मुंबई की एक अदालत ने हाल में उन तीन लोगों को जमानत दी जिन्हें कुछ दिन पहले ये आरोप लगा कर पकड़ा गया था कि उन्होंने मस्जिद के बाहर ढोल बजाया। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए माना कि अजान के दौरान किसी प्रकार की नारेबाजी नहीं हुई थी इसलिए आरोप लगा कर उन लोगों से पूछताछ करने की कोई जरूरत नहीं है।
लाइव लॉ के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसयू बघेले ने कहा, “यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है कि विभिन्न समुदायों के बीच आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए कौन से कदम उठाए जाएँ। राज्य को अपनी आँखें और कान बंद नहीं करने चाहिए, जिससे कोई भी निर्दोष व्यक्ति अपमानित हो। भारत का संविधान कहता है कि आपसी भाईचारे को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।”
पुलिस के अनुसार, “एक समुदाय द्वारा धार्मिक जुलूस का आयोजन किया गया था। आवेदक और अन्य इस धार्मिक जुलूस का हिस्सा थे। उन पर यह आरोप लगाया गया है उन्होंने अन्य समुदाय के लोगों को परेशान करने के लिए जानबूझकर अज़ान के समय मस्जिद के सामने ढोल बजाया। यही नहीं धार्मिक जुलूस निकालने वालों पर दंगा भड़काने और उकसाने का आरोप भी लगाया गया है। राज्य ने इस मामले में जाँच के आदेश दिए थे और यह पता लगाने को कहा था कि कि क्या यह अपराध पूर्व नियोजित था। इसके लिए उन लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था।”
अदालत ने कहा, “इन आरोपों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि आवेदकों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। आवेदकों से पूछताछ करके इस समस्या का कोई हल नहीं निकलने वाला।” अदालत ने यह भी कहा कि एक समुदाय ने दूसरे समुदाय के खिलाफ कोई नारा नहीं लगाया, ऐसे में दो समुदायों के बीच किसी भी प्रकार की कोई नफरत और द्वेष पैदा नहीं हुआ। इन सबको को देखते हुए हमने निर्णय लिया है कि आवेदक अग्रिम जमानत के हकदार हैं।
इसके साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, “राज्य को किसी भी घटना से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि सामंजस्य बन सकें। इसे विवेकपूर्ण तरीके से हल करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि दो समुदायों में धार्मिक आस्था को लेकर किसी भी प्रकार की नफरत पैदा ना हो सके। संविधान में भी आपसी भाईचारे को बढ़ावा देना सर्वोपरि माना गया है।”