एक दंग कर देने वाली सलाह में कर्नाटक के हाई कोर्ट ने राज्य की बीएस येद्दुरप्पा सरकार से इस्लामिक तानाशाह टीपू सुल्तान की जयंती न मनाने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है। भाजपा सरकार ने कॉन्ग्रेस के समय से चलती आ रही टीपू का जन्मदिन मनाए जाने की प्रथा पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) डाली गई और सरकार के निर्णय को चुनौती दी गई थी। उसी की सुनवाई में अदालत ने यह सलाह दी थी।
#TipuSultanJayanti: #KarnatakaHigh Court Asks #BJP Govt to ‘Reconsider’ Decision to Call off Celebrations#BYYediyurappahttps://t.co/i4ZYa9zU8C
— LatestLY (@latestly) November 6, 2019
भाजपा सरकार ने अदालत को यह बताया कि अगर कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्तर पर टीपू सुल्तान के जन्म दिन का उत्सव करना चाहता है तो उस पर कोई रोक नहीं है। केवल कॉन्ग्रेस की सरकारों के उलट भाजपा की सरकार, सरकार के स्तर पर यह आयोजन नहीं करेगी। इसके बाद भी कर्नाटक की उच्च अदालत ने भारतीय जनता पार्टी को इस्लामी कट्टरपंथी और तानाशाह की जयंती मनाना छोड़ने के निर्णय के बारे में एक बार और सोचने की सलाह देना बंद नहीं किया।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने भाजपा सरकार को इस बारे में फैसला लेने के लिए दो महीने का समय दिया है, ‘सभी पहलुओं’ पर सोच विचार कर के निर्णय लेने के लिए। इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। टीपू सुलतान का जन्म दिन 20 नवंबर को पड़ता है, यानि कम से कम इस साल अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार न चाहे तो टीपू सुल्तान जयंती नहीं मनाई जा सकती।
कल (6 नवंबर, 2019 को) बिलाल अली की पीआईएल की सुनवाई करने बैठी बेंच ने यह सभी टिप्पणियाँ की थीं। इस बेंच का नेतृत्व और कोई नहीं, खुद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ए एस ओका कर रहे थे। इसी बेंच ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या कारण है राज्य सरकार द्वारा पिछले चार साल से किए जा रहे आयोजन को रोकने का। याचिकाकर्ता बिलाल दिलचस्प रूप से खुद कर्नाटक के निवासी नहीं बल्कि लखनऊ, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। वे अलबत्ता टीपू नेशनल सर्विस एसोसिएशन और टीपू सुल्तान यूनाइटेड फोरम के अध्यक्ष ज़रूर हैं।
अपनी पीआईएल में उन्होंने सरकार के टीपू जयंती को रद्द करने के फैसले को चुनौती दी। साथ ही दावा किया कि यह रद्द किया जाना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के खिलाफ है।
दिलचस्प बात यह है कि तीन साल पहले 2016 में इसी हाई कोर्ट ने टीपू सुल्तान की जयंती सार्वजनिक धन से मनाए जाने के औचित्य पर ही सवाल खड़ा किया था। उस समय के मुख्य न्यायाधीश सुभ्रो कमल मुख़र्जी ने कहा था कि टीपू कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं, महज़ एक राजा था जिसने अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए दुश्मनों से युद्ध किया था।