केरल में अब एक नया विवाद छिड़ गया है। दरअसल ईसाईयों के त्योहार क्रिसमस से ठीक पहले ईसाइयों ने हलाल माँस का बहिष्कार करने का फैसला किया है। समाचार पोर्टल ‘टाइम्स नाउ’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ईसाई समुदाय के इस फैसले को हिंदू समूहों ने भी अपना समर्थन दिया है। उनका कहना है कि राज्य में हिंदू धर्म के लोग हलाल माँस बेचने के लिए मजबूर हैं। क्रिश्चियन एसोसिएशन CASA ने ईसाइयों से अपील की है कि हलाल भोजन को अब उनकी खाने की टेबल पर नहीं लाया जाना चाहिए।
Halal meat controversy erupts in Kerala.
— TIMES NOW (@TimesNow) December 15, 2020
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Details by Vivek K. pic.twitter.com/Xjf6REqdQ0
ईसाई समुदाय का कहना है कि ईसा मसीह के जन्मदिन पर हलाल माँस क्यों खाना चाहिए? इस विवाद पर कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। हिंदू समूहों का दावा है कि ईसाई और हिंदू दोनों को हलाल माँस बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। वहीं आईयूएमएल ने इसे राज्य में मुस्लिम माँस की दुकानों का बहिष्कार करने के लिए उठाया गया एक कदम बताया।
उल्लेखनीय है कि ‘झटका सर्टिफिकेशन अथाॅरिटी’ के चेयरमैन रवि रंजन सिंह बताते हैं कि ‘झटका‘ विधि हिन्दुओं, सिखों आदि भारतीय, धार्मिक परम्पराओं में ‘बलि/बलिदान’ देने की पारम्परिक पद्धति है। इसमें जानवर की गर्दन पर एक झटके में वार कर रीढ़ की नस और दिमाग का सम्पर्क काट दिया जाता है, जिससे जानवर को मरते समय दर्द न्यूनतम होता है। इसके उलट, हलाल में जानवर की गले की नस में चीरा लगाकर छोड़ दिया जाता है, और जानवर खून बहने से तड़प-तड़प कर मरता है।
इसके अलावा, मारे जाते समय जानवर को खास समुदाय के पवित्र स्थल मक्का की तरफ़ ही चेहरा करना होगा। लेकिन सबसे आपत्तिजनक शर्तों में से एक है कि हलाल माँस के काम में ‘काफ़िरों’ (‘बुतपरस्त’, जैसे हिन्दू) को रोज़गार नहीं मिलेगा। यानी कि यह काम सिर्फ एक समुदाय विशेष का सदस्य ही कर सकता है।
इसमें जानवर/पक्षी को काटने से लेकर, पैकेजिंग तक में सिर्फ और सिर्फ खास समुदाय वाला ही शामिल हो सकते हैं। मतलब, इस पूरी प्रक्रिया में, पूरी इंडस्ट्री में एक भी नौकरी अन्य धर्मों के लिए नहीं है। यह पूरा कॉन्सेप्ट ही हर नागरिक को रोजगार के समान अवसर देने की अवधारणा के खिलाफ है। बता दें कि आज McDonald’s और Licious जैसी कंपनियाँ सिर्फ हलाल माँस बेचती है।