बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में फ़िरोज़ ख़ान को ‘धर्म विज्ञान संकाय’ में कर्मकांड पढ़ाने के लिए भेजा गया है, जिसे लोग संस्कृत भाषा समझ कर उनका विरोध कर रहे छात्रों को ही भला-बुरा कह रहे हैं। कई लिबरल्स व अन्य लोग समझ रहे हैं कि बीएचयू में भेदभाव के तहत एक ‘मुस्लिम शिक्षक का विरोध’ हो रहा है। जबकि, ऐसा नहीं है। इस विभाग में यज्ञ और ज्योतिष जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। यह नियुक्ति बीएचयू के संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय के मूल्यों एवं उनके द्वारा बनाए गए नियमों के भी ख़िलाफ़ है। छात्रों का आरोप है कि कुलपति मनमानी कर रहे हैं।
इसी क्रम में वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला ने एक अख़बार का एड शेयर कर के दिखाया कि किस तरह मुस्लिमों व ईसाइयों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में उसी ख़ास महजब के लोगों को विभिन्न पदों पर न सिर्फ़ नियुक्त किया जाता है, बल्कि इसके लिए सार्वजनिक आवेदन भी निकाले जाते हैं। यह सब खुल्लम-खुल्ला होता है और कोई मुँह नहीं खोलता। आखिर कथित अल्पसंख्यकों को कोई नाराज़ क्यों करे? प्रभु चावला ने अख़बार में छपे जिस एड की तरफ लोगों का ध्यान आकृष्ट कराया, वो ‘जीसस एंड मेरी’ का है। इसमें प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन आमंत्रित किया गया है।
लेकिन, सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है कि आवेदक के पास पादरी का ‘अनुशंसा पत्र’ होना चाहिए और उसके पास ‘बैप्टिज्म सर्टिफिकेट’ भी होना चाहिए। यानी पादरी की अनुशंसा और आपका ईसाई होना, ये दोनों ही ज़रूरी है। ऐसा किसी चर्च के नियम-क़ानून या कर्मकांड वाले विषय के लिए नहीं किया जा रहा, बल्कि कॉलेज के प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए किया जा रहा। फ़िरोज़ ख़ान वाले मामले में ग़लत तरीके से छात्रों पर आरोप लगाने वाले ऐसे अनगिनत घटनाओं पर चुप रहते हैं, जबकि, बीएचयू वाला मामला इससे एकदम अलग है।
‘द न्यूज़ इंडियन एक्सप्रेस’ के एडिटोरियल डायरेक्टर प्रभु चावला ने पूछा कि क्यों न हिन्दुओं द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान अपने यहाँ विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए शर्त रख दें कि केवल हिन्दू ही आवेदन करने के योग्य होंगे? उन्होंने लिबरलों से पूछा कि क्या तुमलोगों के पास इसका जवाब है कि हिन्दुओं को ऐसा करने का अधिकार क्यों नहीं है? इसके जवाब में अभिजीत मित्रा ने बताया कि ऐसी मजहबी चीजें ‘अल्पसंख्यक अधिकार’ के तहत आती हैं और कोई आवाज़ नहीं उठा पाता। उन्होंने कहा कि स्टीफेंस, जामिया और लोयला में हिन्दू छात्रों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, ये किसी से छिपा नहीं है।
Unfortunately this kind of sectarian rubbish is protected under “minority rights”. We all know HINDU students get treated like shit at JMC, Loyola & Stephens … yet they choose to go there & crawl to the churches tune to get the right “label” https://t.co/EFIcqXLfyg
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) November 20, 2019
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने ‘इंडिया टुडे ग्रुप’ के पूर्व एडिटोरियल डायरेक्टर प्रभु चावला के प्रश्नों से सहमति जताई है। इनका कहना है कि हिन्दुओं द्वारा संचालित संस्थानों को भी अब केवल हिन्दुओं की ही नियुक्ति करनी चाहिए।
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