मुस्लिम आक्रांता जब कहीं आक्रमण करते थे तो ना सिर्फ वहाँ के धार्मिक स्वरूपों को पूरी तरह तबाह कर देते थे, पूरी धार्मिक और सांस्कृति पहचान भी पूरी तरह मिटाने की कोशिश करते थे। इसीलिए वे शहरों के नाम तक बदल देते थे। भारत में अहमदाबाद, गाजियाबाद जैसे हजारों शहरों एवं कस्बों के बदले नाम देखने को मिल जाते हैं। इसी तरह कभी मथुरा और वृंदावन का नाम भी बदल दिया गया था।
मुगल आक्रांता औरंगजेब ने 1670 ईस्वी में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर स्थित प्रसिद्ध केशवदेव मंदिर को तोड़कर वहाँ मस्जिद बनाने का आदेश दिया था। इसके साथ ही उसने मथुरा और वृंदावन के नामों को बदल देने का आदेश जारी किया था। मथुरा का नाम इस्लामाबाद और वृंदावन का नाम मोमिनाबाद रख दिया गया था। फारसी के दस्तावेजों में लंबे समय तक यही नाम लिखा जाता रहा था।
मथुरा जब जाट राजाओं के कब्जे में आया तो उन्होंने यहाँ टकसाल स्थापित किए। हालाँकि, वे सिक्के मुगल बादशाहों के नाम पर ही जारी करते थे। इन सिक्कों पर भी फारसी में मथुरा के नाम पर इस्लामाबाद और वृंदावन टकसाल के नाम पर मोमिनाबाद अंकित किया जाता रहा। कहा जाता है कि मथुरा-वृंदावन की टकसालों में ढले सिक्के और दस्तावेज आज भी सुरक्षित हैं।
हालाँकि, नाम बदलने के बावजूद भारतीय जनमानस ने इन नामों को स्वीकार नहीं किया। यह मथुरा और वृंदावन ही कहलाता रहा। आज भी लोग मथुरा को आदर से ‘मथुरा जी’ और ‘वृंदावन जी’ कहकर पुकारते हैं। भगवान के साथ-साथ लोगों की आस्था में गहराई तक बैठे ये नाम लोगों के बीच स्वीकार नहीं हो पाए।
औरंगजेब के दरबारी साकी मुस्तैद खान ने एक किताब लिखी थी, जिसका नाम ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ है। इस किताब में इन दोनों नगरों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। फारसी में लिखी गई इस पुस्तक का सर जदुनाथ सरकार ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। वीएस भटनागर की पुस्तक ‘एंपरर औरंगजेब एंड डिस्ट्रक्शन ऑफ टेंपल’ में भी मथुरा का नाम बदलने की चर्चा है।
वृंदावन शोध संस्थान के उपनिदेशक डॉक्टर एसपी सिंह का कहना है कि औरंगजेब ने मथुरा और वृंदावन का नाम बदल दिया था। इससे संबंधित दस्तावेज शोध संस्थान में उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि इन दस्तावेजों को आम लोग भी देख सकते हैं।
वहीं, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष और जन्मभूमि मामले के प्रमुख वादी महेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि औरंगजेब ने दोनों शहरों के नाम बदल दिए थे। इसका जिक्र कई किताबों में है। उन्होंने कहा कि इन किताबों का अंश न्यायालय में वाद दायर करने के साथ दाखिल किया गया है।