‘गुमनामी बाबा’ ही महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) थे या नहीं, यह रहस्य ही रहेगा। गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) ने गुमनामी बाबा के DNA सैंपल की रिपोर्ट के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया है। देश की संप्रभुता और अखंडता का हवाला देते हुए CFSL ने इस पर RTI का जवाब देने से मना कर दिया।
जवाब के लिए दाखिल की गई RTI के जवाब में CFSL ने कहा कि जिसके बारे में जानकारी देने से देश की संप्रभुता एवं अखंडता और राष्ट्र की सुरक्षा, रणनीतिक, आर्थिक हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके कारण इलेक्ट्रोफेरोग्राम रिपोर्ट साझा नहीं किया जा सकता है।
दरअसल, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(ए), (ई) और 11(1) का हवाला देते हुए पश्चिम बंगाल स्थित हुगली के कोन्नगर निवासी सयाक सेन ने 24 सितंबर 2022 अर्जी दायर की थी। नेताजी बोस पर शोध करने वाले सेन से गुमनामी बाबा के DNA सैंपल की रिपोर्ट माँगी थी।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, सयाक सेन ने कहा कि इस आधार पर CFSL ने उनकी RTI को खारिज कर दिया। सेन ने RTI में यह भी पूछा कि उत्तर प्रदेश के सुदूर इलाके में रहने वाला एक व्यक्ति भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए इतना मायने क्यों रखता है कि अगर उसका इलेक्ट्रोफेरोग्राम सार्वजनिक किया जाता है तो देश में हलचल मच जाएगी।
सेन ने आगे बताया, “ये स्पष्ट संकेत है कि गुमनामी बाबा एक आम आदमी से कहीं अधिक और विशेष थे। मेरा मानना है कि वह मेरे सभी निष्कर्षों के अनुसार गुमनामी बाबा के रूप में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ही थे।”
बता देें कि यह दावा किया गया है कि सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में हो गई थी। हालाँकि, लोगों के एक वर्ग का दावा है कि नेताजी बोस विमान दुर्घटना में बच गए थे और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से बचने के लिए गुमनामी बाबा के वेश में छिप कर रहते थे।