कौशाम्बी गैंगरेप मामले में स्वराज्य पत्रिका के पोर्टल पर प्रकाशित स्वाति गोयल-शर्मा की रिपोर्ट स्तब्ध कर देने वाले खुलासों से भरी पड़ी है। न केवल इसमें स्थानीय समुदाय विशेष के आरोपितों की उम्र कम करके बताने की कोशिश और बलात्कार को “नादानी” कहने जैसी घटनाओं का ज़िक्र है, बल्कि पुलिसिया लीपापोती से लेकर भाजपा के जनप्रतिनिधि के नाकारेपन तक का कच्चा चिट्ठा भी है।
21 सितंबर को दोपहर में हुए अपराध की रिपोर्ट रात 9.30 बजे के बाद लिखी जाती है। जिस बाप की बेटी को नंगा कर नोंचा गया, उसे ज़मीन पर बिठा कर रखा जाता है (उनके आरोप के अनुसार पीटा भी जाता है) और जो भीड़ आरोपित नाज़िम को रंगे-हाथों पकड़ती है, शायद उसी भीड़ में से कोई बलात्कार का वीडियो वायरल भी कर देता है, फ़ोन पुलिस को सौंपने के पहले।
स्वाति गोयल शर्मा की रिपोर्ट बताती है कि गैंगरेप की घटना नाबालिग पीड़िता की बस्ती के महज़ 100 मीटर दूर हुई, जहाँ वह घास काटने गई हुई थी। आरोपितों के घर जिस समुदाय विशेष की बस्ती में हैं, वह भी पास ही है। घटना के बाद जब पीड़िता की चीखें सुन कर स्थानीय लोग वहाँ पहुँचे तो उनमें से एक लड़की को वापिस अपने घर जाना पड़ा- एक सलवार लाने के लिए, जिससे पीड़िता अपने आप को ढँक सके। कथित तौर पर बलात्कारियों ने पीड़िता का कुरता नहीं उतारा- क्योंकि वह अनुसूचित जाति पासी की थी, जिसे स्थानीय समुदाय विशेष वाले अपने से ‘नीचे’ देखते हैं।
स्थानीय लोगों ने स्वाति गोयल-शर्मा को यह भी बताया कि लड़की की चीखें सुनकर इकट्ठा होने वालों की भीड़ केवल हिन्दुओं की थी- वह भी अधिकाँश “नीची” जाति के हिन्दू। न ही कोई दुसरे मजहब विशेष से झाँकने आया, न ही ज्यादा “ऊँची” जाति वाले हिन्दुओं ने इसमें दिलचस्पी ली। और वह तब है जब वह इलाका कथित अल्पसंख्यक-बहुल क्षेत्र है। करीब 600 घरों में से 65%, यानी 400 के आस-पास दूसरे मजहब वालों के हैं।
तीन ने बलात्कार कर ‘अहसान’ किया, वरना 20 करते?
2 मिनट 13 सेकंड के वीडियो में वीडियो बनाने वाला (पीड़िता के आरोप के अनुसार मोहम्मद नाज़िम) पीड़िता से कहता है, “हम लोग नहीं होते तो कम-से-कम 20 लड़के इकट्ठा होते और (गैंगरेप करने के बाद?) तेरे बाप के पास ले जाते।” वीडियो में पीड़िता आरोपितों के घर की बहन-बेटियों का हवाला देती है, भगवान का हवाला देती है। भगवान की कसम पर वे अल्लाह की कसम खाने को कहते हैं, तो वह वो भी करती है। लेकिन बलात्कारी नहीं रुकता। लड़की को वह बताता है कि उसे ‘दो मिनट और चाहिए’। तभी वीडियो बनाने वाला कहता है कि अब उसकी ‘बारी’ है। लड़की इसके बाद चीखने लगती है।
एक तरफ़ भाजपा के नेता मंचों से चढ़ कर बताते हैं कि कैसे न केवल उनके राज में पुलिस-प्रशासन चाक-चौबंद चलने लगता है, बल्कि हिन्दू भी उन्हीं के राज में सुरक्षित हो सकते हैं। स्वाति की रिपोर्ट इस दावे को भी नंगा कर देती है।
स्वाति के अनुसार पीड़िता के परिवार और अन्य स्थानीय ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि सबसे पहले वे भाजपा से जुड़े और सराय अकील नगर के चेयरमैन शिवदानी के पास ही गए, लेकिन उन्होंने उन लोगों को पुलिस के पास जाने की सलाह देकर टरका दिया। अपने आने की बात पर वह ‘तू चल मैं आता हूँ’ हो लिए।
इसके बाद ग्रामीण स्थानीय भाजपा विधायक संजय गुप्ता के ‘जनता दरबार’ में भी गए, लेकिन वहाँ भी उन्हें यही बताया गया कि विधायक जी मामले पर ‘गौर करेंगे’, ‘पुलिस को फ़ोन करेंगे जल्दी ही’। अंत में हार कर उन्हें स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता के पास जाना पड़ा। उन्हीं दम्पति के घर पीड़िता 21 सितंबर की इस घटना के बाद से रुकी हुई है।
किस नज़र से 18 साल का है ‘छोटका’?
स्वाति गोयल-शर्मा यह भी लिखतीं हैं कि जब वे दूसरे मजहब की बस्ती में आरोपितों और उनके समाज का पक्ष जानने गईं तो वहाँ पहले तो कोई अधिक बात करने को ही तैयार नहीं हुआ। किसी तरह बात करने के लिए उन्होंने स्थानीय मस्जिद में रसूख रखने वाले वयोवृद्ध दर्जी को तैयार किया। उसने बताया कि उन लड़कों की ‘नादानी’ से यह घटना हुई है! उन्होंने तो यहाँ तक कि पुलिस की जाँच में क्रमशः 20, 27 और 28 साल के पाए गए नाज़िम, आदिल (‘छोटका’ और ‘आतंकवादी’ के नाम से जाना जाने वाला) और आदिक (‘बड़का’, कुछ जगहों पर नाम आकिब भी रिपोर्ट किया जा रहा है) को 14, 18 और 20 साल का बता दिया। यही नहीं, वह “पासी लोग” पर उन लड़कों को खुद बुलाने का आरोप लगाते हैं।