Friday, November 22, 2024
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पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन: किसानों को भड़काने के लिए कनाडा के खालिस्तानी समूह की भयानक रणनीति, है NDTV ‘कनेक्शन’ भी

कनाडा के इस एनजीओ की वेबसाइट 'आस्क इंडिया' पर किसानों जुड़े तमाम प्रोपेगेंडा सामग्री की भरमार है और उनकी सोशल मीडिया साइट्स पर देश-विरोधी, खालिस्तान समर्थन वाली सामग्री भरपूर मौजूद है।

अब तक हम सभी लोग यही मानकर चल रहे थे कि नवम्बर माह से चल रहे ये किसान आन्दोलन सिर्फ अन्नदाताओं की कृषि कानूनों से नाराजगी का ही परिणाम है। लेकिन वामपंथी एक्टिविट ग्रेटा थनबर्ग द्वारा गलती से किए गए ट्वीट में जो दस्तावेज सामने आए हैं, उससे किसान आंदोलनों के मूल में छिपे खालिस्तान समर्थकों के तार भी एक के बाद एक कर सामने आने लगे हैं।

किसान आन्दोलन का खाका तैयार करने वाली इस ‘टूल किट’ की तह में जाने पर ये सभी एक ही स्रोत पर मिलते नजर आते हैं और वो है खालिस्तान के विचार के समर्थन के जरिए भारत विरोध। इन दस्तावेजों में भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ किसान आंदोलन के नाम पर की जा रही साजिश का अजेंडा कई चरणों में दिया गया है। इसमें अब ऐसे ही कनाडा आधारित एक समूह ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ का भी जिक्र सामने आया है, जिसका किसान विरोध को भड़काने में महत्वपूर्ण योगदान माना जा रहा है।

पोएटिक जस्टिस फॉउंडेशन का रोल

भारत के किसानों के विरोध के खिलाफ वैश्विक अभियान के पीछे कनाडा का ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ बहुत सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इसकी वेबसाइट से वास्तविकता का पता चलता है कि यह सब सामान्य से कहीं अधिक भयावह है।

दरअसल, इन डॉक्यूमेंट को पढ़ने से पता चलता है कि ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ (Poetic Justice Foundation) नामक समूह ने भी लोगों को भड़काने और सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी माहौल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। दिलचस्प बात ये है कि इस समूह द्वारा एक वेबसाइट तैयार की गई है जिसका नाम है ‘आस्क इण्डिया व्हाय’ यानी, ‘भारत से पूछो, क्यों’?

कनाडा का यह छोटा सा संगठन ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ किस तरह से लोगों को भड़काने का काम कर रहा है, इसका उदाहरण उन्हीं की वेबसाइट ‘आस्क इंडिया व्हाय’ पर नजर आ रहे हैं। इसमें लिखा गया है कि सरकार किसानों की जान ले रही है।

साथ ही, 1984 में हुए दंगों का डर भी लोगों के बीच रखा गया है, जिसका उद्देश्य यह भय पैदा करना है कि सरकार किसानों के दमन के लिए फिर ऐसा कुछ कर सकती है। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में ट्विटर पर एक ऐसा भी अजेंडा चलाया गया था, जिसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के नरसंहार की तयारी कर रहे हैं।

ग्रेटा थनबर्ग ने जो एक दस्तावेज भूल से सार्वजानिक किया उसमें सोशल मीडिया पर इस पूरे अजेंडे की प्लानिंग की एक ‘पावर पॉइंट स्लाइड’ भी है। इस पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ का लोगो लगा हुआ है। कनाडा के इस एनजीओ की वेबसाइट ‘आस्क इंडिया’ पर किसानों जुड़े तमाम प्रोपेगेंडा सामग्री की भरमार है और उनकी सोशल मीडिया साइट्स पर देश-विरोधी, खालिस्तान समर्थन वाली सामग्री भरपूर मौजूद है।

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पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का इन्स्टाग्राम अकाउंट

