कुशलता से काम करते हैं। उपासना के लिये एक ‘ओपी बाबा’ का मन्दिर है जिसमें मनुष्य की प्रतिमा में देवता बसते हैं। बेस से ऊपर ग्लेशियर में जाने से पहले सिखाया जाता है- “पेट में रोटी, हाथ में सोंटी, चाल छोटी-छोटी” अर्थात पेट में भोजन भरपूर होना चाहिए, हाथ में स्टिक होनी चाहिए ताकि बर्फ पर पकड़ बनी रहे और छोटे-छोटे कदमों से चलना चाहिए।

कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठन वहां वैज्ञानिक प्रयोगों के लिये भी प्रयासरत हैं। सवाल उठाया जाता है कि सियाचिन के उस पार क्या है- आत्मरक्षा, शत्रु से दोस्ती या मानव हित? कुछ सामरिक चिंतक यह मानते रहे हैं कि भारत को सियाचिन पर से अपना दावा छोड़ देना चाहिए। लेकिन आज भारत विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर है और हमारे वीर सैनिक सियाचिन पर काम करने के अभ्यस्त हो चुके हैं। आज हमें विश्व की सबसे ऊँचे युद्धस्थल पर सामरिक लाभ की स्थिति में हैं। ऐसे में कितनी भी दुर्गम परिस्थितियाँ हों हम अपनी ज़मीन नहीं छोड़ सकते। वास्तविकता यह है कि हमारी सैन्य उपस्थिति के कारण आज पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर पर है ही नहीं। पाकिस्तान नीचे घाटी में है और इस कारण हमें सामरिक लाभ मिलता है।

सन 2005 में डॉ मनमोहन सिंह सियाचेन का विसैन्यीकरण (demilitarization) कर उसे ‘माउंटेन ऑफ पीस’ बनाना चाहते थे। इसका खुलासा संजय बारु के अतिरिक्त श्याम सरन ने भी अपनी पुस्तक ‘How India Sees the World’ में किया है। गत वर्ष श्याम सरन के इस खुलासे पर विवाद हुआ था जिसके बाद पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल जे जे सिंह को स्पष्टीकरण देना पड़ा था। बहरहाल, जनरल सिंह के तर्कों को फिलहाल किनारे रखकर देखा जाए तो सियाचेन के विसैन्यीकरण का निर्णय अकेले भारतीय सेना तो ले नहीं सकती थी। मनमोहन सिंह और उनकी रणनीतिक टीम इस प्रकार के आत्मघाती निर्णयों के वास्तविक स्टेकहोल्डर्स थे।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

कानपुर में 120 मंदिर बंद मिले: जिन्होंने देवस्थल को बिरयानी की दुकान से लेकर बना दिया कूड़ाघर… वे अब कह रहे हमने कब्जा नहीं...

कानपुर की मेयर प्रमिला पांडेय ने एलान किया है कि सभी मंदिरों को कब्ज़ा मुक्त करवा के वहाँ विधि-विधान से पूजापाठ शुरू की जाएगी

नाम अब्दुल मोहसेन, लेकिन इस्लाम से ऐसी ‘घृणा’ कि जर्मनी के क्रिसमस मार्केट में भाड़े की BMW से लोगों को रौंद डाला: 200+ घायलों...

भारत सरकार ने यह भी बताया कि जर्मनी में भारतीय मिशन घायलों और उनके परिवारों से लगातार संपर्क में है और हर संभव मदद मुहैया करा रहा है।
- विज्ञापन -