Friday, November 15, 2024
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लड़की का अंडरवियर निकालना, नंगा करना और खुद भी नंगा होना रेप का प्रयास नहीं: राजस्थान हाई कोर्ट

अदालत ने कहा, "अपराधी होने के लिए ऐसे खुले कृत्य या कदम को अपराध करने की दिशा में अंतिम कार्य होना जरूरी नहीं है। यह पर्याप्त है कि यदि ऐसा कृत्य जानबूझकर किए गए हों और अपराध करने के लिए स्पष्ट इरादा प्रकट करते हों, जो अपराध की परिणति के काफी करीब हो।" इस मामले में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपित ने (निजी अंग में) प्रवेश करने का प्रयास किया।

राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि लड़की के इनरवियर उतारना और खुद को नंगा करना बलात्कार का प्रयास नहीं, बल्कि महिला की शील भंग करने के लिए हमला है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह अपराध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के साथ धारा 511 के तहत ‘बलात्कार करने का प्रयास’ का अपराध नहीं, यह धारा 354 के तहत महिला की शील भंग करने के लिए हमला करने का दंडनीय अपराध है।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में साल 1991 में यौन अपराध के एक मामले में दोषी ठहराए गए, एक व्यक्ति को राहत प्रदान की है। इस शख्स ने छह साल की पीड़िता के अंतःवस्त्र उतार दिया था और खुद के कपड़े उतारकर उसका बलात्कार करने का प्रयास किया था। हालाँकि, हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने इसे बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं माना है।

राजस्थान हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि ‘प्रयास’ क्या होता है और बलात्कार करने के प्रयास और महिला के शील भंग करने के लिए हमला करने के बीच अंतर क्या है। उन्होंने कहा कि बलात्कार के प्रयास के लिए आरोपित को तैयारी के चरण से आगे जाना होगा।

अपने वक्तव्य में जस्टिस ढाड ने कहा कि ‘बलात्कार के प्रयास’ के अपराध के लिए तीन चरणों को पूरा करने की आवश्यकता है- सबसे पहले अपराध करने का इरादा होना चाहिए, दूसरा उस अपराध को करने की दिशा में कार्य करना और तीसरा यह कृत्य अपराध की परिणति के काफी करीब होना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि तैयारी के चरण को पार करने वाला चरण IPC की धारा 354 तक अभद्र हमला है।

अदालत ने कहा, “अपराधी होने के लिए ऐसे खुले कृत्य या कदम को अपराध करने की दिशा में अंतिम कार्य होना जरूरी नहीं है। यह पर्याप्त है कि यदि ऐसा कृत्य जानबूझकर किए गए हों और अपराध करने के लिए स्पष्ट इरादा प्रकट करते हों, जो अपराध की परिणति के काफी करीब हो।” इस मामले में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपित ने (निजी अंग में) प्रवेश करने का प्रयास किया।

रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में अदालत ने सिट्टू बनाम राजस्थान राज्य के मामले का हवाला दिया। इस मामले में लड़की को जबरन नग्न किया गया था और आरोपित ने लड़की के विरोध के बावजूद उसके साथ यौन संबंध बनाने का प्रयास किया था। इस कृत्य को तैयारी के चरण को पार करने के रूप में देखा गया और इसे बलात्कार करने के प्रयास के बराबर माना गया था।

इसी तरह, दामोदर बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य के मामले में आरोपित ने पीड़िता की साड़ी उतार दी थी, लेकिन कुछ लोगों को देखकर वह भाग गया। इस कृत्य को बलात्कार करने के प्रयास के चरण तक पहुँचने के रूप में नहीं देखा गया। इसे भी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 के तहत शीलभंग के लिए हमला करने के अपराध के रूप में देखा गया था।

दरअसल 6 वर्षीय पीड़िता ने कहा था कि आरोपित सुवालाल ने उसके और अपने दोनों के कपड़े उतार दिए थे और जब उसने शोर मचाया तो आरोपित घटनास्थल से भाग गया था। उस समय 25 साल के रहे सुवालाल को टोंक की अदालत ने 1991 में रेप के प्रयास का दोषी ठहराया था। वह दोषसिद्धि से पहले और बाद में सिर्फ ढाई महीने ही जेल में रहा था।

निचली अदालत ने उसे 3 साल 6 महीने की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। इसके हाई कोर्ट ने उसकी दोष सिद्धि और सजा को संशोधित कर दिया। ऐसा करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, “यह घटना 09.03.1991 को हुई थी और लगभग 33 वर्ष बीत चुके हैं। यह अवधि किसी को भी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से थका देने के लिए पर्याप्त है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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