Thursday, November 14, 2024
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‘अगर ब्राह्मण लड़के भी बिना शर्ट आने लगें तो क्या होगा’ : हिजाब विवाद पर कर्नाटक HC में दलील, कोर्ट बोला- यूनिफॉर्म है तो उसे पहनना होगा

आज की सुनवाई में दलील देने के दौरान वकील नागानंद ने याचिकाकर्ताओं के आधार कार्ड की तस्वीर कोर्ट में पेश की। उन्होंने बताया ये लोग हिजाब की पैरवी इस दिशा में नहीं कर रहे कि इन्हें हमेशा हिजाब पहनना चाहिए। अगर ऐसा होता तो आधार कार्ड में इनकी तस्वीरें हिजाब के साथ होंती।

कर्नाटक हिजाब विवाद मामले में आज (23 फरवरी 2022) हाईकोर्ट ने लगातार 9वें दिन सुनवाई की। कल अदालत में एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने कहा था कि इस्लाम बिना हिजाब के भी चल सकता है और फ्रांस का उदाहरण दिया था। आज की सुनवाई में दलील देने के दौरान वकील नागानंद ने याचिकाकर्ताओं के आधार कार्ड की तस्वीर कोर्ट में पेश की। उन्होंने बताया ये लोग हिजाब की पैरवी इस दिशा में नहीं कर रहे कि इन्हें हमेशा हिजाब पहनना चाहिए। अगर ऐसा होता तो आधार कार्ड में इनकी तस्वीरें हिजाब के साथ होंती।

हिजाब के लिए CFI भड़का रहा है छात्राओं को

नागानंद ने कोर्ट को बताया कि सीएफआई के लोग कॉलेज में हिजाब को अनुमति दिलवाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि साल 2004 में कॉलेजों में यूनिफॉर्म को अनिवार्य किया गया था। तब से वही यूनिफॉर्म कॉलेज में पहनी गई। लेकिन अब सीएफआई हिजाब के लिए लोगों को भड़का रहा है। उन्होंने बताया कि सीएफआई ने कुछ शिक्षकों को भी इतना धमकाया है कि वो एफआईआर करने से डर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जो आरोप लगाए जा रहे हैं कि बच्चों को डाँटा गया। उन्हें धमकाया गया। वह बताते हैं कि शिक्षकों ने बस छात्राओं से कहा कि अगर उन्होंने क्लास अटेंड नहीं की तो उन्हें अनुपस्थित दिखाया जाएगा। इसमें धमकी कहा है? उन्होंने ध्यान दिलाया कि कैसे हलफनामे पर हुए हस्ताक्षर एक याचिकाकर्ता की माँ ने किए। वह पूछते हैं कि आखिर माँ को कैसे पता कि कॉलेज में क्या होता है।

मामले में दलीलें पेश करते हुए नागानंद ने कहा कि ये कोर्ट का समय सिर्फ बर्बाद किया जा रहा है वो भी निराधार आरोपों पर। उन्होंने ये भी कहा कि अगर बात अनुच्छेद 25 के उल्लंघन की है तो मजहब की आजादी और अंत: करण की स्वतंत्रता एक साथ आती है। तो क्या ये है आपके अंत:करण की आवाज है।

उन्होंने ये भी बताया कि अनुच्छेद 25 (1) में जो पब्लिक ऑर्डर आता है वह वो नहीं है जो अनुच्छे 19 में बताया जा रहा है। एक बच्चे का उदाहरण देते हुए समझाया कि अगर कोई बच्चा घर में गलत बर्ताव करे तो उसे समझाया जाएगा वो ऐसा न करे। अगर ऐसा जारी रहे तो हो सकता है बच्चे को थप्पड़ भी पड़ जाए। ये अभिभावकों का अधिकार है। यही कल्पना क्लासरूम के लिए करिए। प्रशासन कहता है कि आप जब बच्चे को स्कूल भेजेंगे, तो शिक्षक उन्हें अनुशासन सिखाएगा। 

