चाहे कुंभ हो या काँवड़ यात्रा, इनका केवल धार्मिक और सामाजिक महत्व ही नहीं है। ये अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान देते हैं। पिछली रिपोर्ट में हमने आपको बताया था कि कैसे कारोबारी इससे लाभान्वित होते हैं। 23 जुलाई 2022 को मुजफ्फरनगर होते हुए हरिद्वार तक की यात्रा में हमने पाया कि इसका आर्थिक पक्ष एक ही धर्म के लोगों को फायदा नहीं पहुँचाता। अन्य मजहब के लोगों को भी इससे लाभ होता है। यही कारण है कि वे भी काँवड़ यात्रा का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं।
मुजफ्फरनगर हरिद्वार हाइवे पर थाना नई मंडी से थोड़ा आगे चलने पर हमें सड़क के किनारे शिकंजी वाले गुड्डू मियाँ मिले। वे हरिद्वार के ज्वालापुर के रहने वाले हैं। लम्बे समय से मुजफ्फरनगर में शिकंजी बेच रहे हैं। उन्होंने बताया, “काँवड़ यात्रा के दौरान हमारी कमाई आम दिनों के मुकाबले बेहतर होती है।”
चमक उठी अफ़ज़ल की चश्मे की दुकान
उत्तराखंड की सीमा में घुसने के कुछ देर बाद मंगलौर इलाके में अफ़ज़ल सड़क किनारे चश्मा बेचते दिखे। उनके चश्में कई काँवड़ियों ने भी खरीदे। अफ़ज़ल ने बताया कि काँवड़ यात्रा के चलते काँवड़ियों की खरीदारी से उनके चश्मों की बिक्री बढ़ी है।
500 रुपए रोज कमा कर आमिर पाल रहे अपने परिवार को
रुड़की के पास चप्पल और मोज़े बेचने वाले आमिर ने हमें बताया, “मेरी लगभग 500 से 600 रुपए रोज की कमाई है। इसी कमाई से मैं अपना परिवार पालता हूँ। काँवड़ यात्री हमसे तहजीब से बात करते हैं।”
चश्मे वाले सरदार संजू सिंह को भी काँवड़ में फायदा
हर की पौड़ी से पहले लोहा पुल के पास चश्मे बेच रहे सरदार संजू सिंह ने हमें बताया, “मेरा देहरादून में बैलून डेकोरेशन का काम है लेकिन पूरे काँवड़ भर हरिद्वार में चश्मे बेचता हूँ। यहाँ हमारी अच्छी-खासी कमाई हो जाती है।”
काँवड़ बनाने वाले अधिकतर कारीगर मुस्लिम
अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत रवींद्र पुरी ने ऑपइंडिया से कहा, “यहाँ किसी भी प्रकार से भेदभाव किसी के साथ भी नहीं होता। काँवड़ बनाने वाले अधिकतर कारीगर मुस्लिम समुदाय से हैं। इस पर्व से उनके भी घर में चूल्हा जलता है।”
ट्रांसपोर्ट और कपड़े के कारोबार से भी अच्छी कमाई
हरिद्वार के समाजसेवी अधीर कौशिक ने ऑपइंडिया को बताया, “न सिर्फ काँवड़ बनाने वाले, बल्कि यहाँ काँवड़ियों को लाने वाली गाड़ियों के ट्रांसपोर्ट मालिक भी अलग-अलग धर्म से हैं। इसी के साथ काँवड़ियों के कपड़े भी सिर्फ हिन्दू समाज के लोग नहीं बनाते। ये धर्म की नगरी है जो सभी को समान रूप से देखती है।”
स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रसाद, गंगाजल के डिब्बे और सिन्दूर आदि बेचने वालों में सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। हर कोई बिना भेदभाव के अपना व्यापार करता है।