विजयदशमी के मौके पर नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में हुई टारगेट किलिंग के साथ-साथ धर्मान्तरण, बढ़ती जनसंख्या और उसमें असंतुलन का मुद्दा उठाया। संघ प्रमुख ने हिंदुओं के एक होने पर जोर दिया। उन्होंने केंद्र सरकार से भविष्य को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या नीति बनाने और उसे सभी पर समान रूप से लागू करने की माँग की।
उन्होंने जनसंख्या में बढ़ रहे असंतुलन को बड़ी समस्या बताई। उन्होंने कहा कि विभिन्न उपायों और तरीकों से पिछले दशक के दौरान जनसंख्या में काफी कमी आई है, लेकिन 2011 में हुई जनगणना का विश्लेषण करने से पता चलता है कि धार्मिक आधार पर जनसंख्या असंतुलन बढ़ा है। ऐसे में एक बार फिर से जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने इस असंतुलन को देश की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक पहचान के लिए बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि जनसंख्या वृद्धि में आए अंतर, धर्मान्तरण और विदेशी घुसपैठ आने वाले दिनों में गंभीर खतरा बन सकता है।
भागवत ने जनसंख्या नीति पर बात करते हुए कहा कि साल 1952 में ही भारत ने जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की घोषणा की थी, लेकिन वर्ष 2000 में जनसंख्या नीति और जनसंख्या आयोग का गठन हो सका। संघ प्रमुख के मुताबिक, वर्ष 2011 में 0-6 आयुवर्ग के धार्मिक आधार पर मिले आँकड़ों से असमान सकल प्रजनन दर और बाल जनसंख्या अनुपात का पता चलता है।
मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने वर्ष 1951 से 2011 तक के जनसंख्या के आँकड़ों की बात की। उन्होंने कहा कि इस समय काल में भारत में उत्पन्न हुए मत के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, जबकि मुस्लिमों की जनसंख्या का अनुपात 9.8 फीसदी से बढ़कर 14.23 फीसदी हो गई है।
पूर्वोत्तर में जनसंख्या असंतुलन बड़ा खतरा
भागवत ने पूर्वोत्तर भारत में ईसाई धर्मान्तरण को बड़ा खतरा बताते हुए आँकड़े साझा किए। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में भारत में उत्पन्न पंथों के लोगों की संख्या 1951 में 99.21 प्रतिशत थी, जो 2001 में घटकर 81.3 प्रतिशत और 2011 में 67 प्रतिशत पर आ गई है। वहीं, राज्य में ईसाई जनसंख्या में 13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह से मणिपुर में यह जनसंख्या 1951 में 80 फीसदी थी, जो 2011 में 50 फीसदी रह गई।
व्यवस्था के नाम पर हिंदू मंदिरों बनाया गया निशाना
सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू मंदिरों को लेकर कहा है कि दक्षिण भारत के अधिकतर हिंदू मंदिर वहाँ की सरकारों के अधीन हैं। बाकी राज्यों में कुछ सरकार के अधीन हैं और कुछ निजी स्वामित्व में हैं। हर मंदिर में स्थापित देवता और उनकी पूजा विधि अलग-अलग है। कई जगहों पर तो लोगों को पूजा में भी दखल दिया जाता है। इस तरह की सभी घटनाओं को बंद किया जाना चाहिए।
भागवत ने कहा कि सेक्युलर होकर भी व्यवस्था के नाम पर हिंदू मंदिरों को दशकों और शताब्दियों तक हड़पा गया है। यह बहुत जरूरी है कि मंदिरों का नियंत्रण हिंदू भक्तों के ही हाथों में रहे और उसके धन का इस्तेमाल भी हिंदू समाज के कल्याण के लिए ही हो।