राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की एक रिपोर्ट ने मदरसों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है। दावा है कि मदरसों में 400 साल पुराने पाठ्यक्रम को पढ़ाया जा रहा है जो अंधविश्वास पर आधारित है न कि विज्ञान पर। एनसीपीसीआर का कहना है कि ऐसे ‘अनमैप्ड’ मदरसों में कई बच्चे पढ़ते हैं जहाँ शिक्षा के नाम पर बताया जाता है कि सूरज पृथ्वी के चक्कर लगाता है।
टाइम्स नाऊ ने इस पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट की है। वीडियो में मौलवी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। मौलवियों का कहना है कि वो कुरान हदीस को नहीं बदल सकते, धार्मिक पुस्तक वैसी की वैसी पढ़ाई जाती हैं। इसके साथ बच्चों को अन्य विषय (अंग्रेजी, कम्प्यूटर और मैथ्स) भी पढ़ाए जाते हैं जैसे दूसरे बच्चे पढ़ते हैं। इसके अलावा वीडियो में एक मौलवी ये भी बता रहे हैं कि आखिर लड़के-लड़कियों के मदरसे क्यों अलग होते हैं।
TIMES NOW accesses #NCPCR report which claims ‘children studying in Madrassas are being taught from a 400-yr-old syllabus which is based on superstition & not science’.
— TIMES NOW (@TimesNow) August 10, 2021
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उनके मुताबिक, यदि लड़के-लड़कियों को एक ही मदरसे में बिठाया जाए तो उसके दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। दोनों में दोस्ती हो जाती है, नाजायज संबंध बन जाते हैं। ऐसे में दोनों के अलग-अलग मदरसे रखे गए हैं। लेकिन उनको किताबें वही पढ़ाई जाती हैं जो आम स्टूडेंट पढ़ते हैं।
इस मामले पर NCPCR के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का कहना है कि औरंगजेब के शासन के समय मदरसों का पाठ्यक्रम तैयार हुआ और आज भी भारत के कई ‘अनमैप्ड’ मदरसों में वही पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। ये बात सही है कि कई जगह ये पढ़ाया जाता है कि सूरज, पृथ्वी का चक्कर लगाता है।
वह भारतीय कानून का हवाला देकर कहते हैं कि जब कानून में ये लिखा है कि बच्चे को नहीं पीटा जाएगा। ऐसे में ये बोलना कि तीन थप्पड़ मारना जायज है बच्चे को, तो ये तो अपराध की श्रेणी में आता है, इसलिए इसे रिपोर्ट का पार्ट बनाया गया है। इसके बाद वो भेदभाव के मुद्दे को उठाते हैं और कहते हैं कि अगर बचपन में ही ये भाव बच्चों में पैदा किया जाएगा कि लड़कियाँ एक कमतर जीवन जीने की अधिकारी हैं, तो वो बड़े होकर लड़कियों का महिलाओं का शोषण करने की प्रवृत्ति की ओर बढ़ेंगे।