पोर्नोग्राफ़ी (Pornography) से जुड़े अपराध के एक मामले में केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने सेक्स, पोर्नोग्राफ़ी और बच्चों के लिए घर का बना खाना मुहैया कराने की अहमियत पर कुछ दिलचस्प टिप्पणियाँ कीं। कोर्ट ने ये टिप्पणियाँ अनीश बनाम केरल राज्य केस के मामले में की है।
दरअसल केरल हाईकोर्ट ने इस केस के फैसले में कहा कि किसी निजी स्थान पर दूसरे को दिखाए बगैर अश्लील फोटो या वीडियो देखना कानून के तहत अपराध नहीं है, क्योंकि यह निजी पसंद का मामला है। कोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के काम को अपराध घोषित करना किसी शख्स की निजता में दखल और उसकी निजी पसंद में दखलअंदाजी करना होगा।
जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने पेरेंट्स को सलाह दी कि वो अपने बच्चों को स्विगी और ज़ोमैटो जैसे मोबाइल ऐप के जरिए खाना ऑर्डर करने की अनुमति देने के बजाय बाहर खेलने और उनकी माँ द्वारा पकाया गया स्वादिष्ट भोजन खाने के लिए प्रोत्साहित करें। पोर्नोग्राफी के मामले में जस्टिस कुन्हिकृष्णन माँ के पकाए खाने की बात क्यों की, यहाँ जानें।
घर के बने खाने पर
बार एंड बेच के मुताबिक, फैसले में हाईकोर्ट ने कहा, “बच्चों को अपने खाली वक्त में क्रिकेट या फुटबॉल या अन्य खेल खेलने दें जो उन्हें पसंद हैं। स्वस्थ युवा पीढ़ी के लिए यह जरूरी है, जिन्हें भविष्य में हमारे देश की आशा की किरण बनना है।”
कोर्ट ने आगे कहा, “‘स्विगी’ और ‘ज़ोमैटो’ के माध्यम से रेस्तराँ से खाना खरीदने के बजाय बच्चों को उनकी माँ के हाथ के बने स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेने दें। बच्चों को खेल के मैदान में खेलने दें और घर वापस आकर माँ के भोजन की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू का आनंद लें। मैं इसे इस समाज के नाबालिग बच्चों की माता-पिता की बुद्धि पर छोड़ता हूँ।“
सेक्स पर केरल एचसी का नजरिया
कोर्ट ने कहा, “भगवान ने कामुकता को विवाह के भीतर एक पुरुष और एक महिला के लिए कुछ इस तरह डिज़ाइन किया है कि सेक्स केवल वासना के लिए नहीं, बल्कि प्यार जताने और संतान पैदा करने के लिए भी है। वयस्क हो चुके एक पुरुष और महिला सहमति से यौन संबंध बनाते हैं तो ये एक अपराध नहीं है।”
हालाँकि, यह माना गया कि हमारे देश में एक पुरुष और महिला के बीच सहमति से यौन संबंध कोई अपराध नहीं है, अगर यह उनकी गोपनीयता के दायरे में है। कोर्ट ने कहा, “ऐसे में, अदालत को सहमति से यौन संबंध बनाने या गोपनीयता में अश्लील वीडियो देखने को मान्यता देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये समाज की इच्छा के फैसले के क्षेत्र में है।”
‘पोर्नोग्राफी सदियों से चलन में है’
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि अकेले में पोर्न देखना अपने आप में दंडनीय अपराध नहीं है, लेकिन नाबालिग बच्चों को अपने मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट तक बेरोक-टोक पहुँच की अनुमति देने में बड़े नुकसान हैं।
कोर्ट ने आगेे कहा, “लेकिन इस मामले से अलग होने से पहले, मुझे हमारे देश में नाबालिग बच्चों के माता-पिता को याद दिलाना चाहिए। पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन अगर नाबालिग बच्चे पोर्न वीडियो देखना शुरू कर देंगे, जो अब सभी मोबाइल फोन पर उपलब्ध हैं तो इसके दूरगामी परिणाम भुगतने होंगे।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि पोर्नोग्राफी सदियों से चलन में है। सिंगल जज का मत था, “नए डिजिटल युग ने इसे पहले से कहीं अधिक सुलभ बना दिया है। यह (पोर्नोग्राफी) बच्चों और वयस्कों के लिए भी आसानी से उपलब्ध है।”
‘न दें बच्चों को बर्थ डे पर मोबाइल फोन’
जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने सुझाव दिया कि पेरेंट्स बच्चों को उनके जन्मदिन पर मोबाइल फोन उपहार में देने के बजाय केक काटने की रस्म के साथ उनकी माँ के घर पर पकाए खाने के साथ अधिक पारंपरिक उत्सव दे सकते हैं।
अदालत ने कहा, “बच्चों के जन्मदिन पर माँ के हाथों से बने स्वादिष्ट भोजन और केक काटने की बजाय, माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों को खुश करने के लिए ऐसे मौके पर उन्हें उपहार के तौर पर इंटरनेट सुविधा वाले मोबाइल फोन दे रहे हैं। माता-पिता को इसके पीछे के खतरे को लेकर सचेत रहना चाहिए।”
कोर्ट ने आगे कहा, “बच्चों को अपने माता-पिता की मौजूदगी में उनके मोबाइल पर ही फोन से सूचनात्मक खबरें और वीडियो देखने दें। माता-पिता को कभी भी नाबालिग बच्चों को खुश करने के लिए उन्हें मोबाइल फोन नहीं सौंपना चाहिए और न ही उसके बाद घर के अपने रोजाना के कामों को पूरा करने में लगना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों को बगैर निगरानी के मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का मौका मिल जाएगा।”
जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने ये सारी टिप्पणियाँ IPC की धारा 292 के तहत 33 साल के एक शख्स के खिलाफ अश्लीलता के मामले को रद्द करने के फैसले के दौरान की। इस शख्स को साल 2016 में पुलिस ने कोच्ची के अलुवा महल में सड़क के किनारे अपने मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखते हुए पकड़ा था।
इस मामले में आरोपित शख्स ने एफआईआर और इससे जुड़ी अदालती कार्यवाही को रद्द करने की याचिका दायर की थी। हालाँकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि भले ही उसके खिलाफ सभी आरोपों को सच मान लिया जाए, फिर भी धारा 292 के तहत अपराध स्थापित नहीं किया जाएगा। याचिकाकर्ता पर बगैर किसी को दिखाए अकेले में पोर्न देखने का आरोप था, इसलिए कोर्ट उसकी दलील से सहमत हो गया।