Sunday, November 17, 2024
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9 देश, घर में 700+300: क्या है मोदी सरकार का ‘वन स्टॉप सेंटर’, महिलाओं के लिए कैसे है यह एक वरदान

बलात्कार, लैंगिक हिंसा, घरेलू हिंसा, छेड़छाड़, एसिड अटैक, कार्यस्थल पर यौन शोषण... या फिर मेडिकल सपोर्ट, कानूनी सहायता, अस्थायी रूप से रहने के लिए स्थान, मानसिक या भावनात्मक सहयोग... सब कुछ एक ही जगह पर।

केंद्र सरकार ने हाल ही में (26 मई 2021) विदेशों में काम करने वाली भारतीय महिलाओं को मदद पहुँचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत सरकार आगामी दिनों में कामकाजी महिलाओं के लिए 9 देशों में वन स्टॉप सेंटर खोलने जा रही है, जिसका उद्देश्य महिला विरोधी हिंसा से निपटना है।

इसके अन्तर्गत बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और सिंगापुर में एक-एक वन स्टॉप सेंटर खेले जाएँगे। वहीं, सऊदी अरब में ऐसे 2 वन स्टॉप सेंटर खोले जाएँगे। इसके अलावा, पूरे भारत में 300 वन स्टॉप सेंटर खोले जाएँगे। विदेशों में खोले जा रहे वन स्टॉप सेंटर को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की ओर से सहयोग दिया जाएगा।

वन स्टॉप सेंटर का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था से है, जहाँ हिंसा प्रभावित किसी भी महिला को सभी तरह की मदद एक ही छत के नीचे दी जाती है। यहाँ महिलाओं को घर जैसा माहौल दिया जाता है, ताकि वह अपनी समस्याओं को अच्छे से बता सके और जिससे उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके।

भारत सरकार ने वन स्टॉप सेंटर योजना, 1 अप्रैल 2015 में हिंसा से पीड़ित महिलाओं को मदद पहुँचाने के लिए लागू की थी, जिसे मुख्यत: ‘सखी’ के नाम से जाना जाता है। देश के कई राज्यों में इस योजना से महिलाओं को लाभ पहुँचा है। इसके तहत हर राज्य और जिले में महिलाओं की सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं, जिससे उन्हें किसी भी प्रकार की हिंसा से बचाया जा सके।

हरियाणा के पंचकूला में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित ‘सखी वन स्टॉप सेंटर’ मार्च 2019 में शुरू किया गया। तब से लेकर साल 2020 तक इस सेंटर में 161 शिकायतें दर्ज हुई हैं। सेंटर में त्वरित कार्रवाई करते हुए घरेलू हिंसा से पीड़ित 90 शिकायतों का निपटारा करते हुए महिलाओं को न्याय दिलवाया गया है।

वहीं, गुरुवार (27 मई, 2021) की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में पाँच मई से जारी लॉकडाउन से अब तक सिवान जिले में संचालित ‘सखी वन स्टॉप’ सेंटर सह महिला हेल्पलाइन में करीब दो दर्जन से ज्यादा घरेलू हिंसा के मामले ऑनलाइन और ऑफलाइन दर्ज किए गए हैं। हालाँकि, उन शिकायतों के बाद उसका समाधान भी किया गया।

लॉकडाउन के दौरान में घरेलू हिंसा के जो आँकड़े सामने आए हैं वे भी वास्तविकता से परे हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष घरेलू हिंसा के 69 मामले, गरिमा के साथ जीने के 77 मामले,​ विवाहित महिलाओं की प्रताड़ना के 15 मामले और इसके अलावा बलात्कार और बलात्कार के प्रयास के 13 मामले दर्ज किए हैं।

वहीं, नेशनल क्राइम ब्यूरो (NCRB) के अनुसार साल 2019 में महिलाओं के खिलाफ 4.05 लाख अपराध दर्ज किए गए थे। इनमें से 1.26 लाख (30% से ज्यादा) घरेलू हिंसा के मामले थे। सबसे ज्यादा केस राजस्थान (18,432) से दर्ज किए गए थे।

