पश्चिम बंगाल लोकतंत्र का खुला उपहास बन चुका है। लोकतंत्र का प्रहरी वहाँ डरा हुआ है, राज्य पुलिस हिन्दुओं पर होने वाली बदसलूकी पर FIR दर्ज करने से मना करने लगी है। क्या उसे अल्पसंख्यकों से डर लगने लगा है? अगर हाँ, तो फिर लोकतंत्र क्या धरना देने गया है? ममता बनर्जी को अपने नेता और व्यक्तिगत अधिकारियों को इनकम टैक्स की रेड से बचाने के लिए केजरीवाल मॉडल आधारित धरना प्रदर्शन से समय निकालकर अल्पसंख्यकों द्वारा चलाए जा रहे इस व्यापक धर्म परिवर्तन अभियान के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए, यह संविधान की सेक्युलर छवि पर प्रश्नचिन्ह है।
भारतीय पत्रकार चाहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को शांति को नोबेल पुरस्कार दिलाए जाने की कितनी भी वकालत कर लें, लेकिन पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाओं का कोई समाधान नहीं है। पाकिस्तान एक आतंकवादी मिजाज की सेना और मज़हब संचालित मशीनरी पर काम करता है, इसलिए उस देश से लोकतान्त्रिक मूल्यों की उम्मीद करना एक चुटकुले से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन, भारत जैसे देशों में भी हिन्दुओं के साथ अक्सर बदसलूकी और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। चिंता का विषय ये है कि इस देश में हिन्दुओं के साथ बदसलूकी, जबरन धर्म परिवर्तन और नाबालिग लड़कियों का निकाह करवा देना ऐसे समुदाय के लोगों द्वारा करवाया जाता है, जो अल्पसंख्यक माने जाते हैं। कहीं पश्चिम बंगाल पाकिस्तान की कियोस्क ब्रांच तो नहीं बनती जा रही है?
लड़कियों का अपहरण के बाद धर्म परिवर्तन करवाकर निकाह
अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा इस तरह का सबसे ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल से आया है, जिसकी ममता बनर्जी हर दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाती हैं। कोलकाता में एक व्यक्ति का आरोप है कि उसकी 2 बेटियों का जबरन हिन्दू से मुस्लिम मज़हब में मतांतरण कराने के बाद शादी करा दी गई है। इनमें से एक लड़की नाबालिग है।
अब यह पीड़ित पिता अपनी बेटियों के लिए न्याय माँग रहा है, लेकिन सवाल ये है कि न्याय दिलाए कौन? पीड़ित व्यक्ति ने बताया कि 31 मार्च को इस मामले में दूसरी बार उसने शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन पुलिस की ओर से अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। लड़कियों के पिता का दावा है कि पुलिस ने अभी तक FIR दर्ज नहीं की है। आखिर एक लोकतान्त्रिक देश में पुलिस को किसका डर हो सकता है?
