सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 नवंबर 2021) को तिरुमला के तिरुपति बालाजी मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना की विधि और अनियमितताओं के आरोपों को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें किसी मंदिर के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतें यह नहीं बता सकती कि किसी मंदिर में कैसे पूजा और अनुष्ठान किए जाएँ, कैसे नारियल तोड़े जाएँ या देवी-देवता को किस तरीके से माला पहनाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ऐसे मामलों में कैसे हस्तक्षेप कर सकता है कि रीति-रिवाज कैसे चलाए जाएँगे। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मंदिर के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने की माँग की गई है, इस पर कोई संवैधानिक न्यायालय गौर नहीं कर सकती। चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई और कहा कि इन मुद्दों को एक रिट याचिका में तय नहीं किया जा सकता है।
पीठ, जिसमें जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थीं, ने कहा कि ये मुद्दे याचिका के जरिए तय नहीं किए जा सकते हैं। याचिकाकर्ता श्रीवरी दद्दा ने कहा कि यह एक सार्वजनिक मंदिर है। इस पर पीठ ने कहा, “कोर्ट इस मामले में कैसे दखल देगा..कैसे अनुष्ठान किए जाएँ?” पीठ ने माना कि याचिका में जो राहत माँगी गई है वह मंदिर के दैनिक कामकाज के मामलों में हस्तक्षेप वाली हैं। अदालतें इसमें दखल नहीं दे सकती हैं। अगर परंपरा से कुछ अलग होने की बात हो और उसके संबंध में सुबूत हों तब अदालत मामले पर विचार कर सकती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर प्रशासन याचिकाकर्ता की शिकायतों पर ध्यान दे और इसके बाद भी कुछ शिकायतें रह जाती हैं तो याचिकाकर्ता उचित प्लेटफॉर्म पर अपनी बात रख सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूजा के अलावा अगर प्रशासन नियमों की अनदेखी कर रहा है या किसी अन्य व्यवस्था का उल्लंघन कर रहा है तो उस मामले में कोर्ट देवस्थानम बोर्ड से स्पष्ट करने के लिए कह सकते हैं। इसके अलावा सेवा में हस्तक्षेप करना संभव नहीं होगा।
दरअसल भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के एक भक्त श्रीवरी दद्दा ने तिरुपति मंदिर के पूजा पाठ में अनियमितता का आरोप लगाया था। 29 सितंबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) को हफ्ते भर के भीतर शिकायत पर जवाब देने को कहा था। इससे पहले आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने भी यह याचिका यह कहते हुए रद कर दी थी कि वह पूजा करने के तौर तरीकों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। हाई कोर्ट ने कहा था कि यह मामला देवस्थानम के अधिकार क्षेत्र में आता है।