बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने कहा कि एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि स्कूली बच्चों को सुधारने के लिए दिया गया शारीरिक दंड अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि गुरुवार (2 फरवरी 2023) को एक स्कूल टीचर को रिहा करते हुए कहा कि उसका इरादा गलत नहीं था। वह बच्चे को सुधारना चाहता था।
जस्टिस भरत पी देशपांडे ने स्कूल टीचर के खिलाफ लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि बच्चे को सुधारने की कोशिश आईपीसी की धारा 324 या गोवा बाल अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एम) के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षक शिक्षा प्रणाली की रीढ़ की हड्डी हैं। ऐसे में उन्हें डर के साये में जीना पड़ा तो स्कूल में अनुशासन को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। इससे शिक्षा भी प्रभावित होगा। इसके आधार पर कोर्ट ने दो छात्रों के हाथ पर बेंत से मारने वाली महिला शिक्षक रेखा फलदेसाई को राहत दी।
कोर्ट ने पाया कि दोनों बच्चों के बयानों में अंतर है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी पाया कि महिला शिक्षक ने बच्चों को पीटने के लिए छड़ी का इस्तेमाल नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि स्कूल सिर्फ अकादमिक से संबंधित शिक्षा लेने वाली जगह नहीं है, बल्कि यहाँ जीवन के विभिन्न आयामों से संबंधित अनुशासन सीखने की भी जगह है।
गोवा बाल न्यायालय ने इस शिक्षक को 6 साल और 9 साल के दो छात्रों को पीटने के आरोप में IPC की धारा 324 और गोवा बाल अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एम) के तहत दोषी माना था। IPC के तहत कोर्ट ने महिला शिक्षक को 10,000 रुपए का जुर्माना और गोवा बाल अधिनियम के तहत एक दिन की जेल एवं 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था।
इसके बाद महिला टीचर ने हाईकोर्ट में अपील की थी। दरअसल, स्कूल की दो छात्राओं में से एक ने दूसरे की बोतल से पानी पी लिया था। इस पर शिक्षक ने डाँटते हुए कहा कि वह अपने घर से पर्याप्त पानी लेकर आए।
कोर्ट ने कहा कि गोवा बाल अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को किसी तरह की शारीरिक या मानसिक क्रूरता से बचाना है। अगर स्कूल आवर में इस तरह की घटनाएँ आती भी हैं तो पुलिस को बाल एवं महिला कल्याण जैसे विभागों से प्राथमिक जाँच करानी चाहिए।