कर्नाटक के लेखक और तथाकथित तर्कवादी केएस भगवान (KS Bhagwan) ने एक बार फिर भगवान राम के बारे में जहर उगला है। एक कार्यक्रम में उन्होंने भगवान राम के बारे में बोलते हुए कहा कि वह माँ सीता के साथ हर दोपहर बैठकर शराब पीते थे। उन्होंने साथ ही कहा कि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कहा गया है। अपना बचाव करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि ये सब वो नहीं कह रहे हैं बल्कि दस्तावेज कह रहे हैं।
उन्होंने 20 जनवरी 2023 को कर्नाटक के मांड्या में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कार्यक्रम के दौरान कहा, ”भगवान राम की दोपहर में मुख्य गतिविधि माँ सीता के साथ बैठकर शराब पीने की होती थी।” उन्होंने साथ ही अपनी बातों को सही ठहराने के लिए वाल्मीकि रामायण और दस्तावेजों का उदाहरण दिया।
ऐसा नहीं है कि इस लेखक ने पहली बार भगवान राम का अपमान किया। लेखक ने अपनी पुस्तक ‘राम मंदिर येके बेड़ा (Rama Mandira Yake Beda)’ में भगवान राम के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि भगवान राम नशा करते थे और माँ सीता को नशा करवाते थे। उस समय कुछ हिंदू संगठनों ने भगवान की इस टिप्पणी का व्यापक विरोध किया था और उनके घर के बाहर पूजा करने की कोशिश की थी।
हालाँकि तब राज्य सरकार ने उनके आवास के बाहर सुरक्षा काफी कड़ी कर दी थी। वहीं भगवान राम के अस्तित्व पर बार-बार सवाल उठाने के विरोध में फरवरी 2021 में बेंगलुरू की एक अदालत में एक महिला वकील ने उनके चेहरे पर कालिख पोत दी थी।
बिहार के शिक्षा मंत्री ने किया रामचरितमानस का अपमान
इनके अलावा कुछ दिन पहले बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ करार दिया था। ‘नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी’ के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए RJD नेता रामचरितमानस को समाज को बाँटने वाला ग्रंथ बता दिया था। उन्होंने कहा था कि रामचरितमानस दलितों-पिछड़ों को शिक्षा ग्रहण करने से रोकता है। संबोधन के बाद मीडिया के सामने भी बिहार के शिक्षा मंत्री अपने बयान पर कायम नजर आए थे।
पटना ज्ञान भवन में नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में चंद्रशेखर ने छात्र छात्राओं को संबोधित किया था। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने रामचरितमानस के एक दोहे “अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए” का जिक्र करते हुए कहा था कि यह समाज में नफरत फैलानेवाला ग्रंथ है। उन्होंने कहा था कि दोहे में अधम का अर्थ नीच होता है जिसे उन्होंने जाति से जोड़ते हुए कहा कि इस दोहे के अनुसार नीच जाति अर्थात दलितों-पिछड़ों और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था।