मद्रास हाई कोर्ट ने पुडुचेरी के सेंट जोसेफ प्ले स्कूल के अंग्रेजी टीचर को यौन शोषण के मामले में बरी करने के निचली अदालत के फैसले को पलट दिया है। टीचर अर्लम पेरीरा पर 4 साल की बच्ची को गोद में बिठाकर कई बार घंटों यौन शोषण करने का आरोप था। यह मामला अप्रैल 2018 में सामने आया था, जब बच्ची की माँ को इसकी जानकारी मिली।
उससे पहले 27 मार्च 2018 को आरोपित ने बच्ची को कथित तौर पर धमकी दी थी कि अगर उसने किसी को इसके बारे में बताया तो वह उसे जान से मार देगा। बच्ची इसके बाद से काफी डरी हुई थी, लेकिन उसने हिम्मत कर 2 अप्रैल 2018 को अपनी माँ को इन घटनाओं के बारे में बताया। इसके बाद आरोपित अर्लम पेरीरा के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और 10 और आईपीसी की धारा 506 (ii) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
जब यह मामला निचली अदालत में पहुँचा तो आरोपित को बरी कर दिया गया था। निचली अदालत ने छह अक्टूबर, 2020 के अपने आदेश में आरोपित को यह कहते हुए बरी किया था कि पीड़ित बच्ची के माता-पिता के बयान सुसंगत नहीं हैं। पुडुचेरी के लोक अभियोजक डी. भरत चक्रवर्ती ने दलील दी थी कि पीड़िता बच्ची है और मार्च 2018 में घटना के समय वह केवल चार वर्ष की थी। लेकिन अदालत ने इस पर गौर नहीं किया। इस फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
मद्रास उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए कहा है कि चार साल की बच्ची से यौन उत्पीड़न के संबंध में ठोस गवाही या सबूत देने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। हाई कोर्ट ने शिक्षक अर्लम पेरीरा को पोक्सो एक्ट के तहत दो मामलों में 10,000 रुपए के जुर्माने के साथ 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।
अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में आरोपित के खिलाफ मामला दर्ज करने में देरी अभियोजन पक्ष के लिए घातक नहीं है, क्योंकि माँ के लिए बच्चे के भविष्य और परिवार की प्रतिष्ठा के बारे में चिंता करना स्वाभाविक है। दोषियों को केवल तकनीकी आधार पर बरी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने यह भी कहा, “अपराधी तकनीकी कारणों के चलते बरी हो रहे हैं और दुर्भाग्य से जाँच इकाई भी मानक के अनुरूप नहीं है। जाँच में गलती के कारण अधिकांश मामलों में अपराधी बच कर भाग रहे हैं। इसलिए, तकनीक को न्यायिक प्रक्रिया के आड़े आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”