पाकिस्तान में हिंदुओं के हालात बद्तर है। किसी को वहाँ खाने के लाले पड़े हैं तो किसी को अपनी जान के। लोग बोरिया-बिस्तर समेटकर भारत आते हैं सिर्फ इस उम्मीद से… कि भारत मे कम से कम उनके साथ भेदभाव तो नहीं होगा। लेकिन उनकी इन उम्मीदों पर पानी तब फिरता है जब यहाँ आकर उन्हें बुनियादी सुविधाओं के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है। हाल में राजस्थान में प्रशासन के फैसले के बाद कई हिंदुओं के घर उजड़े थे। ऐसे में उनकी पीड़ा फिर मेनस्ट्रीम मीडिया में चर्चा में आई। पत्रकारों से बात करते हुए किसी ने बताया कि पाकिस्तान में रेप, अपहरणों की घटनाओं से तंग आकर वह लोग भारत आए तो किसी ने बताया कि उन्हें जान का खतरा था।
इसी क्रम में आजतक की मृदुलिका झा ने भी जोधपुर में रिपोर्टिंग की। उन्होंने दिखाया कि घर उजड़ने के बाद पाकिस्तान हिंदू किन हालातों में है। इसके अलावा उन्होंने जो बात की उसमें बताया गया कि पाकिस्तान में मिली प्रताड़ना और भारत में हो रही अनदेखी से उन्हें कैसा महसूस होता है।
पाकिस्तान में जमींदारी प्रथा के तले पीसे जा रहे हिंदू परिवार, बेटी के लिए भारत आने
जोधपुर के चोखां इलाके में उन्हें एक विष्णुमल मिले। वो यहाँ हरिद्वार तीर्थ के नाम पर आए थे। लेकिन आकर जोधपुर में बस गए। बीते दिनों कच्चे मकानों पर जो बुलडोजर चला उनमें एक घर उनका भी था । उन्होंने रोते हुए कहा- वहाँ घर छूटा, यहाँ घर टूटा। एक जन्म में कितनी मौतें देखनी हैं।
जानकर हैरानी होती है कि जो जमींदारी और गुलामी की प्रथा हिंदुस्तान में अब खत्म हो गई है। उस जमींदारी प्रथा के कारण पाकिस्तान में हिंदू आज भी पिस रहे हैं। विष्णुमल ने बताया कि पाकिस्तान के मीरपुर में उनका परिवार गुलाम की तरह महीना भर खेतों में काम करता था। लेकिन उन्हें दिहाड़ी सिर्फ 15 दिन की मिलती थी। स्थिति ऐसी हो गई थी कि वो मान चुके थे कि उन्हें पैसा 15 दिन का मिलता है।
इसी तरह शिवहरि बताते हैं कि पाकिस्तान में उनकी दुकान तो थी। गद्दों पर बैठकर सामान भी बेचते थे। लेकिन आज अगर वो भारत में फेरी लगा रहे हैं तो वजह सिर्फ बेटी है। पूछने पर शिवहरि कहते हैं कि उनकी बेटी क्लास में फर्स्ट आती थी। लेकिन वो उसे स्कूल नहीं भेज सकते थे। रोकने पर बेटी पूछती थी कि जब पढ़ाना नहीं था स्कूल क्यों भेजा। इसी तरह बेटा स्कूल में पिटता था। लोग उसे काफिर कहकर चिढ़ाते थे।
तुलसी के पत्ते लेकर घर से निकलीं हिंदू महिला, भगवान की तस्वीरों को गोबर से लीपा
एक किशन अपनी कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि वो लोग बहुत छोटे बैग लेकर भारत आए थे। आने से पहले सिंध वाले घर की दीवारों पर जो भगवान के पुराने पोस्टर आदि थे उसे गोबर से लीप दिया था ताकि किसी तरह की बेअदबी न हो। किशन कहते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं का हालत अमीर ससुराल में गरीब घर से आई बहू जैसा है। जिसे काम भी सारा खुद करना है और फिर पाँव भी सबके दबाने हैं।
किशन कहते हैं कि पाकिस्तान से वो हिंदू जरूरत निकलते हैं जिनकी बेटी हैं। फिर उनकी तो तीन बेटियाँ थीं। कब तक घर में बंद रखते। उन्होंने भारत आने का फैसला किया। लेकिन पाकिस्तान से निकलना इतना आसान नहीं था। जब उन्होंने पासपोर्ट बनवाने की प्रक्रिया शुरू की तो कानाफूसी होने लगी। उन्हें मजदूरी कम मिलने लगी। हाल ऐसे थे कि पत्नी बच्चों को आटा घोल कर पिलाती थी। बेटा इतना कमजोर हो गया था जैसे हल्की गेंद हो। पाकिस्तान में उनके लिए मंदिर जाना भी ऐसा था जैसे मजदूरी पर जा रहे हो। औरतें थाल लेकर नहीं निकल पाती थीं। बच्चे घर से नहीं बाहर आ पाते थे। किशन कहते हैं कि जब उन्होंने जब घर छोड़ा तो उनकी पत्नी ने आँचल में शगुन के तौर पर तुलसी के पत्ते बाँधे और भारत आ गए।
