उत्तर प्रदेश STF की टीम ने हनुमान पांडेय उर्फ राकेश पांडेय को मार गिराया है। उस पर एक लाख रुपए का ईनाम था। वह बीजेपी के विधायक रहे कृष्णानंद राय की हत्या का आरोपित था।
लखनऊ के सरोजनी नगर में उसकी पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई, जिसमें वो मारा गया। कोपागंज के रहने वाले हनुमान पांडेय पर कई संगीन आपराधिक मामले दर्ज थे।
हनुमान उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी और अपराधी मुन्ना बजरंगी का करीबी था। जहाँ मुख्तार अंसारी फिलहाल जेल में है, वहीं मुन्ना बजरंगी की हत्या हो चुकी है। उसकी हत्या के बाद हनुमान पांडेय ही अंसारी गैंग का मुख्य शूटर बन गया था। उसने अंसारी के गैंग D-5 में प्रमुख भूमिका प्राप्त कर ली थी। मऊ में ठेकेदार प्रकाश सिंह सहित दो लोगों की हत्या कर दी गई थी, उस मामले में भी ये आरोपित था।
नवंबर 29, 2005 को करीमुद्दीन इलाके में स्थित सोनाड़ी गाँव में एक स्टीकेट मैच का उद्घाटन करने पहुँचे भाजपा विधायक कृष्णनंदन राय की गोलियों से भून कर हत्या कर दी गई थी। उस दिन जोरों की बारिश हो रही थी, इसीलिए वो बुलेटप्रूफ गाड़ी छोड़ कर सहयोगियों सहित सामान्य गाड़ी से ही वहाँ चले गए थे। शाम 4 बजे जब वो अपने गाँव गोडउर लौट रहे थे, तभी बसनिया चट्टी के पास उनकी गाड़ी घेर ली गई।
#कृष्णानंद_राय _हत्याकांड
— prem prakash yadav (@premprakashlive) August 9, 2020
कृष्णानंद राय हत्याकांड में एक लाख का इनामी बदमाश हनुमान पांडेय उर्फ राकेश STF के साथ मुठभेड़ में ढेर। मुख्तार अंसारी का बेहद करीबी था हनुमान पांडेय । pic.twitter.com/MRQVbCl1Tw
इसके बाद एके-47 से फायरिंग कर के विधायक सहित 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हनुमान पांडेय राजधानी लखनऊ सहित रायबरेली, गाजीपुर और मऊ में 10 मुकदमे गंभीर धाराओं में पंजीकृत हैं। बनारस और लखनऊ की STF को इनपुट मिला था कि वह इनोवा कार से जा रहा है। इसके बाद लखनऊ-कानपुर हाइवे पर उसे रोकने का प्रयास किया गया, लेकिन उसने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी।
जब कृष्णानंद राय व उनके सहयोगियों की हत्या हुई, उस समय कोई ऐसा भी था जो बच गया था। उस व्यक्ति का नाम था- शशिकांत राय। वह एक तरह से इस घटना के मुख्य चश्मदीद गवाह थे। थे इसलिए, क्योंकि अब वो नहीं रहे। सैंकड़ों राउंड गोलियों के बीच ज़िंदा बच जाने वाला शख्स शराब पीने के बाद संदिग्ध स्थिति में सड़क पर बेहोश पड़ा पाया गया, जिसके बाद उसकी मौत हो गई।
एक और गवाह था, उनका नाम था- मनोज गौड़। यह भी था, क्योंकि अब ये भी नहीं रहे। सितंबर 2006 को मनोज गौड़ की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इन दोनों घटनाओं के बीच मात्र डेढ़ महीने का अंतर था। उन्हें अस्पताल ले जाया गया था, जहाँ उन्हें डॉक्टरों ने ‘ब्रांको न्यूमोनिया’ की वजह से मृत करार दिया। जब वो अस्पताल में भर्ती थे, तब प्रशासन द्वारा किसी भी प्रकार की सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी।