बलात्कार शब्द जेहन में आते ही सामान्य तौर पर किसी लड़की की ही छवि उभर कर सामने आती है, ये सोचकर कि उसके साथ किसी लड़के ने दुष्कर्म किया होगा। आम तौर पर लोग यही सोचते हैं कि रेप सिर्फ लड़कियों का ही होता है, लड़कियाँ सुरक्षित नहीं है। मगर ऐसा नहीं है। आज की दुनिया में, इस समाज में कोई भी इंसान सुरक्षित नहीं है। ना तो लड़के, ना लड़कियाँ, ना महिलाएँ और ना ही बच्चे। हर दिन यौन हिंसाओं जैसी घटनाओं के बारे में सुनने में आता रहता है। आज के दौर में घर हो या फिर सड़क, कहीं पर भी लड़का या लड़की दोनों ही सुरक्षित नहीं हैं। कहीं ना कहीं कोई दरिन्दा अपनी मानसिक विकृति को लेकर हवस का मुंह फैलाए किसी कोने में छुपा होता है और मौका देखकर वो इस जघन्य अपराध को अंजाम दे देता है। या तो इन दरिन्दों को पता नहीं होता है कि वो क्या कर रहे हैं या फिर वो मानसिक रूप से इतने बीमार होते हैं कि वो जान बूझकर ये करते हैं। ऐसा देखा गया है कि दुष्कर्म के मामले में बहुत कम दोषियों को ही सजा मिल पाती है। अधिकतर आरोपी इतना बड़ा गुनाह करने के बाद भी खुले आम घूम रहा होता है, किसी और को अपना शिकार बनाने के लिए। ऐसा नहीं है कि हमारी कानून व्यवस्था कमजोर है, मगर कभी साक्ष्य की कमी की वजह से तो कभी किसी बेतुके से तर्क के आधार पर ये आरोपी बरी हो जाते हैं।
लड़की बदसूरत तो नहीं हो सकता रेप
ऐसा ही एक मामला सामने आया है इटली से। यहाँं साल 2016 में निचली अदालत ने पेरुवियन मूल के 2 लोगों को दुष्कर्म का दोषी करार दिया था। मगर अपीलीय अदालत ने इस फैसला को पलटते हुए दुष्कर्म आरोपी को ये कहते हुए बरी कर दिया कि महिला बदसूरत है और पुरुषों जैसी दिखती है, इसलिए इसके साथ रेप नहीं हो सकता। आपको बता दें कि ये फैसला जजों के उस पैनल ने सुनाया, जिसमें सारी जज महिलाएँ थीं।
क्या होता है बलात्कार?
अब यहाँ पर मन में एक सवाल यह उठता है कि क्या बलात्कार सुंदरता के आधार पर होता है? तो आइए सबसे पहले हम ये जान लें कि बलात्कार होता क्या है?
बलात्कार का मतलब होता है किसी इंसान की सहमति या अनुमति के बिना उसके साथ संबंध बनाना या जबरन किसी फॉरेन ऑब्जेक्ट का पेनिट्रेशन (forceful penetration of foreign object) करना। फिर चाहे वो पुरुष हो, महिला हो, बच्चा/बच्ची हो या फिर कोई प्रौढ़ महिला। कोई भी, कभी भी इसका शिकार हो सकता है। बलात्कार करने वाला इंसान सामने वाला की सुंदरता या उम्र नहीं देखता। ये तो उसकी मानसिक विकृति होती है। वरना क्यों किसी पुरुष, किसी बच्चे/बच्ची या फिर बुजुर्ग महिला के साथ ऐसा होता?