03 फरवरी को ग्रेटा थनबर्ग ने जो डॉक्यूमेंट ट्वीट किए, उन दस्तावेज में उल्लेख किया गया है कि ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ द्वारा ही किसानों के आंदोलन के लिए विरोध प्रदर्शन की सामग्री और सोशल मीडिया टेम्पलेट बनाए गए थे।

Poetic Justice Foundation
आन्दोलन में भूमिका को लेकर पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का विवरण

अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस संगठन ने 26 जनवरी की हिंसा को लेकर भी खूब माहौल बनाया था-

पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का इन्स्टाग्राम अकाउंट

इस संगठन ने अपनी वेबसाइट ‘AskIndiaWhy’ पर लिखा है, “हम सबसे सक्रिय रूप से #FarmersProtest में शामिल हैं, जिसने दुनिया भर में भारतीय प्रवासियों को किसानों के प्रति भारत की दमनकारी नीतियों के लिए एक विद्रोह के रूप में सक्रिय किया है।”

किसानों के विरोध को इस संगठन ने ‘दुनिया के सबसे लम्बे चले किसान आंदोलनों में से एक’ के रूप में बताया है, जैसा दुनिया ने कभी नहीं देखा।

भारत सरकार पर हमला करते हुए यह संगठन कहता है, “प्रधानमंत्री मोदी के फासीवादी शासन में भारत ने खुद को एक क्रूर हिंदू राष्ट्रवादी शासन के रूप में पेश किया है।”

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खुद को खालिस्तानी बताते हैं इस संगठन के ‘एक्टिविस्ट’

इस डॉक्यूमेंट में एमओ ढोलीवाल नाम के एक व्यक्ति का भी जिक्र सामने आया है, जो कि पोएटिक जस्टिस फॉउंडेशन’ का एक सदस्य है। एमओ ढोलीवाल ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स पर सितंबर, 2020 में खुद को खालिस्तानी समर्थक बताया है। इस पोस्ट में ढोलीवाल ने ‘स्वतंत्र पंजाब’ की जमकर वकालत भी की है।

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अब अगर इस तमाम आंदोलन की क्रियाविधि और इसे नेटवर्क पर एक और नजर दौड़ाएँ तो पता चलता है कि यह सब कितना सुव्यवस्थित तरीके से किया गया। आपको याद ही होगा कि किसान आंदोलन के बीच दिल्ली सीमा पर मौजूद ‘किसानों’ के लिए ‘ट्रॉली टाइम्स’ नाम का एक समाचार पत्र भी शुरू किया गया था।

किसान विरोध का NDTV कनेक्शन

इस ट्रॉली टाइम्स के ‘स्तम्भकार’ वामपंथी समाचार चैनल एनडीटीवी के भी स्तम्भकार हैं। इनमें से एक नाम है हरजेश्वर पाल सिंह का। हरजेश्वर पाल ‘ट्रॉली टाइम्स’ के लिए लिखते हैं और हरजेश्वर पाल ही NDTV के लिए भी लिखते हैं और ‘दी क्विंट’ के लिए भी।

श्री गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज, चंडीगढ़ में इतिहास के प्रोफेसर हरजेश्वर पाल सिंह कहते हैं कि आर्थिक कारणों ने गायकों को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए मजबूर किया है। प्रोफेसर पाल स्वतंत्र विचार रखने के लिए स्वतंत्र भी हैं। हालाँकि, यह तमाम नेटवर्क वामपंथ के रास्ते से होते हुए किसान आन्दोलन में अपनी दस्तक देकर खालिस्तान के विचार के एकीकरण पर ही जोर देते नजर आते हैं।

ग्रेटा थनबर्ग की एक छोटी सी भूल ने इस तमाम अजेंडा की पोल खोलकर रख दी है। अभी ये देखना बाकी है कि इस वामपंथी ‘टूलकिट’ से और क्या प्रपंच बाहर निकलने बाकी हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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