70 साल के बुजुर्ग से 16 साल की आस्था का निकाह
हिंदू अपनी आपबीती सुनाते हुए बताते हैं कि पाकिस्तान में लड़कियाँ कितनी असुरक्षित है। एक सिंध के हिंदू ने जानकारी दी कि वहाँ उनकी 16 साल की बेटी की शादी 70 साल के बुजुर्ग से करा दी गई थी। जब वो लोग उससे मिलने गए तो उसे अमीना कहकर आवाज दी गई जबकि उसका नाम कभी आस्था हुआ करता था….। घरवाले पुलिस पर गए तो कहा गया शुक्र मनाओ लड़की रेप के बाद किनारे नहीं मिली। हिंदू बताते हैं कि पाकिस्तान में लड़कियों की उम्र 8-10 साल होते ही उन्हें स्कूल जाने से रोक दिया जाताहै क्योंकि ये नहीं पता होता कि उसपर कब किसकी नजर पड़ जाए। आस्था की माँ पत्रकार को कहती भी हैं- जैसे तुम घूम रही हो सिर उघाड़े- अंजान लोगों में ऐसे पाकिस्तान में नहीं होता।
4 दिन के नवजात को छोड़कर भागी पूनम
बता दें कि पाकिस्तान से भागकर भारत आए हिंदू यहाँ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए रोज नई लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन इस बीच उनकी यादों से वो कड़वे पल नहीं मिटे हैं जो उन्होंने पाकिस्तान में झेले। हिंदुओं का कहना है कि पाकिस्तान में औरत और गोश्त में कोई फर्क नहीं है। अगर लोग रुकते तो उनकी औरतों के चीथड़े उड़ा दिए जाते। कई लोग तो अपने बच्चों को छोड़कर भारत आए हैं जिन्हें रह रहकर अपने छोटे-छोटे बच्चों की याद आने लगती है।
एक ऐसी ही पूनम ने रिपोर्टर को बताया कि वो अपने बच्चे को सिर्फ 4 दिन ही दूध पिला सकीं। फिर भारत आ गईं। वो रो-रोकर बोलती हैं-मेरा बच्चा बस दिलवा दो। छाती भर भरके दूध आता है लेकिन वो तो वहाँ भूख से तड़पता होगा। पूनम के साथ कई हिंदू 2023 में ही पाकिस्तान से जोधपुर आए लेकिन कइयों को अपना बच्चा छोड़कर यहाँ आना पड़ा। किसी ने मामा-चाचा को बच्चा दिया तो किसी ने पड़ोसी को। फोन पर जब ये माताएँ अपने बच्चों की आवाज सुनती हैं तो कुछ होश नहीं रहता। एक तो पहाड़ से कूदने को तैयार हो गई थी।
पाकिस्तान में काफिर, भारत में आतंकी
उल्लेखनीय है कि ऐसे इलाकों में पाकिस्तान से आई महिलाएँ कैमरे के पास आने से मना करती हैं। उनका कहना होता है कि वो ऑफ कैमरा बात कर पाएँगी लेकिन कैमरे पर नहीं। उनकी तस्वीरें देखकर उनके परिवारों को पाकिस्तान में दुख दिया जाता है। श्यामा हिंदुओं की पीड़ा बताते हुए कहती हैं कि पाकिस्तान में उन्हें काफिर कहकर प्रताड़ित किया जाता था और यहाँ आकर कुछ लोग उन्हें आतंकवादी कह देते हैं। जिनके पास पाकिस्तान में रहने को छत और चलाने को पंखा कूलर था। आज उनके पास भारत में कुछ भी नहीं है। चूल्हा फूँककर रोटी बनती है। सुविधा होने के बाद भी कुछ हिंदू पाकिस्तान छोड़ चुके हैं क्योंकि वो जानते थे कि भले ही उन्हें पाकिस्तान में सुख मिलेगा लेकिन बेटियाँ असुरक्षित रहेंगी। श्यामा बताती हैं कि स्कूल जाने से लड़कियों को रोकना उनकी मजबूरी होती है क्योंकि बाज की तरह उनपर झपट्टा मारा जाता है, फिर रेप करके, धर्म बदलकर उनसे निकाह कर लेते हैं।