उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले का थाना पश्चिम शरीरा इस समय सुर्ख़ियों में है। इसकी वजह सोशल मीडिया में गाँव जाफरपुर महावा की चर्चा है। इन चर्चाओं में मुस्लिम पक्ष द्वारा हिन्दू समुदाय का हुक्का-पानी बंद करने जैसी बातें कही जा रही हैं। कुछ मीडिया संस्थानों ने इसी से मिलती-जुलती खबरों को प्रकाशित किया है। हालाँकि, पुलिस इन खबरों का खंडन कर रही है। हिन्दू संगठनों ने स्थानीय प्रशासन के रवैये पर असंतोष जताते हुए थाने पर प्रदर्शन किया है। ऑपइंडिया ने इस खबर के सभी पहलुओं की पड़ताल की।
जड़ में है जमीनी विवाद
इस पूरे मामले की जड़ में जमीनी विवाद है। गाँव में एक मंदिर है, जो छोटेलाल गुप्ता के घर के बगल है। इस मंदिर से सटी एक जमीन पहले किसी हिन्दू की हुआ करती थी। इस जमीन को गाँव के ही एक मुस्लिम ने खरीद लिया। आरोप है कि खरीदार अब मंदिर की तरफ अपना दरवाजा खोलना चाहता है। दूसरी तरफ होने के बावजूद मुस्लिम खरीदार ‘मेरी जमीन-मेरा अधिकार’ कहकर मंदिर के आगे ही दरवाजा खोलने पर अड़ा हुआ है। हिन्दू पक्ष का मानना है कि ऐसा होने से भविष्य में आए दिन साम्प्रदायिक तनाव फैलेगा, क्योंकि मुस्लिम परिवार के तौर-तरीकों से मंदिर अपवित्र हो सकता है।
हिन्दू पक्ष ने लगाए गंभीर आरोप
इस मामले में गाँव के निवासी छोटेलाल गुप्ता, महेश और वीरेंद्र दिवाकर आदि के बयान सामने आए हैं। इन सभी ने एक स्वर में कहा है कि जमीनी विवाद की कागजी लड़ाई से हटकर मुस्लिम पक्ष अब सामाजिक बहिष्कार पर उतारू हो गया है। आरोप है कि गाँव में मुस्लिम वर्ग के लोगों ने मीटिंग की और इसमें सर्वसम्मति से तय किया गया कि हिन्दुओं के घरों से किसी भी प्रकार का कोई भी लेन-देन नहीं होगा। ऑपइंडिया को स्थानीय डिप्टी एसपी के नाम भेजी गई एक चिट्ठी भी मिली है। पत्र के नीचे छोटेलाल, महेश, राजेश कुमार, रूपेंद्र कुमार शर्मा, धीरेन्द्र सिंह और जगदीश कुमार के दस्तखत हैं।
इस चिट्ठी में गाँव के प्रधान नसीर अहमद, अबरार के बेटे गुड्डू, अकरम, नौशाद और वहाब को हिन्दुओं के बहिष्कार का सूत्रधार बताया गया है। बहिष्कार में हिन्दुओं की दुकान से सामान लेना, उनसे बातचीत करना और इनके खेतों में पानी देने से रोकने के आरोप लगाए गए हैं। इस फरमान को न मानने वाले मुस्लिम पर 5 हजार रुपए जुर्माना और बिरादरी से निकालने की चेतावनी दी गई है। शिकायत में गाँव के हिन्दुओं के अंदर दहशत का माहौल होने की बात कही गई है। सिंचाई के लिए पानी न मिलने से प्रभावित हिन्दुओं के नाम वैजनाथ और राजेश लिखे गए हैं। प्रार्थी के तौर पर समस्त हिन्दू समाज लिखा हुआ है।
ग्राम प्रधान ने आरोपों को आंशिक रूप से स्वीकारा
ऑपइंडिया को इस पूरे विवाद पर ग्राम प्रधान नस्सन उर्फ़ नसीर अहमद की एक वीडियो बाइट मिली है। नसीर अहमद ने पहले तो हिन्दू-मुस्लिम एकता जैसी तमाम बातें कहीं। उन्होंने जमीनी विवाद में भी मुस्लिम खरीदार का ही पक्ष लिया और उसके द्वारा कराए जा रहे निर्माण को सही करार दिया। ग्राम प्रधान ने किसी के भी सामाजिक बहिष्कार जैसी बातों से इनकार किया। अंत में उन्होंने यह माना कि हिन्दू-मुस्लिम की बातें करने वाले कुछ लोगों के खिलाफ कड़े कदम उठाए गए है।
पुलिस द्वारा तमाम आरोपों का खंडन
इस पूरे मामले में कौशाम्बी पुलिस ने सोमवार (10 जून 2024) को अपना बयान जारी किया है। पुलिस के मुताबिक, गाँव में किसी के बहिष्कार करने जैसा फतवा देने आदि की बातें निराधार और भ्रामक हैं। साथ ही पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि सिंचाई के लिए पानी न देने का मामला सामूहिक नहीं, बल्कि एक व्यक्ति का था। तब फकीरे ने पानी लेने से पहले पुराना बकाया खत्म करने के लिए कहा था। गाँव में आंतरिक शान्ति का दावा करते हुए पुलिस ने कहा है कि कुछ बाहरी लोग वहाँ का माहौल खराब करना चाहते हैं, जिनको कड़ी हिदायत दी गई है।
— KAUSHAMBI POLICE (@kaushambipolice) June 10, 2024
प्रशासन की कार्यशैली से हिन्दू संगठन नाखुश
वहीं, हिन्दू संगठनों ने प्रशासनिक कार्यशैली पर नाराजगी जताई है। गाँव में हिन्दुओं के साथ अन्याय का आरोप लगाकर हिन्दू संगठन से जुड़े सदस्यों ने 9 जून 2024 (रविवार) को पश्चिम शरीरा पुलिस स्टेशन में धरना दिया। धरने के दौरान पुलिस पर हिन्दू पक्ष को धमकाने, राजस्व अधिकारियों द्वारा एकतरफा फैसले लेने जैसे आरोप लगाए गए। धरने के दौरान मामले की शिकायत सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से करने का एलान किया गया है।
गाँव में मुस्लिम और हिन्दू आबादी लगभग बराबर बताई गई। हिन्दू संगठनों ने घोषणा की है कि गाँव के हिन्दुओं को किसी भी अन्याय का शिकार नहीं होने देंगे। फिलहाल गाँव में शांति है। प्रशासन हालत पर लगातार नजर रखे हुए है। इसको लेकर सोशल मीडिया की भी निगरानी की जा रही है।