केरल के बहुचर्चित नन रेप केस (Nun Rape Case) में बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी किए जाने के फैसले को पीड़िता नन ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार ने भी इस मामले में उच्च न्यायालय में अपील की है। पीड़िता ने बुधवार (30 मार्च 2022) को केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की। लोअर कोर्ट ने मामले में अपील दायर करने की समय सीमा फैसले की तारीख से 90 दिनों की तय की थी।
राज्य सरकार ने अपील में कहा है कि पीड़िता द्वारा दिए गए सबूत, कई गवाहों के बयानों और सबूतों से पुष्टि होती है कि नन के साथ बिशप फ्रैंको मुलक्कल ने अप्राकृतिक अपराध और बलात्कार किया था। केरल सरकार ने यह भी कहा कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए सबूतों की जाँच किए बिना, ट्रायल जज ने अपने पूर्व निर्धारित सोच के आधार पर फैसला दिया। राज्य सरकार ने अपनी अपील में तर्क दिया है कि सबूतों पर गलत तरीके से विचार कर पीड़िता को बदनाम करने का हर संभव प्रयास किया गया।
याचिका में कहा गया है, “अभियोजन के साक्ष्य को सही परिप्रेक्ष्य में देखे बिना, ट्रायल कोर्ट ने तथ्यों को गलत समझा और आरोपित को बलात्कार सहित अन्य आरोपों से अनुचित रूप से बरी कर दिया।” अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि 5 मई 2014 से 23 सितंबर 2016 तक सेंट फ्रांसिस मिशन होम के गेस्ट रूम में पीड़िता के साथ 13 बार बलात्कार किया गया था। केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि जब एक नन के कौमार्य (virginity) का उल्लंघन होता है, तो उसे जो सामाजिक कलंक झेलना पड़ता है, वह एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक होता है। उसे अपनी ननशिप हमेशा के लिए छोड़नी पड़ती है। उसे बहिष्कृत कर दिया जाता है।
गौरतलब है कि नन ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2014 से 2016 के दौरान 57 वर्षीय मुलक्कल ने उसके साथ कई बार रेप किया। तब मुलक्कल रोमन कैथोलिक चर्च के जलंधर डियोसेस के बिशप थे। लेकिन इसी साल 14 जनवरी को अतिरिक्त जिला एवं सत्र अदालत प्रथम, कोट्टायम ने बिशप फ्रैंको मुलक्कल को इस मामले में बरी कर दिया था। अदालत ने यह फैसला देते हुए कहा था कि आरोपित के खिलाफ अभियोजन पक्ष साक्ष्य मुहैया कराने में असफल रहा।