जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्तल ने संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्द जोड़े जाने पर आपत्ति जताई है। हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि भारत अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश रहा है। संविधान की प्रस्तावना से ये दो शब्द जोड़ने से देश की इस छवि को नुकसान पहुँचा है।
रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस मित्तल ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में पहले से ही उल्लेखित ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र’ में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द 1976 में जोड़कर देश की आध्यात्मिक छवि की विशालता को सीमित कर दिया गया। उन्होंने ये भी कहा कि संविधान में देश को ‘आध्यात्मिक लोकतंत्र भारत’ कहा जाना चाहिए था।
जस्टिस पंकज मित्तल ने रविवार (5 दिसंबर 2021) को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के अधिवक्ता परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ‘धर्म और भारत का संविधान: परस्पर क्रिया’ शीर्षक पर बोलते हुए यह बात कही। जस्टिस मित्तल का कहना है कि भारत अपने सभी नागरिकों की देखरेख और सुरक्षा करने में सक्षम है। इसमें पहले से ही समाजवादी प्रकृति शामिल है। उन्होंने कहा कि पांडवों से लेकर मौर्य, गुप्त, मुगलों और अंग्रेजों ने इस पर शासन किया, लेकिन भारत को कभी भी मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में धर्म के आधार पर परिभाषित नहीं किया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि एक आध्यात्मिक राष्ट्र के रूप में देश की सर्वमान्य छवि रही है।
संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े जाने को लेकर उन्होंने कहा, “इसे एक संकीर्ण सोच कहा जा सकता है।” संशोधनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संशोधनों का होना अच्छा है, क्योंकि ये काफी मददगार साबित होते हैं। लेकिन जो राष्ट्रीय हित में नहीं हैं, वे किसी काम के नहीं हैं। उन्होंने कहा, “कभी-कभी हम अपनी जिद के कारण संशोधन लाते हैं।” अपनी बात को पुख्ता करने के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने 1976 में संविधान में किए गए दो संशोधनों का जिक्र किया। पहला संविधान के 14वें चैप्टर में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ना और प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ना। उन्होंने कहा, “ये बहुत अच्छे शब्द हैं, लेकिन हमें यह देखना होगा कि क्या इन संशोधनों की आवश्यकता थी या इन्हें सही जगह पर जोड़ा गया है।”