पिता की ओर से पुलिस को दी गई शिकायत के अनुसार, “मेरी दो बेटियाँ हैं। हाल ही में मुझे पता चला कि हमारे इलाके में कुछ मुस्लिम लड़के बालिग और नाबालिग दोनों तरह की लड़कियों को फँसाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें मेरी बेटियाँ भी शामिल हैं। शुरुआत में उन्होंने हिंदू बनकर मेरी बेटियों से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन जब मेरी बेटियों को आरोपित शहबाज और अहमद खान की असलियत का पता चला तो उन्होंने कोई भी संबंध रखने से इनकार कर दिया।”
अपनी नाबालिग लड़की का जिक्र करते हुए पीड़ित पिता ने कहा, “आरोपित युवक और उसके दोस्तों ने मेरी नाबालिग लड़की को धमकाना शुरू कर दिया। उसने धमकी दी कि वह मुझे, मेरी पत्नी और बेटे समेत परिवार के दूसरे को सदस्यों को जान से मार देगा। उसने मेरी नाबालिग बेटी पर इस्लाम अपनाने और शादी करने के लिए दबाव बनाया। जब उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो आरोपित बार-बार उसे ऐसा करने की धमकी देता रहा।”
नाबालिग की करवाई गई शादी
FIR लिखवाने गए पिता का कहना है कि 11 मार्च को उनकी दोनों लड़कियाँ लापता हो गई थीं। काफी खोजबीन करने के बावजूद लड़कियों का पता नहीं चला। इसके बाद जोरबागान पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने उनकी एक बेटी को खोज निकाला। 12 मार्च को पीड़ित पिता ने एक और शिकायत (GD नंबर 935) दर्ज कराई। इसमें बेटी के लापता होने की गुहार लगाते हुए पुलिस से मदद माँगी गई। अब प्रश्न ये उठता है कि इतने संवेदनशील मामले में कोलकाता पुलिस ने इतने संवेदनशील मामले में FIR दर्ज क्यों नहीं की? क्या बंगाल में कोई महिला आयोग जैसी संस्था है, जो इस घटना पर तत्परता दिखाए? क्या उन्होंने प्रयास किया? अगर महिला आयोग को इसकी जानकारी है, तो उन्होंने इस मामले में अब तक क्या कदम उठाए हैं?
लड़कियों के पिता का कहना है कि उनकी एक बेटी के बरामद होने के बाद इस पूरे गिरोह का खुलासा हो गया है। उसे शहबाज अहमद खान के साथ शादी करने के लिए बाध्य किया गया। यहाँ तक कि उसका नाम भी बदल दिया गया। मुस्लिम निकाहनामे में उसकी उम्र 19 साल लिखी गई है, जबकि वह महज 17 साल के करीब है।
भले ही पुलिस ने नाबालिग लड़की को बरामद कर लिया हो लेकिन उसकी बड़ी बहन अभी तक घर नहीं लौटी है। पीड़ित पिता ने का कहना है कि छोटी बेटी ने घर लौटने के बाद सारी कहानी उन्हें बताई। उसने बताया कि दोनों बहनों को शादी करने के लिए धमकाया गया था। साथ ही उनसे कहा गया था कि अगर शादी नहीं की तो माता-पिता समेत परिवार के सदस्यों को मार देंगे और दोनों के चेहरे पर तेजाब फेंक देंगे। इससे दोनों घबरा गईं थीं। पिता का कहना है कि निकाह को कोलकाता के बुर्रा बाजार इलाके की ‘बड़ी मस्जिद’ में कराया गया।
नाबालिग का नहीं कराया मेडिकल
पश्चिम बंगाल में भरे धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र के बीच अपनी दोनों बेटियों के लिए न्याय की लड़ाई अकेले लड़ रहे पिता की शिकायत है कि नाबालिग लड़की के बरामद होने के बाद उसका कोई मेडिकल चेकअप नहीं कराया गया। उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया है यह मेडिकल से स्पष्ट हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।
धर्म परिवर्तन करवाने वाले गिरोहों पर राज्य सरकार को संज्ञान लेना चाहिए। अगर इस तरह की घटनाओं पर ममता बनर्जी अभी भी कोई सख्त कदम नहीं उठाती हैं तो हर दूसरे दिन होने वाली RSS कार्यकर्ताओं की हत्या, अल्पसंख्यकों की मनमानी और हिंसा ही पश्चिम बंगाल की पहचान बनकर रह जाएँगे। मीडिया को इन मुद्दों पर चुप नहीं रहना चाहिए, सवाल पूछने के शौकीनों को आज प्राइम टाइम बैठा कर ममता बनर्जी से पूछना चाहिए कि इस बड़ी तादाद में हिन्दुओं पर उनके राज्य में जुर्म क्यों हो रहे हैं और ये सब कब तक रुकने वाला है? ममता बनर्जी को इस मामले में डेडलाइन भी देनी चाहिए, ताकि देश में अल्पसंख्यकों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने से बचाया जा सके और लोकतंत्र जीवित रहे।