Monday, November 25, 2024
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दो बेटों की मौत के बाद पोती को पढ़ाने के लिए दादा ने बेच दिया घर, ऑटो रिक्शा बनी लाइफ-लाइन: मदद को आगे आए लोग

“ज्यादातर दिन हमारे पास खाने के लिए मुश्किल से ही कुछ होता है। एक बार जब मेरी पत्नी बीमार हो गई, तो मुझे उसकी दवाएँ खरीदने के लिए घर-घर जाकर भीख माँगनी पड़ी। लेकिन पिछले साल जब मेरी पोती ने मुझे बताया कि उसकी 12वीं बोर्ड में 80% अंक आए हैं, तो मैं उस दिन खुशी से आसमान में उड़ने लगा, पूरे दिन मैंने अपने ग्राहकों को मुफ्त सवारी दी।”

मुंबई में एक ऑटो ड्राइवर की दिल को छू जाने वाली कहानी सामने आई है। एक ऑटो ड्राइवर ने अपनी पोती को पढ़ाने के लिए अपना घर तक बेच दिया। दो बेटे की मौत के बाद उसके बच्चों और पत्नी की जिम्मेदारी सँभाल रहे बुजुर्ग देसराज जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ ने अपने फेसबुक वॉल पर देसराज की कहानी को साझा किया है और बताया कि उन्हें अपनी पोती को पढ़ाने के लिए क्या-क्या संघर्ष करने पड़े हैं। 

ऑटो ड्राइवर देसराज ने ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ को दिए इंटरव्यू में बताया, “6 साल पहले मेरा बड़ा बेटा घर से गायब हो गया। वह हर दिन जैसे काम के लिए जाता था, वैसे ही उस दिन भी गया, मगर कभी लौटा नहीं है। एक सप्ताह बाद लोगों को उसकी डेडबॉडी ऑटो में मिली। उसकी मौत के साथ कुछ हद तक मैं भी मर ही गया था, मगर जिम्मेदारियों की भार की वजह से मुझे शोक का भी समय नहीं मिला और अगले दिन ही मैं ऑटो चलाने सड़क पर निकल गया।”

उन्होंने आगे कहा, “मगर दो साल बाद एक और दुख का पहाड़ टूटा और मैंने अपना दूसरा बेटा भी खो दिया। जब मैं ऑटो चला रहा था, तभी एक कॉल आई- ‘आपके बेटे का शव प्लेटफॉर्म पर मिला है, सुसाइड कर लिया है उसने।’ दो बेटों की चिताओं को आग दिया है मैंने, इससे बुरी बात एक बाप के लिए और क्या हो सकती है? अब मेरे पास बहुओं और चार बच्चों की जिम्मेदारी है, जिसकी वजह से मैं अभी भी काम कर रहा हूँ। दाह संस्कार के बाद मेरी पोती, जो उस वक्त 9वीं कक्षा में थी, मुझसे पूछा- दादाजी, क्या मैं स्कूल छोड़ दूँगी?’ मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और उसे आश्वस्त किया, कभी नहीं! आप जितना चाहें पढ़ाई करें।”

पढ़ाई के लिए और पैसे कमाने के लिए उन्होंने देर तक काम करना शुरू कर दिया। सुबह 6 बजे घर से निकलने वाले देसराज आधी रात के बाद ही घर वापस आ पाते हैं। महीने के 10 हजार रुपए कमाने वाले देसराज 6 हजार रुपए अपने पोते-पोतियों के स्कूल पर खर्च करते हैं और 4 हजार में 7 लोगों के परिवार का गुजारा करते हैं।

दिल्ली के स्कूल में दाखिला कराने के लिए बेच दिया घर

उन्होंने कहा, “ज्यादातर दिन हमारे पास खाने के लिए मुश्किल से ही कुछ होता है। एक बार जब मेरी पत्नी बीमार हो गई, तो मुझे उसकी दवाएँ खरीदने के लिए घर-घर जाकर भीख माँगनी पड़ी। लेकिन पिछले साल जब मेरी पोती ने मुझे बताया कि उसकी 12वीं बोर्ड में 80% अंक आए हैं, तो मैं उस दिन खुशी से आसमान में उड़ने लगा, पूरे दिन मैंने अपने सभी ग्राहकों को मुफ्त सवारी दी।”

इसके बाद जब उनकी पोती ने कहा कि वह बी.एड कोर्स के लिए दिल्ली जाना चाहती है। तो देसराज के सामने एक बार फिर से बड़ी समस्या खड़ी हो गई। देसराज को पता था कि वह इतने पैसे नहीं जुटा पाएँगे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने घर को बेच दिया और पोती को दिल्ली के स्कूल में दाखिला करवा दिया। इसके बाद देसराज ने अपनी पत्नी, पुत्रवधू और अन्य पोते को उनके गाँव में एक रिश्तेदार के घर भेज दिया। खुद मुंबई में अपना ऑटो चलाते हैं। अब ये ऑटो ही उनका घर है। 

मदद के लिए लोग आए आगे

अपने जीवन के अनुभव को साझा करते हुए देसराज ने कहा, “अब एक साल हो गया है और ईमानदारी से कहूँ तो जीवन खराब नहीं है। मैं अपने ऑटो में खाता हूँ और सोता हूँ और दिन के दौरान मैं अपने यात्रियों को बैठाता हूँ। बस बैठे-बैठे कभी पैर में दर्द हो जाता है। मगर मेरी पोती मुझे फोन करती है और मुझे बताती है कि वह अपनी कक्षा में प्रथम आई है तो और मेरा सारा दर्द मिट जाता है। मैं उसके शिक्षक बनने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, ताकि मैं उसे गले लगा सकूँ और कह सकूँ, ‘तुमने मुझे गौरवान्वित किया है।’ जिस दिन मेरी पोती टीचर बनेगी, मैं तो पूरे हफ्ते सबको फ्री राइड दूँगा। वह हमारे परिवार में पहली ग्रेजुएट बनने जा रही है।” देसराज की ये दिल को छू जाने वाली सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। लोग उनकी मदद के लिए आगे आए हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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