इसके अलावा, एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, दूसरे नंबर पर यौन उत्पीड़न के मामले थे। 4 लाख दर्ज अपराधों में 8 फीसदी मामले रेप से जुड़े थे। जहाँ तक प्रति लाख महिला आबादी पर अपराध दर का सवाल है तो 2019 में यह 62.4 था, जबकि 2018 में इसका औसत 58.8 ही था। ऐसे में भारत में पहले से खुले वन स्टॉप सेंटर के तहत कई महिलाओं को मदद मिली।

गौरतलब है कि वन-स्टॉप सेंटर राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण को बल देने के लिए एक योजना है। महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसे तैयार किया है। इसके जरिए पूरे देश में सिलसिलेवार तरीके से सार्वजनिक और निजी दोनों जगहों पर हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एक ही जगह पर लाकर उनकी मदद की जाती है। इस सेंटर में किसी भी तरह की हिंसा झेल रही कोई भी महिला बलात्कार, लैंगिक हिंसा, घरेलू हिंसा, छेड़छाड़, एसिड अटैक पीड़िता, कार्यस्थल पर यौन शोषण जैसे मामलों में सीधा यहाँ जा सकती है। इस केंद्र में महिलाओं को बहुत सारी सुविधाएँ एक जगह पर मुहैया कराई जाती हैं। भारत में अभी करीब 700 वन स्टॉप सेंटर काम कर रहे हैं।

दरअसल, एक महिला को किसी भी तरह की हिंसा झेलने पर तुरंत उसे कई तरह की मदद की जरूरत पड़ सकती है, जैसे मेडिकल सपोर्ट, कानूनी सहायता, कई बार अस्थायी रूप से रहने के लिए स्थान, मानसिक और भावनात्मक सहयोग इत्यादि। दिसंबर 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद उषा मेहरा कमीशन ने फरवरी 2013 में ‘वन स्टॉप सेंटर’ की सिफारिश की थी, ताकि महिलाओं को सभी मदद एक ही स्थान पर मिल जाए और उसे अलग-अलग जगहों पर भटकने की जरूरत न पड़े। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने भारत में वन स्टॉप सेंटर योजना की शुरुआत की थी।

वन स्टॉप सेंटर में हिंसा से पीड़ित महिला अपने बच्चों के साथ अस्थायी रूप से रह सकती हैं, जहाँ उन्हें सभी मूलभूत सुविधाएँ मुहैया कराने की व्यवस्था का प्रावधान होगा। यदि उसे लंबे समय के लिए यहाँ आश्रय की जरूरत होगी, तो इसके लिए भी पूरी व्यवस्था की जाएगी। इसके साथ ही यहाँ महिलाओं को कानूनी सहायता भी प्रदान की जाएगी।

विदेशों में भारतीय प्रवासियों की संख्या को देखते हुए भारत सरकार की तरफ से इन देशों की पहचान की गई है, जहाँ वन स्टॉप सेंटर खोले जाएँगे। इन्हें खोलने का उद्देश्य इन देशों में काम करने वाली भारतीय महिलाओं को हिंसा से बचाना और उन तक सभी सहायता पहुँचाना है। 9 देशों के अलावा आगे इन केंद्रों को अन्य देशों में भी शुरू किया जाएगा।

यह सर्वविदित है कि विदेशों में काफी भारतीय महिलाएँ काम करती हैं। इस दौरान उनके साथ कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न और हिंसा की खबरों को दबा दिया जाता है। बेहद कम ही रिपोर्ट हम सभी के सामने आ पाती हैं। कुछ महिलाएँ विदेश में काम करने के लिए जाती हैं और वहीं बस जाती हैं। इस दौरान वह कार्यस्थल पर हिंसा का शिकार, अन्य तरह की हिंसा का शिकार हो जाती हैं। विदेश में होने के कारण ये महिलाएँ अपने साथ हो रहे अत्याचारों को बर्दाश्त करती रहती हैं। कई बार तो वे किसी विचित्र स्थिति में भी फँस जाती हैं। ऐसे में विदेशों में काम करने वाली भारतीय महिलाओं को उच्चायोग/दूतावास में खोले जा रहे वन स्टॉप सेंटर से बेहद मदद मिलेगी। वे इन केंद्रों पर सीधे मदद के लिए पहुँच सकती हैं और न्याय की गुहार लगा सकती हैं।

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