उन्होंने उदाहरण दिया कि कुछ रूढ़िवादी ब्राहम्ण लड़के हैं जो उपनयम के बाद मानते हैं कि शर्ट नहीं पहननी चाहिए। अगर ये लड़के कहें कि ये इनका धर्म हैं और ये इसे करेंगे तो क्या होगा। स्कूलों को क्लासरूम में अनुशासन बनाए रखना होगा। इसपर 2004 से सवाल नहीं उठा। कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी कॉलेज की जगह काम कर रही है, ये कोई अंजान चीज नहीं हैं। वो आजाद हैं कि स्कूलों में यूनिफॉर्म पर निर्णय ले सकें। ये बच्चों के लिए अच्छा भी होगा क्योंकि इससे उनके अंदर मजहबी कट्टरता से छुटकारा मिलेगा।

उन्होंने दावा किया कि सीएफआई इस मामले में घुसी व बच्चों और उनके अभिभावकों को भड़काया। सभी दलीलों के बीच नागानंद ने तमाम विदेशी घटनाओं का जिक्र किया। इसमें ईरान में शाह शासन का भी जिक्र है जब वहाँ कोई पर्दा नहीं हुआ करता था।  कई महिलाएँ ईरान से बंगलुरु आती थीं। उन्होंने कहा कि बच्चों को सिखाना होगा कि वो ये भेदभाव न करें। स्कूल आते समय कोई धार्मिक चीज न पहनें।

भेदभाव मिटाने के लिए तय होती है यूनिफॉर्म

आज की सुनवाई में वरिष्ठ वकील साजन पोवैया ने सीडीसी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की ओर से कहा कि वो नागानंद द्वारा कही गई हर बात से सहमत हैं। उन्होंने अनुच्छेदों का उदाहरण देते हुए कहा कि राज्य किसी को ये नहीं कह सकता कि वो मुस्लिम क्यों है, लेकिन राज्य किसी पहनावे पर प्रतिबंध लगा सकता है। पोवैया ने बताया कि भेदभाव मिटाने के लिए यूनिफॉर्म तय की जाती है। उन्होंने पूछा कि क्या अगर हिजाब पहनने से किसी को रोका जाए तो इसका अर्थ ये है कि मजहब में बदलाव किया जा रहा है या ये है जो हिजाब नहीं पहनते हैं वो मजहब नहीं मानते? कोई मुस्लिम बच्चा हिजाब पहनेगा और हिंदू भगवा स्कॉर्फ तो ये दोनों ही चीजें ठीक नहीं हैं। आर्टिकल 25 मजहब को मानने का अधिकार देता है। मजहबी पोषाक पहनने का नहीं। उन्होंने कहा कि वह छात्रों को फिजिक्स, केमेस्ट्री और ज्योग्राफी नहीं पढ़ाते हुए ये नहीं कह सकते हैं कि वो लोग मजहबी कपड़ों में आएँ। स्कूलिंग सिर्फ शैक्षिक ही नहीं बल्कि पूरे विकास से संबंधित है।

जल्द रखे जाएँ सभी पक्ष, 6 माह नहीं चलेगी सुनवाई

बता दें कि अब इस मामले की अगली सुनवाई कल 2:30 बजे फिर शुरू होगी। कोर्ट ने इस सुनवाई में कहा कि अगर डिग्री कॉलेजों में यूनिफॉर्म के निर्देश हैं तो इसे मानना होगा। कोर्ट के निर्देश छात्र-छात्राओं के लिए हैं। ये टिप्पणी कोर्ट ने एजी द्वारा भंडारकर कॉलेज द्वारा बनाए गए यूनिफॉर्म नियम को लेकर की गई। कोर्ट ने सभी लोगों ने लिखित हलफनामे दायर करने को कहे और कहा कि इस मामले पर 6 माह तक सुनवाई नहीं हो सकती है। अदालत चाहती है कि इस मामले पर जल्द से जल्द दलीलें रखी जाएँ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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