Sunday, November 17, 2024
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‘एक टापू राष्ट्र के रूप में उभर रहा है शाहीन बाग, जहाँ जाने के लिए अब दिखाना पड़ेगा आपको VISA’

"शाहीन बाग एक टापू राष्ट्र की तरह उभर रहा है, जिसका अपना संविधान है, अपने नागरिकता देने के नियम हैं, अपनी सुरक्षा करने की व्यवस्था है और अपनी अर्थव्यवस्थता है। जिसके जरिए उनका सुबह का नाश्ता, शाम की चाय और दिन-रात का खाना आता है।"

बीते दिनों पॉलिटिकल एनालिस्ट और पत्रकार गुंजा कपूर के साथ शाहीन बाग में हुई बदसलूकी ने वहाँ बैठी महिला प्रदर्शनकारियों का असली चेहरा सबके सामने पेश कर दिया। अब तक जो लोग इस प्रोटेस्ट को मात्र वॉलिंटियर प्रोटेस्ट बता रहे थे। उनके अजेंडे का खुलासा भी इस घटना के बाद स्पष्ट हो गया। गुंजा के मुताबिक प्रदर्शनकारी महिलाओं के सामने उनकी हकीकत से पर्दा उठने के बाद उन्हें पूरे एक घंटे तक उन महिलाओं ने घेरे रखा और उनके कहने पर भी पुलिस को नहीं बुलाया। अपने असुरक्षा को भाँपते हुए जब भी उन्होंने पुलिस को बुलाने की बात पर जोर दिया, तो वहाँ मौजूद सभी प्रदर्शनकारियों ने उन्हें जवाब दिया कि वे पुलिस को नहीं बुलाएँगे, क्योंकि उन्हें पुलिस पर यकीन नहीं हैं।

गुंजा ने इस घटना के बाद कल यूट्यूब पर अपने चैनल राइट नैरेटिव के जरिए पूरे वाकए पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। गुंजा ने बताया कि जो लोग अब तक देश में रहने के लिए कागज न दिखाने की बात कर रहे थे, वो अब शाहीन बाग में जाने के लिए लोगों से कागज़ माँग रहे हैं। उस शाहीन बाग में जो भारत का एक हिस्सा हैं।

जामिया और शाहीन बाग जा चुकी गुंजा कपूर अपने कटु अनुभवों के आधार पर बताती हैं कि दोनों जगहों पर उनके साथ प्रदर्शनों में जो शारीरिक दुर्व्यवहार हुआ, उसका एक ही कारण हो सकता है कि उनके पास इन दोनों जगहों पर जाने का वीजा नहीं था। वो वीजा जो देशद्रोही भाषण देने के बावजूद शरजील पर था, तिरंगे की आड़ में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वालों के पास था, जिन्ना वाली आजादी की माँग करने वालों के पास था। लेकिन उनके पास नहीं था, क्योंकि उन्होंने इन सब में से ऐसा कुछ नहीं किया।

गुंजा शाहीन बाग के हालातों को देख-समझकर अपनी वीडियो में उसे एक टापू राष्ट्र की तरह बताती है। वे कहती है कि शाहीन बाग एक टापू राष्ट्र की तरह उभर रहा है, जिसका अपना संविधान है, अपने नागरिकता देने के नियम हैं, अपनी सुरक्षा करने की व्यवस्था है और अपनी अर्थव्यवस्थता है। जिसके जरिए उनका सुबह का नाश्ता, शाम की चाय और दिन-रात का खाना आता है।

अपनी इस वीडियो में गुंजा प्रदर्शन में बुर्का पहनकर जाने पर उठ रहे सवालों का जवाब भी देती हैं। वे कहती हैं कि कुछ ही दिन पहले रिपब्लिक की महिला पत्रकार को प्रदर्शनस्थल से खदेड़ दिया गया था। इसके अलावा दो दिन पहले खुद जब वह वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र चौबे के साथ जामिया में एक डिबेट के लिए गई थीं, तो उन्हें वहाँ से भी खदेड़ा गया था। वहाँ पर भी उनसे सवाल हुए थे कि वो कौन हैं? और उन्हें किसने भेजा है? इसलिए इस बार वे बुर्के में गईं।

गुंजा के अनुसार, इन प्रदर्शनों में उन्हीं लोगों को जाने की आजादी है। जिन्हें प्रदर्शनकारियों के विश्वसनीय सूत्रों ने भेजा हो। और अगर कोई अन्य शख्स इन प्रदर्शनों में शामिल हो जाए तो वहाँ बैठी महिलाएँ उसकी बातों का भरोसा नहीं करती हैं और उन्हें तुरंत घुसपैठिया करार दे दिया जाता है।

अपनी वीडियो में गुंजा उक्त सभी बातों का उल्लेख करके इसे शाहीन बाग का सच बताती हैं। वे कहती हैं कि जो शाहीन बाग संविधान की कसम लेता है, भारत के संविधान को सर्वोच्च बताता है, वही शाहीन बाग खुलकर कहता है कि उन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं है।

गुंजा पूरी घटना पर अपना पक्ष और विचार रखते हुए विपक्ष में बैठे नेताओं से सवाल करती हैं। साथ ही पूछती हैं कि क्या भारतीय होने के बावजूद वे अब अपने देश में भी खुलकर कही नहीं आ जा सकती है? क्या उनके लिए बुर्के में पत्रकारिता करना मना है?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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