नक्सली और सीआरपीएफ जवानों के बीच गोलीबारी की घटनाएँ आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं। जब कभी भी जंगलों में सुरक्षा बल के जवान और नक्सलियों के बीच गोलियाँ चलती है तो किसी न किसी का बेटा, पति या भाई ज़रूर मारा जाता है।
देश में हिंसा के सहारे परिवर्तन की चाह रखने वाले नक्सली आतंकी न सिर्फ देशद्रोही हैं बल्कि मानवीय मूल्यों के भी विरोधी हैं। 29 जनवरी 2019 को झारखंड के खूँटी जिले में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच झड़प की एक ख़बर आई थी।
अमर उजाला ने अपने रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि सीआरपीएफ की 209-कोबरा बटालियन और नक्सलियों के बीच जमकर फायरिंग हुई। दोनों ही तरफ़ से हुई गोलाबारी में पाँच नक्सली मारे गए जबकि दो घायल हो गए थे। दो में से एक घायल नक्सली का नाम सोमोपूर्ति है।
सोमोपूर्ति अपने साथी मृत नक्सली को उठाकर साथ ले जाना चाहता था, इसी दौरान उसे सीआरपीएफ की गोली लगी। सोमोपूर्ति को इलाज के लिए राँची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में भर्ती किया गया। अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि इसे खून नहीं चढ़ाया गया तो इसकी मौत हो सकती है।
मौके पर नक्सली के जान पहचान का कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था। इस समय बड़ा सवाल यह था कि खूंखार नक्सली की जान बचाने के लिए खून कौन देगा? ऐसे समय में सीआरपीएफ के कांस्टेबल राजकमल नक्सली की जान बचाने के लिए रक्तदान करने को तैयार हो गए।
जिन सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सली सोमोपूर्ति ने कभी गोलियाँ चलाई होगी, उसी नक्सली की जान CRPF के राजकमल नाम के जवान ने अपना खून देकर बचा लिया।