पुरुषों का भी होता है बलात्कार
ऐसा देखा गया है कि लोगों को लगता है कि रेप या बलात्कार केवल महिलाओं के साथ ही होता है। कुछ हद तक इसकी वजह यह भी है कि संचार माध्यमों और समाचारों में हम केवल यही देखते और सुनते हैं कि बलात्कार केवल महिलाओं के साथ ही होता है। पुरुषों के साथ हुए बलात्कार की बातें सामने नहीं आती हैं। लेकिन हम आपको बता दें कि यह पुरुषों के साथ भी होता है। एक पुरुष के साथ शारीरिक शोषण ना सिर्फ एक पुरुष कर सकता है बल्कि एक महिला भी पुरुष का बलात्कार (सेक्स से जुड़े खिलौनों का इस्तेमाल कर) कर सकती है। पुरुषों को भी बलात्कार की शिकार महिला पीड़ित की तरह ही मानसिक पीड़ा से होकर गुजरना पड़ता है। वास्तव में एक पुरुष होने के बावजूद बलात्कार का शिकार होने की शर्म, अविश्वास और इससे जुड़ी शर्मिंदगियों का पुरुषों पर अधिक प्रभाव डालता है। शायद यही वजह है कि आमतौर पर वो इसके खिलाफ शिकायत दर्ज़ नहीं करवाते। इसलिए पुरुषों के बलात्कार से जुड़े बेहद कम आँकड़े दर्ज हुए हैं।
भारत में पुरुषों के साथ रेप पर कोई कानून नहीं
हैरानी की बात तो ये भी है कि भारत, पाकिस्तान सहित चीन, इंडोनेशिया ऐसे एशियाई देश हैं, जहाँ पुरुषों के साथ रेप के खिलाफ कोई कानून नहीं है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 A, 354 B, 354 C, 354 D के तहत यौन उत्पीड़न, किसी को घूरना, किसी का पीछा करना आदि जुर्म माना गया है। लेकिन ये सभी कानून महिलाओं के पक्ष में है। इसके साथ ही धारा- 375 में भी रेप और उसके खिलाफ कानूनी प्रावधान की बातें कही गई हैं, लेकन यहाँ भी पुरूषों के साथ होने वाले रेप के बारे में कोई बात नहीं कही गई है। मगर चाहे वो महिला हो या पुरुष दोनों को ही पूरा अधिकार है कि वो अपने साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ और यह कानून की ज़िम्मेदारी है कि दोनों के सम्मान की पूरी तरह सुरक्षा करे।
बच्चे और बुर्जुर्ग महिला भी अछूते नहीं इस सामाजिक विकृति से
हमारे सामने कई ऐसी खबरें आती हैं, जिसमें हम पाते हैं कि छोटे-छोटे मासूम बच्चे, जिन्होंने अभी-अभी दुनिया को देखना-समझना शुरू किया ही था कि किसी दरिंदे ने उसे अपनी दरिंदगी का शिकार बना लिया। कभी स्कूल में शिक्षकों के द्वारा, कभी रिश्तेदारों-दोस्तों के द्वारा और कभी तो पिता के द्वारा ही इस घटना का शिकार हो जाती है। यानी कि बच्चियाँ अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। कठुआ और उन्नाव में बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कर्म की घटना भी इसी के उदाहरण हैं, जो कि हमें हिलाकर रख देते हैं। इतना ही नहीं बुजुर्ग महिलाएँ भी महफ़ूज नहीं हैं आज के माहौल में। क्योंकि आए दिन हमें कभी 75 साल की, कभी 80 साल की, तो कभी 85 साल की महिला के साथ भी दुष्कर्म की घटनाएँ सुनने को मिल जाती है, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती है।
MeToo अभियान- यौन शोषण के खिलाफ एक लड़ाई
मी टू एक ऐसा अभियान है, जिसमें महिलाओं ने अपने यौन शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई। ये अभियान एक तरह की लड़ाई थी, जिसमें महिलाएँ अपने ऊपर हुए अत्याचारों के खिलाफ एक जुट होकर लड़ीं और दोषियों को सामने भी लाया। बता दें कि, Metoo की शुरुआत साल 2006 में हुई थी, लेकिन चर्चा में आई यह 2017 में। इसकी शुरुआत अमेरिकी सिविल राइट्स एक्टिविस्ट तराना बर्क ने पहली बार 2006 में की थी। तराना बर्क के खुलासे के 11 साल बाद 2017 में यह सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ।
भारत में इसकी शुरुआत बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने की थी। उन्होंने अभिनेता नाना पाटेकर पर गलत तरीके से छूने का आरोप लगाया था। भारत में ‘मी टू’ अभियान शुरू होने के बाद कई बड़े बॉलीवुड हस्तियों के नाम सामने आए। नाना पाटेकर के साथ ही जिन पर आरोप लगाए गए, उनमें विकास बहल, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खैर, जुल्फी सुईद, आलोक नाथ, सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य, तमिल राइटर वैरामुथु से लेकर एमजे अकबर और सुहेल सेठ आदि तक का नाम शामिल है।
किसी के भी साथ दुष्कर्म उसकी सुंदरता के आधार पर नहीं होता है। इसलिए इटली की अदालत में जिस बेतुके तर्क के आधार पर दोनों रेप आरोपी को बरी किया गया है, वो वाकई शर्मनाक है। अगर अदालत साक्ष्य ना मिलने के कारण या फिर गुनाह साबित ना हो पाने की वजह से बरी करे तो बात समझ में आती है। मगर इसे ये कहकर कि लड़की बदसूरत है और पुरूषों की तरह दिखती है, इसलिए इसका रेप नहीं हो सकता काफी निंदनीय है। अदालत के इस फैसले के बाद अदालत के बाहर ‘शर्म करो’ के नारे भी लगाए गए। हालाँकि देश भर में इस फैसले के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के बाद न्याय मंत्रालय ने फैसले की जाँच के आदेश दिए हैं।