Monday, November 18, 2024
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‘क्रूर, बर्बर और अमानवीय’: बच्चों की खतना को अपराध घोषित करने की माँग, केरल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

याचिका कहा गया है, "एक बच्चे को अपने माता-पिता की सनक का शिकार नहीं होना चाहिए। बच्चों को किसी विशेष प्रथा, विश्वास या धर्म को चुनने का अवसर मिलना चाहिए। माता-पिता की धार्मिक कट्टरता के कारण बच्चों के अधिकारों और स्वतंत्रता का समर्पण नहीं किया जा सकता है। बालिग होने के बाद ही बच्चे को कोई धार्मिक अनुष्ठान चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए।"

केरल उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें बच्चों के गैर-चिकित्सीय खतने की प्रथा पर रोक लगाने की माँग की गई है। याचिका में इस प्रथा को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन, अवैध और संज्ञेय एवं गैर-जमानती अपराध घोषित करने की माँग की गई है।

यह जनहित याचिका नन-रिलीजियस सिटीजन (NRC) और पाँच अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर की गई है। याचिका में दूसरे प्रतिवादी यानी कानून और न्याय मंत्रालय को खतने पर रोक लगाने वाले पर्याप्त कानून पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए एक उपयुक्त रिट जारी करने की भी माँग की गई है।

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि खतना बच्चों के मौलिक अधिकारों और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि बच्चे इस प्रथा के शिकार हैं। इसका अभ्यास क्रूर, अमानवीय और बर्बर होने के साथ-साथ संविधान प्रदत्त अधिकारों के भी खिलाफ है।

याचिका में कहा गया है, “यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मूल्यवान मौलिक अधिकार, “जीवन के अधिकार” का उल्लंघन करता है। यदि राज्य तंत्र संविधान के संरक्षक के रूप में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहता है तो संवैधानिक अदालतें इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य हैं।”

याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया, “खतना का अर्थ उस चमड़ी को हटाने है, जो ऊतक है और जो लिंग के सिर (ग्रंथियों) को ढँकता है। यह एक प्राचीन प्रथा है, जिसकी उत्पत्ति धार्मिक संस्कारों में हुई है। आज कई माता-पिता अपने बेटों का खतना धार्मिक या अन्य कारणों से करवाते हैं। खतना आमतौर पर जन्म के बाद पहले या दूसरे दिन किया जाता है। बच्चों के मामले में प्रक्रिया अधिक जटिल और जोखिम भरी हो जाती है। पुरुषों को प्रक्रिया के दौरान सोने के लिए दवा दी जा सकती है, लेकिन बच्चों के मामले में नहीं।”

याचिका में आगे कहा गया है कि खतने से कई स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं और उनमें से एक आघात है। आघात की वजह से डर, असहायता, गंभीर चोट या मृत्यु के खतरे की भावना का अहसास होता है। इसमें यौन शोषण, शारीरिक शोषण, घरेलू हिंसा, सामुदायिक और स्कूल हिंसा, चिकित्सा आघात, मोटर वाहन दुर्घटनाएँ आदि शामिल हैं।

इस माँग की दलील दी गई है कि खतने से जुड़े अन्य जोखिम या जटिलताएँ हैं, इस प्रकार हैं: 1) रक्तस्राव। 2) शिश्न में संक्रमण। 3) शिश्न के खुले सिरे में जलन। 4) मूत्रमार्ग का क्षतिग्रस्त होना। 5) शिश्न पर निशान। 6) शिश्न की बाहरी त्वचा की परत हटना। 7) गंभीर एवं जानलेवा जीवाणु संक्रमण।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बच्चे को किसी विशेष धर्म को मानने या न मानने और किसी विशेष प्रथा या अनुष्ठान का पालन करने या न करने का अधिकार होना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि खतना की प्रथा बच्चों को मजबूर करने के लिए किया जाता है कि उनकी पसंद जैसी चीज नहीं है। उनके माता-पिता द्वारा लिए गए एकतरफा निर्णय का ही उन्हें पालन करना।

याचिका में आगे कहा गया है, “एक बच्चे को अपने माता-पिता की सनक का शिकार नहीं होना चाहिए। बच्चों को किसी विशेष प्रथा, विश्वास या धर्म को चुनने का अवसर मिलना चाहिए। हालाँकि, समाज बच्चों की अक्षमता और लाचारी का फायदा उठा रहा है। माता-पिता की धार्मिक कट्टरता के कारण बच्चों के अधिकारों और स्वतंत्रता का समर्पण नहीं किया जा सकता है। बालिग होने के बाद ही बच्चे को कोई धार्मिक अनुष्ठान चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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